नई दिल्ली। Supreme court ने 27 नवम्बर को डिजिटल दुनिया में बेलगाम हो चुके अश्लील, अभद्र और समाज को नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट पर कड़ा रुख अपनाया। मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमलया बागची की बेंच ने साफ कहा ‘कोई भी व्यक्ति अपना चैनल बनाकर जो मन में आए अपलोड कर दे और किसी के प्रति जवाबदेह न रहे, यह व्यवस्था अब चलने वाली नहीं है।’
‘लाखों लोग देख चुके होते हैं, तब तक कार्रवाई क्या फायदा?’ कोर्ट ने चिंता जताई कि एक क्लिक में आपत्तिजनक वीडियो वायरल हो जाता है। जब तक पुलिस या प्लेटफॉर्म कार्रवाई करते हैं तब तक लाखों लोग उसे देख चुके होते हैं। जस्टिस बागची ने कहा, ‘गंदा कंटेंट अपलोड होने के कुछ सेकंड बाद ही वह हर फोन तक पहुंच जाता है। इसे रोकने का तरीका बताइए।’
मौजूदा सेल्फ-रेगुलेशन को कोर्ट ने बताया नाकाफी,देशविरोधी कंटेंट भी चिंता का विषय
अदालत ने कहा कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम और दूसरे प्लेटफॉर्म का अपना सेल्फ-रेगुलेशन सिस्टम पूरी तरह फेल साबित हुआ है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और ताकतवर रेगुलेटरी संस्था बनानी होगी जो ऐसे कंटेंट पर तुरंत ऐक्शन ले सके।
बेंच ने एंटी-नेशनल कंटेंट का भी जिक्र किया। कोर्ट ने पूछा,’अगर कोई वीडियो यह दिखाए कि देश का कोई हिस्सा भारत का नहीं है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?’ हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि अभिव्यक्ति की आजादी बहुत कीमती है, लेकिन इसे समाज तोड़ने का हथियार नहीं बनने दिया जा सकता।
अश्लील कंटेंट से पहले सख्त चेतावनी और उम्र जांच का सुझाव
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ एक लाइन की छोटी-सी वॉर्निंग काफी नहीं है। कम से कम 2 सेकंड तक बड़ी और साफ चेतावनी दिखनी चाहिए। सीजेआई ने तो यहां तक कहा कि 18+ कंटेंट से पहले आधार कार्ड या कोई दूसरी आईडी से उम्र की जांच का सिस्टम भी लाया जा सकता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मीडिय को बताया कि सरकार नया कानून और दिशा-निर्देश तैयार कर रही है। कोर्ट ने केंद्र को चार हफ्ते में यूजर-जनरेटेड कंटेंट (यानी आम लोग जो खुद बनाते हैं) के लिए सख्त नियमों का ड्राफ्ट तैयार करने को कहा है।
मामला कहां से शुरू हुआ?
यह पूरी सुनवाई कॉमेडियन समय रैना के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ से जुड़े विवाद से शुरू हुई थी। शो में महिलाओं और माता-पिता के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बातें कही गई थीं। इसके बाद रणवीर अल्लाहबादिया (बीयरबाइसेप्स) समेत कई यूट्यूबर्स पर महाराष्ट्र, असम और दूसरे राज्यों में एफआईआर दर्ज हुईं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो जजों ने इसे सिर्फ एक शो तक सीमित नहीं रखा, बल्कि पूरे डिजिटल कंटेंट की जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है – इंटरनेट पर बोलने की आजादी है, लेकिन मनमानी की छूट नहीं। अब देखना यह है कि सरकार अगले एक महीने में कितने सख्त और कारगर नियम लाती है।

