जम्मू-कश्मीर के पांच दशक पुराने अंग्रेजी अखबार कश्मीर टाइम्स के जम्मू कार्यालय में केंद्र शासित प्रदेश की एसआईए (स्टेट इंवेस्टिगेशन एजेंसी) की छापे की कार्रवाई जिन परिस्थितियों में की गई है, उससे कई गंभीर सवाल उठते हैं। बताया गया है कि दस घंटे चली छापे की कार्रवाई में हथियार और दस्तावेज वगैरह जब्त किए गए हैं।
इस अखबार का प्रकाशन कई साल पहले बंद हो चुका है और अभी यह ऑनलाइन ही उपलब्ध है और जिस दफ्तर में छापा मारा गया है, वह कार्यालय बताया जाता है कि पिछले कई सालों से बंद पड़ा है। अखबार की संपादक और देश की वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन पर भी एसआईए ने गंभीर आरोप लगाए हैं। भसीन और उनके पति प्रबोध जमवाल विदेश में हैं।
कश्मीर टाइम्स की स्थापना अनुराधा भसीन के पिता वेद भसीन ने 1950 के दशक में की थी, और इसने स्वतंत्र तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के रूप में एक मिसाल कायम की थी। वेद भसीन की मौत के बाद से इसका काम संभाल रहीं उनकी बेटी अनुराधा भसीन केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार की कश्मीर नीतियों की मुखर विरोधी रही हैं।
यही नहीं, उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध किया था। यहां तक कि उपराज्यपाल मनोज वर्मा ने कश्मीर से संबंधित जिन 25 किताबों को प्रतिबंधित किया है, उनमें भी अनुराधा भसीन की किताब ए डिसमैंटल्ड स्टेट: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीर ऑफ्टर आर्टिकल 370 शामिल थी।
निस्संदेह इस मामले में कानून को अपना काम करना चाहिए। साथ ही यह भी गौर किया जाना चाहिए कि इस कार्रवाई में इस केंद्र शासित प्रदेश की निर्वाचित राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है, क्योंकि यहां पुलिस उपराज्यपाल यानी केंद्र सरकार के सीधे अधीन है।
जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी की इस बात से हम सहमत हैं कि अगर कुछ गलत किया गया है, तो कार्रवाई होनी चाहिए, सिर्फ दबाव बनाने के लिए ऐसा न हो। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी इस कार्रवाई की निंदा की है और प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई है।
लोकतंत्र का यह तकाजा है कि प्रेस की स्वतंत्रता बरकरार रहे, लेकिन अफसोस के साथ यह दर्ज करना पड़ रहा है कि विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों की सूची में 151 वें स्थान पर है।
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और फिर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांटने के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू की गई है, जिससे वहां निर्वाचित सरकार काम कर रही है। जिस तरह की चुनौतियों का सामना जम्मू-कश्मीर ने किया है और कर रहा है, ऐसे में जरूरी है कि वहां लोकतंत्र की आवाजें और मजबूत हों।

