नई दिल्ली। वह एक नवंबर की दोपहरी थी, जब एनडीटीवी के राहूल कंवल गृहमंत्री अमित शाह का इंटरव्यू ले रहे थे। उस इंटरव्यू में अमित शाह ने 160 या उससे ज़्यादा सीटें जीतने की संभावना जताई थी। फिर जब 14 नवम्बर को परिणाम आया तो वह संख्या 202 निकली. इस परिणाम पर पक्ष विपक्ष चुनाव ड्यूटी में शामिल पर्यवेक्षक, अधिकारी सभी हैरान हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार में जहाँ बेरोजगारी चरम पर हो, पलायन सारे रिकार्ड तोड़ रहा हो, कानून व्यवस्था की स्थिति छिन्न भिन्न हो वहाँ इस तरह की विराट जीत संभव थी? यह जीत एग्जिट पोल जो कि ज्यादातर एनडीए के पक्ष में थे उससे भी बाहर जा रही थी। उन्हें भी परास्त कर रही थी।
हमने उन वजहों को टटोलने की कोशिश की क्या यह चुनाव विपक्ष के लिए फेयर ग्राउंड मुहैया करा रहा था? क्या चुनाव आयोग की भूमिका सिर्फ चुनाव कराने तक सीमित ना रहकर सत्ता पक्ष के लिए भी थी जिसका उस पर लगातार आरोप लगता रहा है? बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के लिए “वोट चोरी” को जिम्मेदार बताने वालों की कड़ी आलोचना करते हुए कहते हैं “यह देश कभी किसी ऐसे व्यक्ति को स्वीकार नहीं करेगा जो राष्ट्र की बात नहीं करता।” लेकिन सवाल तो हैं और उनके जवाब नदारद हैं।
SIR का गड़बड़झाला
बिहार में SIR की प्रक्रिया 24 जून 2025 को शुरू हुई और 30 सितंबर 2025 तक चली। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में मान्यता देने की बात कही लेकिन चुनाव आयोग उसे टालता रहा। ग़ज़ब यह रहा कि फ़ाइनल सूची तैयार होने से महज 20 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आधार कार्ड को भी मानक दस्तावेज माना जाएगा ।यानि कि उन वोटरों के लिए जिनके पास केवल आधार कार्ड पहचान के दस्तावेज का एकमात्र सुबूत था उनके लिए मतदाता सूची में शामिल होने के लिए केवल 20 दिन बचे थे।
अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की गई। जिसमे 7.89 करोड़ मतदाताओं की जाँच की गई, जिसमें 65 लाख फर्जी नाम हटाए गए और 21.53 लाख नए पात्र मतदाता जोड़े गए। अंतिम सूची में करीब 7.42 करोड़ मतदाता थे। अगर चुनाव आयोग की बात को मान भी लें तो यह 65 लाख नाम जो कथित तौर पर फर्जी थे मात्र 16 महीने पहले यानि मई 2024 में वोटिंग कर चुके थे और जो 22 लाख के क़रीब नाम जोड़े गए उनमे से एक बड़ी संख्या लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाल सकी थी। मतलब साफ़ था कि तमाम विसंगतियाँ मौजूद थी। द लेंस ने इन आपत्तियों के लिए द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के डाटा साइंटिस्टों द्वारा जारी की गई कुछ रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया उसमे हैरान कर देने वाली जानकारी मौजूद थी।
डाटा साइंटिस्टों के सवालों पर खामोशी
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने SIR के बाद जो आपत्तियाँ उठाई उनमें से प्रमुख आपत्तियाँ सुनिए –
-243 विधानसभाओं में 14.35 लाख संदिग्ध डुप्लिकेट वोटर मिले,
– 3.4 लाख में नाम, रिश्तेदार और उम्र पूरी तरह मेल खा रही थी।
– 39 सीटों पर 3.76 लाख संदिग्ध मतदाता मिले , जिनमें 1.88 लाख नाम दो बार दर्ज थे।
– वाल्मीकिनगर में 5,000 यूपी के डुप्लिकेट वोटर पाये गए जबकि यह पूर्वी चंपारण की मजबूत सीट मानी जा रही थी।
– चंपारण के 3 सीटों (पिपरा, मोतिहारी, बगहा) पर 80,000 गलत पते मिले।
ECI ने दावा-आपत्ति अवधि में सुधार का वादा किया, लेकिन असर नगण्य रहा। मृत/अनुपस्थित मतदाता मृतकों और गायब मतदाताओं के नाम नहीं हटाए गए। SIR ने इनकी जाँच नहीं की। लाखों मृत नाम बने रहे। मुस्लिम -बहुल सीटों से नाम हटाने के प्रयास किया गया जैसे BJP द्वारा ‘गैर-नागरिक’ के तौर पर चिह्नित किया गया ढाका सीट पर 78,384 नाम ‘गैर-नागरिक’ बताकर हटाने का प्रयास हुआ । विपक्ष यह बात बार बार कहता था कि 7 करोड़+ मतदाताओं का 30 दिनों में सत्यापन असंभव है लेकिन चुनाव आयोग नहीं माना ।
जितने वोट कटे उतना एनडीए को फ़ायदा
लेकिन यह कहानी यहीं नहीं ख़त्म हुई। चुनाव परिणाम सामने आने पर पता चल रहा है कि जिन सीटों पर एनडीए बमुश्किल जीता वहाँ पर SIR में कटे वोटों की संख्या एनडीए के जीत के मार्जिन से बहुत ज़्यादा रही। यानि जितने वोट कटे उससे बेहद कम बढ़त से एनडीए वह सीटें जीत गई। वहीं जहाँ महागठबंधन जीता वहाँ पर SIR में काटे गए वोटों की संख्या महागठबंधन की बढ़त से भी कम रही।
डाटा एनालिस्ट सरल पटेल उदाहरण देते हैं ‘अगियाँव सीट पर SIR के दौरान 12548 वोट कटे, एनडीए का विक्ट्री मार्जिन महज 95 वोटों का रहा। बलरामपुर में 17875 वोट कटे, वहाँ एनडीए की जीत का मार्जिन महज 389 रहा। बख़्तियारपुर में 9193 वोट कटे जीत का मार्जिन 981 वोट रहा। बेलागंज में 15881 वोट कटे एनडीए की जीत का मार्जिन 2882 रहा। औरंगाबाद में 18500 वीट डिलीट हुए जीत का मार्जिन 6794 रहा।
यह सारी सीट पिछली बार महागठबंधन के पास थी, इस बार एनडीए के पास। यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है, निश्चित तौर पर अगर SIR के माध्यम से वोट नहीं कटते तो स्थिति एकदम उलट होती। सरल बताते हैं ऐसे पाँच नहीं 30 सीटें हैं जहाँ पर यह स्थिति है। ग़ज़ब यह है कि ऐसी एक भी सीट नहीं है जहाँ महागठबंधन जीता हो और वह सीट पिछली बार एनडीए के पास रही हो और वहाँ पर जीत का मार्जिन SIR में कटे वोटों की संख्या से ज़्यादा हो। ग़ज़ब यह भी है कि जहाँ महागठबंधन जीता भी है वहाँ उसकी जीत के मार्जिन में अप्रत्याशित तौर पर कमी आई है। सरल कहते हैं फ़ार्मूला सीधा है जितना डिलिशन उतना एनडीए को फ़ायदा।
फ़ाइनल सूची के बाद बड़े तीन लाख वोट
एक बड़ी कहानी फाइनल सूची प्रकाशित होने के बाद जोड़े गए वोटरों की है। फ़ाइनल SIR मतदाता सूची 30 सितंबर को पब्लिश हुई जिसमे 7 करोड़ 42 लाख के आस पास वोटर्स थे। फिर जब 6 अक्टूबर को आदर्श आचार संहिता लागू हुई यह वोटरों की संख्या 7 करोड़ 43 लाख 55 हज़ार हो गई।उस वक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि अभी भी जो लोग नाम जुड़वाना चाहते हैं वो जरूरी दस्तावेजों के साथ नाम जुड़वा सकते हैं ।पहले फेज के लिए 7 अक्टूबर और दूसरे फेज के लिए 10 अक्टूबर तक का समय निर्धारित किया गया।असल हैरानी 11 नवंबर को हुई जब फ़ाइनल कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 45 लाख 26 हज़ार बताइ गई। मतलब यह कि 7 से लेकर 10 के बीच जबकि बीच में रविवार भी था। महज तीन दिनों में फाइनल SIR के बाद एक लाख 71 हज़ार वोटर्स और बढ़ गए। वहीं फ़ाइनल सूची के बाद से तीन लाख से ज़्यादा वतार बढ़े। इनमे पोस्टल बैलेट और सर्विस वोटर्स शामिल नहीं है। सवाल तीन थे यह वोटर्स कौन थे? कहाँ से आए थे? SIR में क्यों नहीं जोड़े जा सके?
कहानी वाल्मीकिनगर की
बिहार की एक विधानसभा सीट है वाल्मीकि नगर। इसका चुनाव परिणाम एक पहेली है। पहले बता दें वहां के कलेक्टर JDU प्रत्याशी रिंकू भैया के रिश्तेदार हैं। बाहुबली रिंकू भैया नीतीश जी के नजदीकी हैं। चुनाव आयोग की नाक के नीचे कलेक्टर साहब की अपने जिले में तैनाती करा लिए। दो बार से रिंकू भैया यहां से जीत रहे थे।वाल्मीकि नगर में थारू जनजाति की आबादी बहुत ज्यादा है यह तकरीबन 2.5 लाख है। वो लोग रिंकू भैया के खिलाफ वोट देने से बेहद भयभीत थे। लेकिन रिंकू भैया की सारी गणित अंततः फेल हो गई। एक ऐसे वक्त में जब पूरे प्रदेश में भाजपा और जनता दल यू की लहर चल रही थी रिंकू भैया 1600 वोट से चुनाव हार गए और कांग्रेस उम्मीदवार जीत गया। जानकारी मिल रही है कि वहाँ पर भाजपा शासित राज्यों की पुलिस की जगह एसएसबी तैनात कर दी गई थी।
डाटा कंपनियों का खेल
बिहार विधानसभा चुनाव में एक कंपनी के कामकाज पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। जार्विस टेक्नॉलजी एंड स्ट्रेटजी कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड नाम की यह फ़र्म 2017 से ही बीजेपी के लिए डाटा एनालिसिस का काम कर रही है। आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी के एक केंद्रीय नेता की सरपरस्ती में चलाई जा रही इस कंपनी को भाजपा ने पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में लगाया है।
आईपैक से पूर्व में जुड़े रहे और हजारीबाग से संजय मेहता द लेंस से कहते हैं इस कंपनी ने बूथ वार डाटा भाजपा को उपलब्ध कराया कि किन किन बूथों पर वह पिछला चुनाव हारी है। संजय दावा करते हैं कि यह पता लगाना बेहद आसान है कि किन बूथों पर किस पार्टी के कौन समर्थक हैं यह तो स्थानीय कार्यकर्ता भी बता देगा। अगर प्रति बूथ 15 नाम भी काटते हैं तो यह संख्या विधानसभावार इतनी हो जाती है कि बीजेपी को जीत दिला सके।
इंडियन एक्सप्रेस अपनी एक रिपोर्ट में कहता है कि दिसंबर 2016 में स्थापित और मुंबई के मालाबार हिल्स में मुख्यालय वाली, जार्विस टेक्नोलॉजी एंड स्ट्रैटेजी कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड का राजस्व 2016-17 में शून्य से बढ़कर 2017-18 में 10.5 करोड़ रुपये हो गया। संजय मेहता कहते हैं इस चुनाव में ऐसा कुछ हुआ है जो समझ से परे भी है। अंदरखाने कुछ बड़े स्तर पर गड़बड़ी हुई है। बूथों पर बोगस वोट किनको मिले इस पर भी आंकलन करना होगा। मान लेते हैं किसी विधानसभा में 400 बूथ हैं। उसमें प्रत्येक बूथ पर 20 वोट भी विरोधी का डिलीट कर दिया गया तो उसके आठ हज़ार वोटर कम हो जाएंगे। इसी तरह यदि सत्ताधारी दल वोटिंग शुरू होने से पहले मॉक पोलिंग में या वोटिंग समाप्त होने के बाद ईवीएम सील होने पहले प्रत्येक बूथ में 20 वोट डाल देता है ऐसे में यहाँ भी 8 हज़ार वोटों का लाभ होगा।
जीविका दीदियों के हाथ में SIR की कमान और दस हज़ार का इनाम
इस चुनाव में जीत की एक बड़ी वजह मुख्यमंत्री महिला सहायता योजना के माध्यम से सवा करोड़ महिलाओं के खातों में दस हज़ार रुपये डाला जाना है। जिसे दो लाख तक बढ़ाने का वादा किया गया। कांग्रेस नेता और पूर्व आईएएस कन्नन गोपीनाथन कहते हैं कि यह आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लंघन था। एक तरफ़ चुनाव में दस हज़ार करोड़ रुपए सरकारी खजाने से उड़ेल दिए गए। पूरे चुनाव भर महिलाओं के खाते में पैसे डाले गए।
दूसरी तरफ़ चुनाव आयोग ने हर बूथ में उन्ही जीविका दीदियों को दो दो की संख्या में SIR की जिम्मेदारी दे दी। निश्चित तौर पर इसका भी व्यापक असर पड़ा। महत्वपूर्ण है कि पूर्व के कई चुनाव में जब विपक्षी पार्टियों ने इस तरह की कोशिशें की आयोग ने आगे बढ़कर उन पर रोक लगाया। अब अगर विपक्ष इसके ख़िलाफ़ न्यायालय जाता तो भी उल्टा असर पड़ता। कांग्रेस आईटी सेल की प्रभारी सुप्रिया श्रीनेत कहती है कि अगर आपको लगता है बिहार का चुनाव निष्पक्ष हुआ है और इस हार के ज़िम्मेदार राहुल गांधी हैं तो आपसे बात करना बेमानी है। अगर बिहार चुनाव के पहले 62 लाख वोट काटे जाएँगे और फिर 20 लाख वोट जोड़े जाएँगे जिनमें से 5 लाख वोट बिना SIR फॉर्म भरे ही जुड़ गए।
इसके अलावा प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए पर गंभीर आरोप लगाया है। पार्टी का दावा है कि वर्ल्ड बैंक से मिले 14,000 करोड़ रुपये को डायवर्ट कर महिलाओं को लाभ पहुंचाया गया जिससे बहुमत हासिल हुआ। कुछ रिपोर्ट्स में यह राशि 40,000 करोड़ बताई जा रही है, जो बिहार की अर्थव्यवस्था पर बोझ डालेगी।जनसुराज ने इसे ‘भविष्य बेचने’ का नाम दिया है।

