- मोदी सरकार का मंत्र – पक्षपात, सहारा, सब्सिडी और प्रोटक्शन !
- अडानी समूह के लिए डबल इंजन का टर्बो मोड !!
- विपक्ष चिल्ला रहा ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’, अडानी बोल रहे ‘क्रिएटिंग कैपिटल !!!
राहुल गांधी अपने भाषणों में बार-बार ‘मोदी जी का दोस्त’ कहकर गौतम अडानी पर आरोप लगाते रहे हैं, जबकि गौतम अडानी राष्ट्र-निर्माण में योगदान का दावा करते रहे हैं। लेकिन सच तो यही है कि मोदी सरकार के 11 साल में गौतम अडानी जितने फले फूले, उतना शायद ही कोई और उद्यमी फला-फूला ! 2014 में मोदी सरकार के आते ही गौतम अडानी अपना एम्पायर बेहद तेजी से बढ़ाने में जुट गये।
2000 के दशक में अडानी ग्रुप का फोकस मुख्य रूप से पोर्ट्स और कमोडिटी ट्रेडिंग पर था, जो धीरे-धीरे बढ़ा। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद उनके साम्राज्य की वृद्धि विस्फोटक रही, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर, रिन्यूएबल एनर्जी और एयरपोर्ट्स जैसे क्षेत्रों में। 2000 में तो अडानी फोर्ब्स लिस्ट में शामिल नहीं थे क्योंकि तब वे बिलियनेयर नहीं बने थे। अडानी समूह की संपत्ति एक बिलियन भी नहीं थी। अडानी ग्रुप छोटा था –मुंद्रा पोर्ट का शुरुआती विकास हो रहा था। बाद में अडानी हीरे और प्लास्टिक ट्रेडिंग से अरबपति बने थे।
2014 में अडानी समूह की संपत्ति करीब पांच बिलियन डॉलर की आंकी गई थी और वे फोर्ब्स की अमीरों की सूची में 10वें स्थान पर पहुंच गए थे। अडानी की ग्रोथ रेट हर साल 30 प्रतिशत तक रही है। वे भारत में कोयला आयात में नंबर वन बन गए। पावर सेक्टर में उनका IPO पूरे 21 गुना सब्सक्राइब हुआ और विदेशी डील्स (ऑस्ट्रेलिया कोल माइन) सरकार की SEZ नीति और विदेशी निवेश से उनका फायदा आसमान छूने लगा। इसके बाद वे लगातार अर्श (आसमान) पर ही रहे।
नरेन्द्र के गुजरात में मुख्यमंत्री काल में अडानी समूह ने भारत का सबसे बड़ा प्राइवेट पोर्ट गुजरात के मुंद्रा में बनाया। 2002 में यह 4 मिलियन टन कार्गो हैंडल करने लगा, जो 2006 तक कोयला आयात में नंबर 1 हो गया। 2009 में अडानी समूह का पावर सेक्टर में प्रवेश हुआ।
ग्रुप ने हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पावर प्रोजेक्ट्स हासिल किए। 2013-14 में पर्यावरण मंत्रालय ने 13,580 करोड़ रुपये के दो थर्मल पावर प्रोजेक्ट्स (राजस्थान और महाराष्ट्र) को मंजूरी दी। अडानी ने ऑस्ट्रेलिया के कारमाइकल कोल माइंस और इंडोनेशिया में 1.65 अरब डॉलर की रेल-पोर्ट डील की। फिर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एबॉट पॉइंट पोर्ट को 2 अरब डॉलर में 99 साल की लीज पर लिया। ये सेंट्रल गवर्नमेंट की मंजूरी से संभव हुए।
अडानी एंटरप्राइजेज शेयर 2004-2014 में 2,186% बढ़े। फोर्ब्स लिस्ट में 2007 में 13वें स्थान से 2011 में 7वें पर पहुंचे (नेट वर्थ 8.2 अरब डॉलर)। विवाद: 2012 में SFIO ने शेयर ट्रेडिंग में धोखाधड़ी का चार्जशीट दाखिल किया, लेकिन 2014 में डिस्चार्ज हो गया।
मोदी सरकार बनने के बाद अडानी की संपत्ति में विस्फोटक वृद्धि हुई, मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेटाइजेशन (एयरपोर्ट्स, पोर्ट्स), रिन्यूएबल एनर्जी पर फोकस और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी नीतियों से। 2014 में नेट वर्थ 8 अरब डॉलर से बढ़कर 2022 में 140 अरब डॉलर (लगभग 17.5 गुना) हो गई।
ग्रुप की मार्केट कैप 6.5 अरब डॉलर से 223 अरब डॉलर (34 गुना) हो गई। 2014-2019 में 121% वृद्धि (50,400 करोड़ से 1.1 लाख करोड़ रुपये)। 2020-2022 में 20 गुना (7.3 अरब से 140 अरब डॉलर)। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद गिरावट आई, लेकिन फिर रिकवर हो गई।
अडानी एंटरप्राइजेज शेयर 2014 में 489 रुपये से काफी बढ़ गया है और आज (17 नवंबर 2025) दोपहर तक के नवीनतम उपलब्ध डेटा के अनुसार, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (NSE: ADANIENT) का शेयर मूल्य ₹2,516.80 है। यह पिछले बंद मूल्य से ₹28.60 (+1.15%) की बढ़त पर ट्रेड कर रहा है। यह अपने हाइएस्ट पीक पर जब पहुंचा था तब 2,930.45 पर था।
आरोप है कि अडानी समूह ने अपने राजनीतिक सहयोग से कई क्षेत्रों में मोनोपली कायम कर ली। अडानी ने सरकारी नीलामियों में जीत हासिल की, जहां नियमों में बदलाव (जैसे अनुभव की कमी को अनदेखा) से फायदा हुआ। आज उनका भारतीय बंदरगाह क्षेत्र पर एक चौथाई के करीब (24 प्रतिशत) पर कब्ज़ा है।
इंटरनेशनल पैसेंजर ट्रैफिक बिजनेस पर उनका एक तिहाई कब्ज़ा है। मुंबई एयरपोर्ट पर उनका कब्ज़ा 74 प्रतिशत का है और 2018 में उन्हें 6 एयरपोर्ट 50 साल के लिए दे दिए गए। सरकार की पांच साल के लिए होती है, लेकिन एयरपोर्ट 50 साल के लिए दे दिए गए।
अहमदाबाद का एयरपोर्ट सबसे ज्यादा ट्रैफिकवाला है, जो मोदीजी और अडानी के राज्य का है, वह भी अडानी को दे दिया गया। इसके अलावा लखनऊ, पटना, मंगलुरु, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी एयरपोर्ट भी PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर दे दिए गए। अन्य बोली कर्ता एमजीआर और कोचीन इंटरनेशन ताकते रह गये।
वास्तविक नीलामी फरवरी 2019 में पूरी हुई (गुवाहाटी की बोली 26 फरवरी 2019 को), लेकिन प्रक्रिया दिसंबर 2018 से शुरू हुई थी, इसलिए इसे ‘2018 के एयरपोर्ट्स’ कहा जाता है। आज अडानी समूह कोयले का सबसे बड़े आयातक है और सौर ऊर्जा में देश का सबसे बड़ा प्लेयर भी , उसके पास ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट भी है।
आरोप लगते रहे हैं कि विदेश में मोदी सरकार ने अडानी को आगे बढ़ाया और संकट में मदद भी की। मोदी की विदेश यात्राओं के बाद अक्सर अडानी के डील्स होते हैं, जिसे ‘इनवेस्टमेंट डिप्लोमेसी’ कहा जाता है। यह भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ाने के लिए, लेकिन कई बार पड़ोसियों से तनाव बढ़ा।
2015 में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद 2 अरब डॉलर का कोयला पावर डील (गोड्डा प्लांट) हुई। 2023 में हिंडनबर्ग के बाद बांग्लादेश ने कीमत कम करने की मांग की, लेकिन डील बनी रही। श्रीलंका के साथ 2022 में मोदी के दबाव से विंड प्रोजेक्ट (442 मिलियन डॉलर) और कोलंबो पोर्ट टर्मिनल डील हुई।
2023 में US DFC ने 553 मिलियन डॉलर का लोन दिया (चीन को काउंटर करने के लिए)। 2024 में श्रीलंका की सरकार ने इसे रद्द किया, लेकिन भारत ने डिप्लोमेसी से बचाया। इजरायल में 2023 में हैफा (हाइफा) पोर्ट 1.2 अरब डॉलर में खरीदा; मोदी की यात्रा के बाद ड्रोन डिफेंस डील्स हुई।
ऑस्ट्रेलिया (कारमाइकल माइन), केन्या (JKIA एयरपोर्ट, 2.5 अरब डॉलर की डील की गई थी लेकिन प्रोटेस्ट से रद्द की गई) और तंजानिया पोर्ट डील में भारत सरकार ने अडानी समूह की मदद की। भारत सरकार के सहयोग से ही अडानी समूह हिंडनबर्ग रिपोर्ट केस से राहत पा सका और यूएस चार्जशीट ( 25 करोड़ डॉलर की ब्राइबरी) मामले में भी।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं
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