नई दिल्ली। लाल किला ब्लास्ट से चर्चा में आए फरीदाबाद के अल फलाह मेडिकल विश्वविद्यालय के बारे में द लेंस को चौंकाने वाली जानकारी मिली है। इस मेडिकल यूनिवसिटी का कर्ताधर्ता और वर्तमान कुलाधिपति निवेशकों से ठगी के मामले में तिहाड़ जेल की सैर कर चुका है।
अल-फ़लाह विश्वविद्यालय का वर्तमान कुलाधिपति, जवाद अहमद सिद्दीकी इंदौर के महू का रहने वाला है। पुराने अखबारों के अभिलेखों से पता चलता है कि 2000 की शुरुआत में, जवाद पर अल-फ़लाह इन्वेस्टर लिमिटेड नामक एक समूह पर संदिग्ध निवेश योजनाएँ चलाने का आरोप लगा था। जिसको लेकर जवाद अहमद सिद्दकी और अन्य को गिरफ्तार किया गया था और दिल्ली की अदालतों में मामले दर्ज किए गए थे।

कंपनी और ट्रस्ट के रिकॉर्ड से पता चलता है कि आज के अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख के रूप में वही नाम फिर से उभर रहा है, जो अल-फलाह स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर का संचालन करता है। यह कॉलेज अब अपने कई डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद गहन जांच के दायरे में है। द लेंस को जानकारी मिली है कि जवाद के मेडिकल यूनिवर्सिटी को यूजीसी की मान्यता 2015 में मोदी सरकार में ही मिली।
जवाद के साथ उसके दो भाई भी तिहाड़ की हवा खा चुके
अंग्रेजी के जाने माने अख़बार मिली गैजेट ने इस समूह के द्वारा इस्लामिक इन्वेश के मामले में की जा रही धोखाधड़ी को लेकर तक़रीबन 25 साल पहले एक ख़बर प्रकाशित की थी। जानकारी के मुताबिल अल-फ़लाह इन्वेस्टर्स समूह का अध्यक्ष जवाद सिद्दीकी कई अन्य के साथ धोखाधड़ी से अरबों रुपये इकट्ठा करने के आरोप में जेल में बंद था।
जिसके बाद जव्वाद के भाई हमूद की अगुवाई वाली अल-फ़हाद ने भी अल-फ़लाह के नक्शेकदम पर चलने का फ़ैसला किया। उसकी भी जब धोखाधड़ी की दास्तान सामने आई उसका अध्यक्ष हमूद अहमद सिद्दीकी भूमिगत हो गया और कंपनी के कर्मचारी गायब हो गए।
ओखला स्थित कॉर्पोरेट कार्यालय पर ताला लगा दिया गया “AL-FALAH INVESTMENTS LIMITEDD” नामक इकाई को 1992 में मिनिस्ट्री ऑफ़ कारपोरेट अफेयर में पंजीकृत किया गया था, लेकिन इसकी वर्तमान स्थिति MCA पोर्टल पर “स्ट्राइक ऑफ” के रूप में सूचीबद्ध है। यानि इस कंपनी को प्रतिबंधित कर दिया गया। अल-फलाह के अध्यक्ष जवाद सिद्दीकी अपने दो छोटे भाइयों के साथ तिहाड़ जेल में बंद थे।
लाखों मुसलमानों से की थी वसूली
मिली गैजेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी के एक ब्रोशर के अनुसार, अल-फ़हद मुनाफे में भागीदारी के सिद्धांत पर काम करता था। लोगों, किसी समूह या ट्रस्ट द्वारा विभिन्न योजनाओं में निवेश की गई राशि का उपयोग विभिन्न लाभदायक उपक्रमों के वित्तपोषण के लिए किया जाना था।
इस प्रकार अर्जित लाभ को निवेशकों और कंपनी के बीच (80:20 के अनुपात में) साझा किया जाना था। समय से पहले निकासी की भी अनुमति थी, लेकिन उस स्थिति में कोई लाभ नहीं दिया जाता था। अल-फ़लाह अपने निवेशकों को हर साल 35-40 फ़ीसदी का लाभांश दे रहा था, जो आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय निवेश की परिस्थितियों में असंभव है।
कहा जाता है कि इस समूह ने हज जाने की योजना बना रहे मुसलमानों से लाखों रुपये वसूले थे। अब उनकी जमा राशि डूब गई है और उसका कोई अता-पता नहीं है।
मदरसों से भी वसूला पैसा
इस समूह ने निवेश के लिए मदरसों से भी फ़ितरा और ज़कात की रकम वसूल कर उन्हें नहीं बख्शा! 37 वर्षीय निवेशक अब्दुल मतीन नाम के एक व्यक्ति का कहना था कि उन्होंने अल-फ़हद की कोल्ड स्टोरेज और त्रैमासिक योजनाओं में 45,000 रुपये जमा किए थे। उन्हें 4,000 रुपये का एक साल का लाभांश दिया गया था।
मतीन ने बताया कि जब उन्हें कंपनी की संदिग्ध कार्यप्रणाली का एहसास हुआ, तो उन्होंने चेयरमैन से संपर्क किया और अपनी जमा राशि वापस करने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि चेयरमैन ने उनकी पूँजी और लाभांश दोनों देने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने मुझे सिर्फ़ लाभांश दिया, जमा राशि नहीं। उन्होंने हामूद सिद्दीकी को पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
आरबीआई ने लगाई पाबंदी
RBI ने अल फलाह और अल-फ़हद के पंजीकरण आवेदन को खारिज कर दिया था। इसका मतलब था कि कंपनी एक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान के रूप में भी काम नहीं कर सकती थी। कंपनी को धन इकट्ठा करने से मना किया गया है। अधिनियम 45MB (2) के अनुसार, यह RBI की पूर्व अनुमति के बिना अपनी संपत्ति का निपटान नहीं कर सकता है।
यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि इस बंद हो चुकी कंपनी में निवेशकों का कितना पैसा डूबा। न्यूज क्लिक के 2004 में छपी एक ख़बर विशेष रूप से “छद्म इस्लामी वित्त कंपनियों के खिलाफ चेतावनी दी गई थी, जिनकी त्वरित लाभ कमाने की मनोवृत्ति ने पहले ही इस मुद्दे को काफी नुकसान पहुंचाया है,” जिसमें “अल-फलाह जैसी कंपनियों” का उदाहरण देते हुए एक ऐसी संस्था का उदाहरण दिया गया था जो शरिया के नाम पर भोले-भाले लोगों को लूटना जारी रखी है।
यूनिवर्सिटी क्या कहा?
फरीदाबाद स्थित अल फलाह विश्वविद्यालय ने बुधवार को कहा कि उसका उन दो डॉक्टरों से कोई संबंध नहीं है, जिनमें से एक को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने ‘‘अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी मॉड्यूल’’ के संबंध में गिरफ्तार किया है और दूसरा दिल्ली विस्फोट का मुख्य संदिग्ध है। विश्वविद्यालय ने कहा कि उनका उन दो डॉक्टरों से कोई संबंध नहीं है, जो उन्होंने अपनी आधिकारिक हैसियत से किए थे।
अल-फ़लाह की कुलपति डॉ. भूपिंदर कौर आनंद ने विश्वविद्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा, “हमें पता चला है कि हमारे दो डॉक्टरों को जाँच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि विश्वविद्यालय का इन लोगों से कोई संबंध नहीं है, सिवाय इसके कि वे विश्वविद्यालय में आधिकारिक पदों पर कार्यरत हैं।”

