नई दिल्ली। 2025 की लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट ने भारत में गंभीर वायु प्रदूषण संकट का खुलासा किया है। दिल्ली में स्मॉग के बढ़ते खतरे के बीच आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में पीएम 2.5 के कारण 17.2 लाख मौतें हुई हैं, यह मौतें 2010 से 38 फीसदी ज्यादा हैं।
यह घातक प्रभाव मुख्यतः जीवाश्म ईंधन के उपयोग, विशेष रूप से कोयला-चालित संयंत्रों और पेट्रोल-चालित वाहनों से उत्पन्न हुआ है। इसकी आर्थिक लागत लगभग 340 अरब अमेरिकी डॉलर थी, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 9.5 फीसदी है।
गौरतलब है कि हिन्दुस्तान में सार्वजनिक यातायात की खस्ताहाल स्थिति की वजह से पिछले वर्षों में निजी वाहनों की खरीदी बढ़ी है।
मृत्यु के अनुमानों पर कुछ सरकारी विवादों के बावजूद, विशेषज्ञ इस स्थिति को भयावह बताते हैं तथा जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तत्काल प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने और टिकाऊ ऊर्जा परिवर्तन की मांग करते हैं।
पीएम 2.5, 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले सूक्ष्म कणों को कहते हैं, जो मानव बाल की चौड़ाई से लगभग 30 गुना छोटे होते हैं। अपने सूक्ष्म आकार के कारण, पीएम 2.5 फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकता है और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकता है, जिससे गंभीर श्वसन और हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
अल्पकालिक संपर्क से हृदय और फेफड़ों की बीमारियों, अस्थमा के दौरे और श्वसन संबंधी लक्षणों के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है, जबकि दीर्घकालिक संपर्क से अकाल मृत्यु, फेफड़ों के कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोगों और फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों, बुजुर्गों और पहले से ही स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोगों जैसे कमजोर समूहों को इन प्रभावों का सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है।
सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीएम 2.5 को विश्व स्तर पर सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक बताया है तथा इसके स्रोतों पर नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है।
भारत का वायु प्रदूषण संकट मुख्यतः जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्पन्न मानवजनित पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण है। अकेले कोयला बिजली संयंत्रों के कारण लगभग 3,00,000 मौतें हुईं, जबकि पेट्रोल वाहनों के कारण 2022 में लगभग 2,69,000 मौतें हुईं। पारंपरिक ईंधन से होने वाले घरेलू प्रदूषण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मृत्यु दर अधिक है।
कोरोना से ज्यादा मौतें
पीएम 2.5 के संपर्क में आने से होने वाली मौतों की संख्या उस वर्ष के आधिकारिक कोविड-19 से तीन गुना ज़्यादा है, जिससे यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति बन गई है। रिपोर्ट के निष्कर्ष एक कड़ी चेतावनी देते हैं कि अगर ठोस हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर, मधुमेह और मनोभ्रंश जैसी प्रदूषण संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं।
वायु प्रदूषण के आर्थिक परिणाम विनाशकारी
भारत में वायु प्रदूषण के आर्थिक परिणाम विनाशकारी हैं, जिसमें समय से पहले होने वाली मौतों की लागत लगभग 339.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 9.5 फीसदी है।
स्वास्थ्य प्रभावों के अलावा, प्रदूषण उत्पादकता को कम करता है, स्वास्थ्य देखभाल व्यय बढ़ाता है, और जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, जो बढ़ती गर्मी और पर्यावरणीय गिरावट के माध्यम से स्वास्थ्य परिणामों को खराब करता है।
2024 में कम कार्बन उत्सर्जन वाली स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की भारत की तत्परता में गिरावट आई है, जो आगे आने वाली चुनौतियों का संकेत है। प्रदूषण नियंत्रण, जन स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई से निपटने वाली एकीकृत नीतियाँ इन प्रवृत्तियों को उलटने और असुरक्षित समुदायों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।
चिंताजनक रिपोर्ट सामूहिक जिम्मेदारी
लैंसेट की यह चिंताजनक रिपोर्ट सहानुभूति, जिम्मेदारी और न्याय पर आधारित सामूहिक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है। प्रदूषण से कमज़ोर तबके को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए नागरिकों, नीति-निर्माताओं और उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा, कड़े उत्सर्जन मानकों और व्यापक जागरूकता के लिए प्रेरित करना होगा।
वायु प्रदूषण केवल एक पर्यावरणीय या आर्थिक मुद्दा नहीं है; यह एक गंभीर स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय संकट है।
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