वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट को भले ही एलआईसी और अडानी समूह ने खारिज कर दिया है, लेकिन यह मामला बहुत गंभीर है, जिसमें अमेरिकी अखबार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अडानी समूह को कथित रूप से फायदा पहुंचाने के लिए एलआईसी ने 3.9 अरब डॉलर यानी करीब 33 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया।
अखबार का दावा है कि कर्ज में डूबे अडानी समूह को उबारने के लिए मई, 2025 में सुनियोजित तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारतीय जीवन बीमा निगम के जरिये यह निवेश करवाया गया। इस रिपोर्ट के बाद एलआईसी ने बकायदा बयान जारी कर कहा है कि, यह आरोप कि एलआईसी के निर्णयों को बाहरी कारकों से प्रभावित किया जाता है झूठा और सच्चाई से कोसों दूर है।
उसका यह भी कहना है कि रिपोर्ट में जिस दस्तावेज का दावा किया गया है, एलआईसी वैसे दस्तावेज तैयार नहीं करता और निवेश संबंधी निर्णय स्वतंत्र रूप से स्वयं लेता है। इसी तरह से अडानी समूह ने भी द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को खारिज किया है।
हालांकि अभी यह देखा जाना बाकी है कि क्या एलआईसी और अडानी समूह वाशिंगटन पोस्ट के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई भी कर रहे हैं? यही बात वाशिंगटन पोस्ट के लिए भी कही जा सकती है कि क्या वह एलआईसी और अडानी समूह के बयानों के बावजूद अपनी रिपोर्ट पर कायम है?
लेकिन इस रिपोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार की दुखती रग पर हाथ तो धर ही दिया है, जिस पर आरोप लगते हैं कि उसके सत्ता में आने के बाद से अडानी समूह ने चौतरफा वृद्धि की है, और सचमुच ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो, जहां उसने पैर न पसारे हों।
यह भी सच है कि 1991 की बाजार आधारित नई आर्थिक और उदारीकरण की नीतियों ने कोयला और ऊर्जा से लेकर बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोले हैं। अडानी समूह पर आरोप लग रहे हैं, तो उसकी वजहें भी साफ हैं, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में उसे हवाई अड्डों जैसे क्षेत्र के प्रबंधन का जिम्मा मिला, जिसे उसका कोई अनुभव ही नहीं था।
यही नहीं इस समूह के अनुकूल नीतियां भी बदली गईं। इससे पहले फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि किस तरह से अडानी समूह ने इंडोनेशिया से कम दाम में कोयला खरीदा था ज्यादा दाम दिखाए और उपभोक्ताओं को महंगी बिजली बेची। कांग्रेस ने वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की जांच संसद की लोक लेखा समिति से कराने की मांग की है।
सरकार को इससे परहेज नहीं करना चाहिए, इसलिए भी क्योंकि यह पहला मौका नहीं है, जब अडानी समूह पर ऐसे आरोप लगे हैं। दरअसल यह मामला देश की साख से भी जुड़ा है और यह पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर एक खास औद्योगिक समूह को बने बनाए सरकारी उपक्रमों की कीमत पर क्यों फलने-फूलने दिया जा रहा है?

