Delhi world’s most polluted city: दिये की लौ से रोशन होने वाली दीवाली इस बार दिल्ली-एनसीआर में जहरीली धुंध और कानफोड़ू शोर की भेंट चढ़ गई। सुप्रीम कोर्ट के ‘ग्रीन पटाखों’ वाले सख्त नियम और सरकारों के चमकदार वादों के बीच, पटाखों की बौछार ने हवा को दमघोंटू बना दिया। नतीजा? दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर साबित हुआ जहां सूक्ष्म कणों का स्तर सामान्य से 59 गुना ज्यादा पहुंच गया। यह सिर्फ एक रात की कहानी नहीं यह भारत के करोड़ों शहरवासियों की सर्दी भर की जद्दोजहद है, जहां खुशियां प्रदूषण की भारी कीमत पर बिक रही हैं।
जहरीली दिवाली जो सांसों को दम तोड़ रही है
दीवाली की रात को पटाखों की चमक ने आसमान रंगीन कर दिया, लेकिन हवा को काला कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और आसपास के इलाकों के लिए सिर्फ ‘ग्रीन पटाखों’ की अनुमति दी थी वो पटाखे जो कम धुआं फैलाते हैं और वो भी सिर्फ शाम 8 से रात 10 बजे तक। लेकिन हकीकत में नियमों की ऐसी अनदेखी की गई कि आधी रात के बाद भी धमाके गूंजते रहे। नतीजा? दिल्ली-एनसीआर में हवा का हाल इतना बुरा हो गया कि पीएम 2.5 (सूक्ष्म कण जो फेफड़ों में घुसकर बीमारियां फैलाते हैं) का स्तर कई जगहों पर सामान्य से 30 गुना ज्यादा पहुंच गया।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से साफ है कि यह पिछले चार सालों में सबसे बुरा प्रदर्शन था। 2021 में पीएम 2.5 का स्तर 728 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंचा था, लेकिन 2025 में रात 11 बजे से 1 बजे के बीच यह 675 तक जा पहुंचा। मंगलवार सुबह दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 351 पर पहुंच गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है।
स्विस कंपनी आईक्यूएयर के मुताबिक दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बना, जहां पीएम 2.5 विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 59 गुना ज्यादा था।एनसीआर के बाकी शहरों का हाल भी कुछ बेहतर नहीं। गुरुग्राम में एक्यूआई 370, गाजियाबाद 324, नोएडा 320, और फरीदाबाद 268 रहा। हरियाणा के जींद में तो 421 तक पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ स्तर है।
उत्तर प्रदेश के हापुड़ (314) और गुजरात के नंदेसरी (303) जैसे शहर भी इस लिस्ट में शामिल हैं। पूरे देश में 264 शहरों में से करीब 200 में एक्यूआई ‘बहुत खराब’ या उससे ऊपर था। नोएडा, लखनऊ, मेरठ जैसे शहरों ने भी हवा को जहरीला बना दिया।
प्रदूषण के जिम्मेदार: पटाखे ही नहीं, कई वजहें
पटाखे का योगदान: ग्रीन पटाखों के नाम पर नकली और पारंपरिक पटाखे बाजार में बिके और फूटे। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कहा कि पटाखे मुख्य वजह नहीं, लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं।
पराली जलाना: पंजाब में 10 दिनों में पराली जलाने की घटनाएं 353 तक पहुंच गईं, तीन गुना बढ़ोतरी। लेकिन आईआईटी-कानपुर के अध्ययन से पता चला कि दिवाली पर इसका योगदान सिर्फ 0.8% था।
भारत में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत 134 शहरों में पीएम10 को 40% कम करने का लक्ष्य है, लेकिन दिवाली ने दिखा दिया कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद प्लान फेल हो रहे हैं। आने वाले दिनों में हवा ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ के बीच रहेगी।
कानफोड़ू पटाखों ने तोड़ीं सारी सीमाएं
हवा के साथ-साथ दिवाली ने कान भी दुखाए। पटाखों के धमाकों ने शोर का स्तर इतना बढ़ा दिया कि दिल्ली के 26 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से 23 पर सामान्य सीमा टूट गई। रात में शांत इलाकों में 40 डेसिबल (डीबी) की सीमा होनी चाहिए, लेकिन हकीकत में यह दोगुना हो गया।
सबसे ज्यादा शोर कहां?
करोल बाग में रात 11 बजे 93.5 डीबी पहुंच गया , व्यावसायिक इलाके की 55 डीबी सीमा से कहीं ज्यादा। औसत 88.4 डीबी रहा, जो पिछले साल से लगभग वैसा ही। बवाना में 77.9 डीबी, और श्री अरबिंदो मार्ग पर 75.7 डीबी तक।
पिछले सालों से तुलना: 2024 में 22 स्टेशन प्रभावित, 2023 में 13। इस बार बढ़ोतरी हुई। आधी रात के बाद भी धमाके जारी रहे।
अलीगढ़: यूपी के इस शहर में साइलेंस जोन (एएमयू) में 61 डीबी, आवासीय इलाके में 76 डीबी, और व्यावसायिक सासनी गेट में 83.6 डीबी। सभी जगह दोगुना से ज्यादा!
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2022 में कहा था कि शोर को हवा जितना ही गंभीर मानो। लेकिन दिवाली पर पटाखों ने दिखा दिया कि नियम सिर्फ कागजों पर हैं। यह शोर न सिर्फ नींद उड़ाता है, बल्कि तनाव और सुनने की क्षमता को भी नुकसान पहुंचाता है।
प्रदूषण से लड़ने का वक्त आ गया
दिल्ली-एनसीआर हर सर्दी स्मॉग की चपेट में आता है, जहां दो करोड़ से ज्यादा लोग सांस की जद्दोजहद लड़ते हैं। लेकिन यह दर्द सिर्फ राजधानी का नहीं – पंजाब-हरियाणा की पराली से लेकर यूपी-राजस्थान के कोनों तक, यह पूरे भारत की साझा चुनौती है। सरकारें ग्रीन पटाखों, पानी की फुहारें और सख्त कार्रवाई के वादे तो करती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर ये कदम अभी भी अधूरे साबित हो रहे। विशेषज्ञ चेताते हैं कि अक्टूबर-नवंबर की ठंडी, स्थिर हवाएं प्रदूषण को एक जाल की तरह जकड़ लेती हैं, जो आने वाले महीनों को और कठिन बना देती हैं।
क्या करें हम?
दिवाली को पटाखों की बजाय दीयों की रोशनी दें, पराली जलाने के बदले वैकल्पिक खेती अपनाएं और सड़कों पर कम वाहन दौड़ाएं। सरकार से सख्त निगरानी और पारदर्शी डेटा की मांग करें। दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं यह प्रकाश का प्रतीक है, जो साफ हवा और शांत रातों के साथ ही सच्ची खुशियां बांट सकता है। अगर आज हमने फैसला लिया, तो अगली दिवाली ‘हरित’ और ‘मधुर’ होगी, न कि ‘काली’। डॉक्टरों की सलाह है कि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का उपयोग करें, बच्चों और बुजुर्गों के सेहत का ख्याल रखें, अस्थमा पीड़ितों को ज्यादा समय बंद कमरों में रखें जिससे हवाओं में घुली जहर से बचाव संभव हो।

