वाशिंगटन। अमेरिका के कोने-कोने से लाखों लोग शनिवार को सड़कों पर उतर आए। ‘नो किंग्स’ (No Kings protests) नाम से चलाए गए इन विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार पर तानाशाही की राह अपनाने का आरोप लगाया गया। न्यूयॉर्क से लेकर लॉस एंजिल्स तक छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक करीब 2700 जगहों पर रैलियां हुईं। इसमें लगभग 70 लाख लोगों ने हिस्सा लिया जो जून के पहले दौर से 20 लाख ज्यादा है।
क्यों उतरे लोग सड़कों पर?
ट्रंप प्रशासन की नीतियां लोगों का गुस्सा भड़का रही हैं। आप्रवासन अधिकारियों की बिना वजह हिरासतें, शहरों में सैनिकों की तैनाती, सरकारी बजट में कटौती, मतदान अधिकारों पर हमला और पर्यावरण सुरक्षा को कमजोर करना जैसे मुद्दे प्रदर्शनकारियों के केंद्र में रहे। वाशिंगटन में एक पूर्व मरीन सैनिक, शॉन हॉवर्ड ने कहा, “मैंने कभी विरोध नहीं किया, लेकिन अब लगता है लोकतंत्र खतरे में है। विदेशों में चरमपंथ से लड़ाई लड़ी अब घर में ही वैसा माहौल बन रहा है।”
इस पर हॉवर्ड ने चेतावनी दी कि ये कदम देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल सकते हैं।सैन फ्रांसिस्को के बीच पर सैकड़ों लोगों ने अपने शरीर से ‘नो किंग!’ लिखा। प्रदर्शनकारियों का कहना है की ट्रम्प तानशाह हैं, और अपनी आजादी के लिए लड़ना जरूरी है।
शहरों में धमाल और उत्साह
प्रदर्शन कहीं मार्च बने, तो कहीं पार्टियों जैसे लगे। न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वायर में हजारों लोग जमा हुए। ‘वी द पीपल’ वाले विशाल बैनर पर हस्ताक्षर हुए, मार्चिंग बैंड ने धुन बजाई। मेंढक के गुब्बारे वाले कोस्ट्यूम पहने लोग पोर्टलैंड के विरोध के प्रतीक बने। बोस्टन, शिकागो, अटलांटा के पार्कों में रैलियां हुईं।
पोर्टलैंड में शांतिपूर्ण रैली के बाद तनाव दिखाई दिया ।
अब क्या आगे?
जबकि ट्रंप समर्थकों का दावा है की ये रैलियां सरकारी बंद को लंबा खींच रही हैं। लेकिन प्रदर्शन ज्यादातर शांतिपूर्ण रहे पुलिस रिपोर्ट्स में कोई बड़ी घटना या गिरफ्तारी नहीं हुई। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में ये तीसरा बड़ा विरोध है। जून का पहला दौर आर्मी परेड के खिलाफ था। अभी हुए प्रदर्शनों में भी 200 से ज्यादा संगठनों ने समर्थन दिया। दुनिया भर में भी रोम में डेमोक्रेट्स अब्रॉड ने रैली की।

