छत्तीसगढ़ के बस्तर के कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा में 140 माओवादियों के आत्मसमर्पण करने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर के नक्सल मुक्त होने का ऐलान किया है, जो वाकई माओवादी हिंसा के खिलाफ एक निर्णायक कदम है। गृहमंत्री का दावा है कि अब दक्षिण बस्तर के ही कुछ इलाके तक माओवादी सिमट गए हैं।
बुधवार को ही बस्तर से सटे महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की मौजूदगी में माओवादी पार्टी की केंद्रीय समिति के बेहद असरदार नेता वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू दादा ने अपने हथियारबंद साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था और यह इस बात का संकेत है कि माओवादी पार्टी के महासचिव बसवाराजू की चार महीने पहले अबूझमाड़ के इलाके में मुठभेड़ में हुई मौत के बाद से यह हिंसक संगठन अपने आखिरी दिन गिन रहा है।
दरअसल कुछ महीने पहले जब गृहमंत्री अमित शाह ने अगले साल मार्च तक बस्तर और पूरे देश से माओवादियों के सफाए का ऐलान किया था, उसके बाद से माओवादी अपने कॉडर और रणनीति दोनों ही स्तर पर बेहद कमजोर होते जा रहे हैँ। हाल के महीनों में सुरक्षा बलों और नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस बल जिस समन्वय के साथ माओवादियों के खिलाफ निर्णायक अभियान चला रहे हैं, उसका श्रेय गृहमंत्री शाह को दिया जाना चाहिए।
निश्चित रूप से इस अभियान में नई प्रौद्योगिकी भी अपनी भूमिका निभा रही है, जिसकी वजह से माओवादियों का खुफिया तंत्र लगभग ध्वस्त हो चुका है और इसलिए सुरक्षा बल माओवादियों को उनके गढ़ में ही घेर पा रहे हैं। वरना एक समय ऐसा था, जब अविभाजित आंध्र प्रदेश में चलाए गए अभियान के बाद माओवादियों ने अबूझमाड़ को न केवल अपना गढ़ बना लिया था, बल्कि उसे ‘लिबरेटेड जोन’ के नाम से भी जाना जाने लगा था!
वास्तविकता यह भी है कि माओवादियों के पास संसदीय राजनीति में आने के मौके थे और आज भी हैं, जैसा कि चार दशक पहले नक्सल नेता (अब दिवंगत) विनोद मिश्र ने किया था। हिंसा किसी भी राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक सवालों का जवाब नहीं हो सकती। हिंसा को कोई भी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज स्वीकार नहीं कर सकता।
केंद्र और नक्सल प्रभावित राज्यों में चाहे जो भी सरकार रही हो, इस मामले में सबकी नीतियां तकरीबन एक जैसी रही हैं कि हथियार डालने के बाद ही माओवादियों के साथ किसी तरह की शांति वार्ता हो सकती है। बुधवार को गढ़िचिरौली में आत्मसमर्पण करने वाले भूपति उर्फ सोनू दादा ने बचे-खुचे माओवादियों के लिए राह दिखाई है।
आज यदि अबूझमाड़ और बस्तर का बड़ा हिस्सा माओवाद से मुक्त हो गया है, तो यह बंदूक से सत्ता हासिल करने की बात करने वाली माओवादियों की हिंसक विचारधारा की हार है, जिसने आदिवासियों को भारतीय राज्य के खिलाफ कंधे की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की है। माओवादियों की इस हार को ताकतवर भारतीय राज्य की जीत तक सीमित नहीं किया जा सकता। यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की जीत है, जिस पर आस्था जताने में बस्तर के आदिवासी हमेशा सबसे आगे रहे हैं।
यह भी पढ़ें : 170 माओवादियों के सरेंडर के बाद अमित शाह ने अबूझमाड़ को घोषित किया नक्सल आतंक से मुक्त

