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देश

देश में 18 फीसदी कम हो गए हाथी, लेकिन कैसे, जानिए क्‍या है ताजा रिपोर्ट में ?

अरुण पांडेय
अरुण पांडेय
Published: October 14, 2025 7:52 PM
Last updated: October 15, 2025 2:01 PM
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number of Elephant
Elephants bathing in the river. Pinnawala Elephant Orphanage. Sri Lanka
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लेंस डेस्‍क। भारत में हाथियों की आबादी में 17.81% की कमी दर्ज की गई है। 2021-25 के सिंक्रोनस ऑल इंडिया एलिफेंट एस्टिमेशन की रिपोर्ट में सामने आया है कि मौजूदा समय में भारत में एशियाई हाथियों की संख्‍या 22,446 रह गई है। यह 2017 के 27,312 के मुकाबले 4,065 कम है।

खबर में खास
कैसे की गई गणना?खतरों का भी जिक्र

लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि नई गणना पद्धति के कारण ये आंकड़े सीधे तुलनीय नहीं हैं और इसे नया आधार माना जाएगा।  

रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक हाथी पश्चिमी घाट में 11,934 हैं, इसके बाद उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र मैदानों में 6,559, शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों में 2,062 और मध्य भारत व पूर्वी घाट में 1,891 हैं। राज्यों में कर्नाटक 6,013 हाथियों के साथ पहले स्थान पर है, इसके बाद असम में 4,159, तमिलनाडु में 3,136, केरल में 2,785, उत्तराखंड में 1,792, और ओडिशा में 912 हैं।

पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में हाथियों की स्थिति 2022-23 की एक पुरानी रिपोर्ट को रद्द कर दिया था, क्योंकि पूर्वोत्तर में गणना में देरी हुई थी। अब जो नई रिपोर्ट सामने आई है उसमें हाथियों की संख्‍या में कमी दर्ज की गई है।

कैसे की गई गणना?

SAIEE 2021-25 के लिए भारत के जंगलों को 100 वर्ग किमी के सेलों में विभाजित किया गया, जिन्हें आगे 25 वर्ग किमी और 4 वर्ग किमी के ग्रिड में बांटा गया। यह डिजाइन 2006 से उपयोग किए जा रहे बाघ गणना कार्यक्रम से लिया गया है। इस ढांचे के तहत हाथियों और अन्य प्रजातियों के डेटा को मुख्य रूप से वितरण और सापेक्ष प्रचुरता को मैप करने के लिए एकत्र किया गया है।

रिपोर्ट में बताया गया कि 20 राज्यों के वन क्षेत्रों को छोटे ब्लॉकों या सेलों में विभाजित किया गया ताकि हाथी संकेतों, वनस्पति, अन्य स्तनधारियों की मौजूदगी और मानव गड़बड़ी जैसे संकेतकों को दर्ज किया जा सके।

SAIEE 2021-25 की खासियत जेनेटिक मार्क-रिकैप्चर मॉडल का उपयोग है, जिसमें हाथी के गोबर के नमूनों को एकत्र कर प्रयोगशालाओं में जांच की गई, हर नमूने की अलग पहचान के आधार पर उन्‍हें अलग किया गया। 20,000 से अधिक गोबर नमूनों का उपयोग कर, वैज्ञानिकों ने प्रमुख क्षेत्रों में 4,065 हाथियों की पहचान की।

चूंकि हाथियों में बाघों की तरह विशिष्ट शारीरिक चिह्न नहीं होते, गोबर से निकाला गया डीएनए शोधकर्ताओं को व्यक्तियों की पहचान और जनसंख्या घनत्व का अनुमान लगाने में मदद करता है। यह जेनेटिक डेटा, जमीनी सर्वेक्षणों के साथ मिलकर, अंतिम प्रचुरता अनुमान के लिए एक गणितीय मॉडल में उपयोग किया जाता है।

पहले की हाथी की गिनती पानी के गड्ढों और गोबर सड़न विधि पर निर्भर थीं, जहां गोबर जमा होने और सड़ने की गति से जनसंख्या घनत्व का अनुमान लगाया जाता था। हाल के दौर में इस दृष्टिकोण को 5 वर्ग किमी क्षेत्रों में नमूना ब्लॉक गणना के साथ गोबर सड़न डेटा को जोड़कर और फिर बड़े क्षेत्रों में अनुमान लगाने के लिए परिष्कृत किया गया था।

खतरों का भी जिक्र

नई रिपोर्ट में हाथी के रहने के ठिकानों पर मंडरा रहे खतरों का जिक्र है। पश्चिमी घाट, जहां पहले हाथी की बड़ी आबादी थी, अब भूमि उपयोग में बदलाव, जैसे कॉफी और चाय के बागानों का विस्तार, खेतों की बाड़बंदी और तेजी से विकास परियोजनाओं के कारण हाथी समूह अलग-थलग हो रहे हैं।

पश्चिमी घाट, शिवालिक पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र मैदानों में, जहां हाथी सबसे अधिक हैं, वहां आवास हानि, खंडन और रेलवे लाइनों, सड़कों, बिजली ढांचे, अतिक्रमण और अन्य भूमि उपयोग में बदलाव प्रमुख समस्या है।

मध्य भारत में खनन का दबाव एक बड़ी चिंता है। रिपोर्ट में पौधों का अतिक्रमण, मानव-प्रेरित गड़बड़ी और स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष को भी लगातार चुनौतियों के रूप में बताया गया है।

TAGGED:latest report on Elephantnumber of ElephantSAIEE 2021-25Top_News
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