लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज नीली दिखी। 13 साल सत्ता से दूर बसपा प्रमुख मायावती की यह बड़ी रैली थी। दावा 5 लाख समर्थकों के जुटाने का किया गया था। इतनी बड़ी भीड़ की पुष्टि हम नहीं करते, लेकिन जानकार बता रहे हैं, रैली अप्रत्याशित थी।
बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर रमाबाई अंबेडकर पार्क में आयोजित कार्यक्रम में मायावती ने एक घंटे से अधिक समय तक भाषण दिया। इस आयोजन के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को जिला और विधानसभा स्तर पर अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गई थीं। रमाबाई अंबेडकर स्थल पर कार्यकर्ताओं के रुकने का इंतजाम किया गया था। रैली के दौरान सुरक्षा के लिए कड़े प्रबंध किए गए थे।
यह रैली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए केवल एक राजनीतिक आयोजन नहीं थी, बल्कि यह एक मजबूत संदेश भी था कि दलित समुदाय का विश्वास मायावती पर अब भी बरकरार है। हालांकि, पार्टी का वोट बैंक बिखर गया है और उसकी राजनीतिक जमीन कमजोर हुई है, फिर भी मायावती की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
लखनऊ की इस रैली में दलित समुदाय की भारी भीड़ ने साबित कर दिया कि मायावती आज भी उनके लिए एक महत्वपूर्ण नेता हैं। लंबे समय बाद मायावती को इतने आत्मविश्वास और उत्साह के साथ मंच पर बोलते देखना बसपा कार्यकर्ताओं के लिए एक सकारात्मक संकेत रहा।
1984 में स्थापना के बाद से बसपा ने अपनी ताकत रैलियों के जरिए दिखाई और नेताओं को आगे बढ़ाया। लेकिन 2012 की हार के बाद पार्टी लगातार कमजोर होती गई। 2019 में सपा के साथ गठबंधन से 10 सांसद जीतने में सफलता मिली, लेकिन 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा।

आज बसपा के पास लोकसभा में कोई सांसद नहीं है और विधानसभा में केवल एक विधायक बचा है। वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट ने मायावती के सामने अपने मूल दलित वोटरों का भरोसा दोबारा हासिल करने की चुनौती खड़ी कर दी है।
2027 के लिए संदेश तो नहीं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसे केवल एक श्रद्धांजलि सभा समझना गलत होगा। यह आयोजन 2027 के लिए मायावती की रणनीति का एक प्रारंभिक संकेत है।
लखनऊ के सीनियर जर्नलिस्ट कुमार भवेश्चचंद्र इस रैली को कैसे देखते हैं? द लेंस के इस सवाल पर वो कहते हैं कि मायावती ने अपने भाषण की शुरुआत नीचे खड़े समर्थकों को संबोधित करते हुए कही कि आपने पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए। जाहिर है मायवती उम्मीदों के मुताबिक समर्थकों को बुला पाने में सफल रहीं।
मायावती के भाषण में सबसे दिलचस्प बात विरोधियों पर हमले की थी। मायवती ने सीधे तौर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर हमले किए, लेकिन भाजपा को बख्शते नजर आईं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि इसी वजह से मायवाती इतना बड़ा आयोजन कर पाईं। उन्होंने योगी सरकार की तारीफ भी की, जिसके मायने हैं।
तो इसका मतलब क्या है? इस पर कुमार भवेश्चचंद्र कहते हैं कि मायवती का अपने कैडर को संदेश साफ था कि नाराज होना है तो बीजेपी से नहीं कांग्रेस और सपा ही काफी है।
मायावती ने क्या कहा?

मायावती ने कहा कि भाजपा सरकार ने कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन उनका लाभ जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच रहा। मायावती ने लखनऊ के स्मारकों और पार्कों के रखरखाव का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने कांशीराम के सम्मान में स्मारक बनवाया था और इसके रखरखाव के लिए टिकट की व्यवस्था की थी। लेकिन सपा सरकार ने इस पैसे का उपयोग नहीं किया, जिससे स्मारकों की हालत खराब हो गई।
मायावती ने कहा कि उन्होंने वर्तमान मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर ध्यान देने का आग्रह किया था। भाजपा सरकार ने उनके अनुरोध पर टिकट से प्राप्त धन को स्मारकों के रखरखाव में उपयोग करने का वादा किया, जिसके लिए बसपा उनकी आभारी है।
मायावती ने ईवीएम के विरोध का जिक्र करते हुए कहा कि भविष्य में फिर से बैलट पेपर से चुनाव हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सभी जातिवादी पार्टियां एक जैसी हैं और दलित समाज को बांटने की साजिश रची जा रही है। धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।
मायवती के भतीजे आकाश आनंद ने कहा कि आरक्षण का लाभ अभी पूरी तरह से नहीं मिल पाया है। बसपा बाबा साहेब अंबेडकर के रास्ते पर चल रही है और मायावती कांशीराम के अधूरे सपनों को पूरा करने में जुटी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की जनता को मायावती की जरूरत है और बसपा को मजबूत कर सत्ता में लाने का समय है। बसपा की सरकार बनने पर ही आरक्षण का सही लाभ मिलेगा।