[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
उत्तर भारत में ठंड का कहर, बर्फबारी और शीतलहर जारी, दिल्ली में ठंड और प्रदूषण की दोहरी मार
इंडिगो क्राइसिस के बाद DGCA ने लिया एक्शन, अपने ही चार इंस्पेक्टर्स को किया बर्खास्त,जानिये क्या थी वजह
ट्रैवल कारोबारी ने इंडिगो की मनमानी की धज्जियां उधेड़ी
287 ड्रोन मार गिराने का रूस का दावा, यूक्रेन कहा- हमने रक्षात्मक कार्रवाई की
छत्तीसगढ़ सरकार को हाई कोर्ट के नोटिस के बाद NEET PG मेडिकल काउंसलिंग स्थगित
विवेकानंद विद्यापीठ में मां सारदा देवी जयंती समारोह कल से
मुखर्जी संग जिन्ना की तस्‍वीर पोस्‍ट कर आजाद का BJP-RSS पर हमला
धान खरीदी में अव्यवस्था के खिलाफ बस्तर के आदिवासी किसान सड़क पर
विश्व असमानता रिपोर्ट 2026: भारत की राष्ट्रीय आय का 58% हिस्सा सबसे अमीर 10% लोगों के पास
लोकसभा में जोरदार हंगामा, विपक्ष का वॉकआउट, राहुल गांधी ने अमित शाह को दे दी चुनौती
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
लेंस संपादकीय

तांदुला इको-रेसॉर्टः नदियों का सौदा करने वाले

Editorial Board
Editorial Board
Published: October 1, 2025 8:45 PM
Last updated: October 1, 2025 8:45 PM
Share
Tandula eco resort
SHARE

इको-टूरिज्म के नाम पर जल, जंगल और जमीन का किस मनमाने तरीके से सौदा किया जा रहा है, इसका एक उदाहरण छत्तीसगढ़ के तांदुला बांध को एक रेसॉर्ट के लिए लीज पर दिए जाने से संबंधित द लेंस की एक बेहद संवेदनशील रिपोर्ट में सामने आया है।

दुखद यह है कि राज्य के बालोद जिले में स्थित यह बांध छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी जल परियोजनाओं में से एक है, जिसका निर्माण औपनिवेशक शासन के दौरान 1910 से 1921 के बीच किया गया था।

शुरुआती वर्षों में इस बांध का उपयोग पेयजल की आपूर्ति और सिंचाई के लिए होता था और बाद में यह भिलाई इस्पात संयंत्र की जीवनरेखा भी बन गया। दशकों से आसपास के गांवों के लोग निस्तारी और मछलीपालन के लिए इसका उपयोग करते ही आए हैं।

लेकिन हाल ही में इसे ईको-रेसॉर्ट के नाम पर एक निजी उद्यम को लीज पर दे दिया गया है, और इसे ‘मिनी गोवा’ के नाम पर प्रचारित किया जा रहा है।

क्या यह बताने की जरूरत है कि जिस गोवा के नाम पर इस इको रेसार्ट को प्रचारित किया जा रहा है, वहां बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन से चिंतित होकर सुप्रीम कोर्ट को अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए आगे आना पड़ा था।

वास्तव में प्राकृतिक रूप से खूबसूरत छत्तीसगढ़ के इस पूरे इलाके को जिस तरह से विकसित किया गया है, उससे तांदुला और सूखा नाला नदियां संकट में आ गई हैं। यही नहीं, इस रेसॉर्ट की बाड़बंदी के कारण आसपास के गांव के लोग तांदुला बांध से वंचित हो गए हैं।

यह कथित विकास की ऐसी तस्वीर है, जिसे पूरे देश में अलग अलग जगहों पर दोहराया जा रहा है। हाल ही में उत्तराखंड औऱ हिमाचल में हुई भीषण बारिश और बाढ़ ने वहां तबाही मचाई, जहां विकास के नाम पर अंधाधुंध तरीके से आवासीय और व्यावसायिक इमारतें खड़ी कर दी गईं हैं।

दर्जनों रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि पहाड़ों में आने वाली तबाही के लिए बेतरतीब विकास जिम्मेदार है। यही नहीं, ऐसे विकास और आपदाओं का सर्वाधिक खामियाजा स्थानीय लोगों को उठाना पड़ता है, क्योंकि इससे उनकी आजीविका सीधे प्रभावित होती है।

दरअसल प्राकृतिक संसाधनों और जलस्रोतों को जबसे सरकारों ने व्यावसायिक संसाधनों में बदल कर निजी कंपनियों के हाथों उनका सौदा करना शुरू किया है, उससे पारिस्थितिकी संतुलन तो बिगड़ ही रहा है, स्थानीय लोगों के सहअस्तित्व के लिए भी चुनौती पेश आ रही है।

करीब डेढ़ दो दशक पहले छत्तीसगढ़ में ही यहां कि एक प्रमुख नदी शिवनाथ के एक हिस्से को एक ठेकेदार के हाथों बेच देने का एक सनसनीखेज मामला सामने आया था!

महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ के मुला रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का मामला तो एकदम ताजा है, जिसे वहां कि पिछली महाविकास अघाड़ी सरकार ने मंजूरी दी थी, जिसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों के विरोध के कारण वापस लेना पड़ा था, लेकिन अब वहां कि महायुति सरकार ने उसे फिर से मंजूरी दे दी है।

दरअसल ऐसे हर मामले में सरकारें और उनकी नौकरशाही स्थानीय लोगों की चिंताओं और उनकी जरूरतों पर गौर किए बिना फैसला लेती हैं। तांदुला के मामले में भी यह साफ देखा जा सकता है, जहां स्थानीय लोगों की शिकायत है कि यह रिसॉर्ट कुछ दूर बनाया जाता, तो उनकी आजीविका प्रभावित नहीं होती। पर क्या सरकार उनकी सुनेगी?

तांदुला डैम पर द लेंस की यह वीडियो रिपोर्ट देखें

TAGGED:Editorial
Previous Article NCRB Report 2023 NCRB Report 2023 : किस राज्‍य और शहर में महिलाओं के खिलाफ अपराध सबसे अधिक?
Next Article छत्तीसगढ़ में रात 12 बजे के बाद बार-क्लब खुले मिले तो लाइसेंस होगा रद्द
Lens poster

Popular Posts

शिवसेना का गौ रक्षा हेतु महा हस्ताक्षर अभियान

रायपुर। शिवसेना (Shiv Sena) ने गौ रक्षा के लिए प्रदेशभर में हस्ताक्षर अभियान शुरू किया…

By दानिश अनवर

वक्फ बिल पर बोलीं सोनिया गांधी, यह विधेयक संविधान पर एक बेशर्म हमला

नई दिल्ली। वक्फ बिल को लेकर सोनिया गांधी का बनाय सामने आ चुका है। कांग्रेस सांसद…

By Amandeep Singh

छत्तीसगढ़ के बंधुआ मजदूर कांड में अब तक FIR नहीं, आखिर संचालक पर किसकी मेहरबानी?

SSP से महीने भर पहले भी हुई थी शिकायत, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, thelens.in…

By नितिन मिश्रा

You Might Also Like

Voter deletion
लेंस संपादकीय

राहुल के आरोपों की जांच क्यों नहीं करता चुनाव आयोग

By Editorial Board
English

Election commission : hollowed defiance

By Editorial Board
CG NUN ARREST CASE
लेंस संपादकीय

धर्म के नाम पर

By Editorial Board
Rohit And Virat
लेंस संपादकीय

टेस्ट क्रिकेट में एक युग का अंत

By Editorial Board

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?