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असम बोडोलैंड निकाय चुनाव में बीजेपी को झटके के क्‍या हैं मायने, बीपीएफ सत्‍ता पर काबिज

Lens News
Last updated: September 27, 2025 9:44 pm
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Bodoland Territorial Council elections
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लेंस डेस्‍क। असम के हाल ही में हुए बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी)  चुनाव में पांच साल बाद बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने सत्ता में वापसी कर ली है। इसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। वहीं कांग्रेस ने 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली है। बीटीसी के शनिवार को चुनाव परिणाम घोषित हुए।

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ), जिसका नेतृत्व पूर्व विद्रोही नेता हग्रामा मोहिलारी कर रहे हैं, उसने 40 सीटों वाली काउंसिल में 28 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। दूसरी ओर, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) को 7 और बीजेपी को केवल 5 सीटें मिलीं।

 इस बार बीजेपी और यूपीपीएल ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जो 2020 के परिणामों से बिल्कुल विपरीत है, जब दोनों के गठबंधन ने बीपीएफ को सत्ता से हटा दिया था। राजनीतिक विश्लेषक इन नतीजों को 2026 के विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मानकर चल रहे हैं।

पिछले 2020 के निकाय चुनाव में बीपीएफ 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा दल बनी थी, लेकिन बीजेपी और यूपीपीएल ने गठजोड़ कर सत्ता हासिल कर ली थी। उस समय बीजेपी ने 24 सीटों पर चुनाव लड़कर 9 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार उसने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। यूपीपीएल, जो वर्तमान में परिषद पर काबिज है, इस बार 8 सीटों पर आगे है। कांग्रेस ने 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली।

मतगणना के दौरान बीजेपी की ओर से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि पार्टी बीपीएफ के साथ मिलकर परिषद में सरकार बना सकती है, लेकिन अंतिम परिणामों का इंतजार करना होगा। बीजेपी के कुछ नेताओं ने मीडिया को बताया कि जनादेश स्पष्ट रूप से बंटा हुआ है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने प्रचार में जमकर हिस्सा लिया था, लेकिन नतीजे उनकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे।

आगे के लिए क्‍या हैं संकेत

यह परिणाम बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े करता है। बीटीआर में आदिवासी वोटों का बंटवारा और विकास योजनाओं, जैसे ओरुनोदोई योजना, का अपेक्षित प्रभाव न पड़ना बीजेपी के लिए चिंता का विषय है। विपक्षी नेता सुष्मिता देव ने इसे “राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता का फैसला” बताया।

दरअसल, बीजेपी और हिमंता बिस्वा सरमा सत्ता में आने के बाद से हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे को उभारने की कोशिश करते रहे हैं। सरमा ने मुस्लिम समुदाय के लिए “मियां” शब्द का इस्तेमाल किया और उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठियों से जोड़ा। हाल ही में बीजेपी ने एक विवादास्पद वीडियो जारी किया था, जिसमें दावा किया गया था कि अगर असम में बीजेपी की सरकार नहीं रही तो मुस्लिम समुदाय का कब्जा हो जाएगा और हिंदुओं पर अत्याचार होंगे।

यह वीडियो इस चुनाव को ध्यान में रखकर बनाया गया था, लेकिन बोडोलैंड के मतदाताओं ने बीजेपी और सरमा के इस नैरेटिव को नकार दिया। यही कारण है कि यह चुनाव बेहद अहम माना जा रहा है।

बीपीएफ का इतिहास

बीपीएफ का इतिहास देखें तो यह 2006 और 2011 में कांग्रेस सरकार का हिस्सा रही। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उसने कांग्रेस से नाता तोड़ा और 2021 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, लेकिन बाद में एनडीए को समर्थन दिया।

यह भी देखें : हथियारों के जखीरे वाला राजा भैया की पत्नी का सोशल मीडिया पोस्ट

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