नई दिल्ली। भारत के राज्यों की आर्थिक हालत पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG REPORT) की नई रिपोर्ट ने चौंकाने वाली जानकारी दी है। रिपोर्ट कहती है कि पिछले दस सालों में 28 राज्यों का कुल कर्ज 17.57 लाख करोड़ रुपये से उछलकर 59.60 लाख करोड़ रुपये हो गया जो तीन गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी है। यह आंकड़ा 2013-14 से 2022-23 तक का है और यह राज्यों की वित्तीय सेहत का पूरा लेखा जोखा पेश करता है। रिपोर्ट शुक्रवार 19 सितंबर को जारी हुई, और जब सीएजी संजय मूर्ति ने सभी राज्यों के वित्त सचिवों के साथ बैठक की। 2022-23 के आखिर में यह कर्ज राज्यों की कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 22.96 प्रतिशत था जो बताता है कि राज्यों की कमाई के मुकाबले कर्ज का बोझ कितना भारी हो गया है। जीएसडीपी मतलब राज्य में एक साल में बनी सभी चीजों और सेवाओं का कुल मूल्य।
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 2022-23 में पंजाब सबसे ऊपर था, जहां कर्ज जीएसडीपी का 40.35 प्रतिशत था। उसके पीछे नागालैंड (37.15 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (33.70 प्रतिशत) थे। दूसरी तरफ, सबसे कम कर्ज वाले राज्यों में ओडिशा (8.45 प्रतिशत), महाराष्ट्र (14.64 प्रतिशत) और गुजरात (16.37 प्रतिशत) शामिल हैं।
कुल मिलाकर, आठ राज्यों का कर्ज जीएसडीपी के 30 प्रतिशत से ज्यादा, छह का 20 प्रतिशत से कम, और बाकी 14 का 20 से 30 प्रतिशत के बीच था। पूरे देश की जीडीपी के लिहाज से राज्यों का कर्ज 22.17 प्रतिशत था, जो 2.69 करोड़ करोड़ रुपये के बराबर है।
सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण राज्यों का कर्ज तेजी से बढ़ा, जो उनके जीएसडीपी का 25 प्रतिशत तक पहुंच गया, जबकि पहले यह 21 प्रतिशत था। रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान कारोबार ठप होने और राजस्व में भारी कमी के चलते राज्यों को ज्यादा उधारी लेनी पड़ी। केंद्र सरकार ने इस दौरान जीएसटी मुआवजा लोन और विशेष आर्थिक पैकेज देकर राज्यों की मदद की जिससे कर्ज का स्तर और ऊंचा हो गया।
राज्यों को कर्ज खुले बाजार से बॉन्ड-ट्रेजरी बिल, बैंकों जैसे एसबीआई, आरबीआई से अग्रिम या एलआईसी-नाबार्ड जैसी संस्थाओं से मिलता है। लेकिन रिपोर्ट चेताती है कि कर्ज सिर्फ विकास के कामों के लिए लेना चाहिए न कि रोजमर्रा के खर्च या घाटे भरने के लिए। फिर भी 11 राज्यों आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने कर्ज का गलत इस्तेमाल किया।
मिसाल के तौर पर आंध्र में सिर्फ 17 प्रतिशत कर्ज विकास पर खर्च हुआ पंजाब में 26 प्रतिशत जबकि हरियाणा-हिमाचल में आधा से ज्यादा रोजाना खर्च पर गया। जानकार कह रहे हैं कि अगर यह सिलसिला चला तो राज्यों की वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी और विकास योजनाओं के लिए पैसे की कमी हो जाएगी। सरकार को राजस्व बढ़ाने और कर्ज सही जगह लगाने पर ध्यान देना होगा।