इसी साल फरवरी में जब माओवाद से सर्वाधिक प्रभावित जिलों में शामिल रहे बस्तर के नारायणपुर के कुटुल में एक नए सुरक्षा एवं जनसेवा कैंप की शुरुआत की गई थी, तब उम्मीद जताई गई थी, वहां से प्रस्तावित राष्ट्रीय राजमार्ग 130 डी माड़ (अबूझमाड़) को मुंबई से जोड़ देगा!
बेशक इस पर काम भी शुरू हो गया, लेकिन बीते कुछ हफ्तों के दौरान हुई भीषण बारिश ने सरकारी दावों की कलई खोल दी है। हालत यह है कि बीते कई दिनों से जिला मुख्यालय नारायणपुर टापू बना हुआ है, क्योंकि उसे जोड़ने वाले नेशनल हाईवे 130 डी के साथ ही दो अन्य राजमार्गों की हालत जर्जर हो चुकी है।
देश और दुनिया में अपने घने जंगलों और माओवादी गढ़ के रूप में जाने जाने वाले अबूझमाड़ के मुहाने पर स्थित नारायणपुर तक कोंडागांव, दंतेवाड़ा और अंतागढ़ से पहुंचा जा सकता है और अभी ये तीनों रास्ते तकरीबन बंद हैं, और वहां से न तो बसें आ जा सक रही हैं और ना ही दूसरे वाहन।
हालत यह है कि सड़कों के बंद होने की वजह से गर्भवती महिलाएं और बीमारों को अस्पताल तक भी नहीं पहुंचाया जा सक रहा है। लोगों को मीलों पैदल चलकर जाना पड़ रहा है। कुछ दिनों पूर्व जर्जर सड़कों के कारण एक गर्भवती महिला का प्रसव रास्ते पर हो गया।
दरअसल रावघाट खदानों के शुरू होने के बाद यहां से लौह अयस्क ले जाने वाले भारी भरकम ट्रकों की वजह से सड़कें पहले ही बदहाल हो चुकी हैं और बारिश ने बची-खुची कसर पूरी कर दी है।
गजब यह है कि जिस नेशनल हाईवे 130 डी को लेकर बड़ी उम्मीदें हैं, उसकी बदहाली ने सरकारी कारिंदों, ठेकेदारों और राजनेताओं की मिलीभगत को उजागर कर दिया है! और अभी जबकि यह सड़क ठीक से बनी भी नहीं है, ऐन बारिश से पहले इसे खोद दिया गया, लिहाजा भारी बारिश के कारण यहां बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं।
द लेंस की एक रिपोर्ट ने दिखाया है कि वास्तव में यह आदिवासी इलाके की एक केस स्टडी की तरह है, जहां सही मायने में दूरदर्शी नीतियों और उन पर जवाबदेही के साथ अमल की जरूरत है।
देखिए ये रिपोर्ट