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छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री की पसंद से अलग मुख्य सचिव… संदेश क्या है?

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Published: September 15, 2025 10:57 PM
Last updated: September 16, 2025 5:47 PM
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Chief Secretary
30 जून को कैबिनेट की बैठक में मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बगल में बैठे मनोज पिंगुआ।
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समाचार विश्लेषण

रायपुर। तारीख 30 जून 2025, मौका था छत्तीसगढ़ की साय सरकार की कैबिनेट की बैठक। मुख्य सचिव अमिताभ जैन सेवानिवृत्त हो चुके थे, सुबह राज्यपाल रमेन डेका से बिदाई ले कर आ चुके थे और यह उनकी आखिरी कैबिनेट बैठक मानी जा रही थी। उनके ठीक बगल में अगले मुख्य सचिव के रूप में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सहित उनकी पूरी सरकार की पहली पसंद 1994 बैच के आईएएस मनोज पिंगुआ बैठे थे।

तब तक मनोज पिंगुआ चारों तरफ से बधाइयां ले चुके थे। कैबिनेट के खत्म होते–होते दिल्ली से फरमान आया, अमिताभ जैन को तीन महीने की सेवा वृद्धि मिल गई है।

तीन महीने बीतने को हैं। यह माना जा रहा था कि भले ही 1992 बैच के आईएएस सुब्रत साहू भी रेस में पीछे नहीं हैं लेकिन मुख्यमंत्री की पहली पसंद के नाते मनोज पिंगुआ ही मुख्य सचिव पद के लिए तय हैं। लेकिन, अब नाम जिसे तय माना जा रहा है वो हैं 1994 बैच के आईएएस विकास शील।

Vikas Sheel
विकास शील।

विकास शील छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर हैं और यहां कलेक्ट्री से लेकर सचिव तक विभिन्न पदों पर लम्बा समय गुजार चुके हैं। 2018 में श्री शील केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। वे मनीला में एशियन डेवलपमेंट बैंक के कार्यकारी निदेशक के पद पर थे, जहां अब उनकी जगह नई नियुक्ति हो गई है।

श्री शील की पत्नी निधि छिब्बर भी 1994 बैच की ही अफसर हैं। वे भी छत्तीसगढ़ कैडर से हैं।

खबर है कि विकास शील 28 सितंबर तक काम सम्भाल लेंगे।

विकास शील अत्यंत अनुभवी और बेदाग छवि वाले अफसर माने जाते हैं। उनके बारे में भी यह मान्यता है कि वे कभी किसी पोस्टिंग के लिए लॉबिंग करते नहीं सुने गए।

लेकिन, मुख्य सचिव की कुर्सी छत्तीसगढ़ में किस्सों के केंद्र में आ गई है।

दरअसल, अमिताभ जैन की सेवानिवृत्ति के बाद दिल्ली से जहां सुब्रत साहू के नाम का हल्ला था वहीं छत्तीसगढ़ में मनोज पिंगुआ के नाम को तय माना जा रहा था।

इन दोनों ही अफसरों से वरिष्ठ 1991 बैच की आईएएस रेणु पिल्ले थीं, जिनके नाम की चर्चा ही नहीं थी।

रेणु पिल्ले कड़क, नियमों से चलने वाली ईमानदार अफसर मानी जाती हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि नियमों के आगे वे किसी की नहीं सुनती और कभी प्रभावशाली पोस्टिंग की आकांक्षा नहीं पालती। उन्हें लेकर सत्ता के गलियारों में धारणा यही व्यक्त की जाती है कि ऐसी अफसर किसी भी सरकार के लिए अनुकूल नहीं होंगी।

इसके बाद वरिष्ठता क्रम में 1992 बैच के आईएएस सुब्रत साहू और 1993 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल थे। अमित अग्रवाल भी नियम कायदों से चलने वाले अलग मिजाज के अफसर माने जाते हैं। वे अपनी परफॉर्मेंस के कारण दिल्ली में केंद्र सरकार की पसंद के अफसरों में गिने जाते हैं। राज्य में उनका नाम भी इस पद के लिए कोई नहीं ले रहा था। यह भी कहा जाता है कि वो खुद भी अभी छत्तीसगढ़ लौटने के इच्छुक नहीं थे।

प्रशासनिक चर्चाओं के मुताबिक सुब्रत साहू को पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना गया।

श्री साहू तब मुख्यमंत्री सचिवालय में बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव पदस्थ थे और भाजपा के एक नेता की मानें तो उन्हें लेकर पार्टी में यह धारणा है कि पिछली सरकार के ऐसे कई फैसले, जो आज भाजपा को रास नहीं आए, उनमें श्री साहू की सहमति थी। हालांकि नौकरशाही से लेकर सत्ता के हर कोने को पता है कि तब के प्रशासनिक फैसलों के केंद्र में कौन थे?

बताते हैं कि सुब्रत साहू के लिए दिल्ली से अत्यंत प्रभावशाली सिफारिशें थीं लेकिन वे काम नहीं आईं।

वरिष्ठ के रहते किसी कनिष्ठ को मुख्यसचिव बनाया हो ऐसे उदाहरण तो छत्तीसगढ़ में पहले भी दर्ज हैं लेकिन सत्ता के गलियारे में हैरानी के साथ इस बात को दर्ज किया जा रहा है कि ऐसा संभवतः पहली बार हुआ है कि मुख्यमंत्री की पसंद से अलग किसी अफसर को राज्य के प्रशासन की कमान सौंपी गई हो।

चर्चा है कि सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ के बीच की स्पर्धा से पैदा परिस्थितियों को टालने के लिए केंद्र सरकार ने विकास शील जैसा निर्विवाद, बेदाग और अनुभवी नाम चुना है।

एक अफसर ने कहा कि मनोज पिंगुआ के लिए तो यह विडंबना ही कही जाएगी कि मुख्यमंत्री श्री साय उन्हें अपने सचिवालय में बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव पदस्थ करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर मुख्यमंत्री की तरफ से तो यह तय था कि श्री पिंगुआ ही मुख्य सचिव बनेंगे और इसकी झलक उस दिन दिख ही गई थी जब कैबिनेट की बैठक में सेवानिवृत्त होने जा रहे अमिताभ जैन के बाजू में श्री पिंगुआ बैठे नजर आए थे। लेकिन अब यह भी नहीं होता नजर आ रहा है।

नौकरशाही को कवर करने वाले एक पत्रकार ने सवाल किया कि यदि विकास शील का नाम ही तय होना था, तो यह तो 30 जून को भी हो सकता था। इसका मतलब है कि रायपुर से लेकर दिल्ली तक इसे लेकर बड़ी माथा–पच्ची होती रही है।

नौकरशाही तो ऐसे फैसलों से संदेश ग्रहण करती है और अभी संदेश यही है कि यदि विकास शील का नाम मुख्य सचिव के लिए तय है तो दिल्ली प्रशासनिक मुखिया चुनने में राज्य के मुखिया की पसंद को नजरअंदाज करने जा रही है।

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