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लेंस रिपोर्ट

“मछली ब्रदर्स”: गुड़, गुलगुले और बीजेपी

राजेश चतुर्वेदी
राजेश चतुर्वेदी
Byराजेश चतुर्वेदी
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Published: September 13, 2025 10:28 PM
Last updated: September 13, 2025 10:29 PM
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पिछले एक-डेढ़ माह से सोशल मीडिया पर भोपाल के “मछली ब्रदर्स” का बड़ा शोर है। लव जिहाद, ड्रग्स, सनातन, राष्ट्रवाद, हिंदू-मुस्लिम सब चल रहा है। रीलें पोस्ट की जा रही हैं। अपने-अपने ढंग से पूरे मामले की ‘व्याख्या’ की जा रही है। खबरें प्रसारित हो रही हैं कि प्रशासन ने 125 एकड़ सरकारी जमीन छुड़ा, इतने करोड़ की बिल्डिंग गिराई, ये किया-वो किया।

खबर में खास
ठाकरे जी को नॉनवेज पसंद थासीएम प्रभारी, डिप्टी सीएम के पास विभाग, और चूहों ने कुतर दिया!‘रात को रात कह दिया मैंने, सुनते ही बौखला गई दुनिया’“90 डिग्री की डिजाइन” और “114” वालों की खैरियत

लेकिन, ये सवाल कहीं नहीं है कि किसके राज में “मछली” ने ये अवैध कब्जे किए, कॉलोनियां बसा दीं? किसकी सरकार में मछली परिवार ने मछुआरों की समितियों को मिलने वाले बांधों के ठेके हासिल कर लिए? सरकारी यानी राजस्व की जमीन पर कोठियां तान लीं, प्लॉट काट दिए, लव जिहाद कर लिया, ड्रग्स का धंधा फैलाया?

जब राजस्व की, नज़ूल की या सरकार की जमीनों पर बिल्डिंग खड़ी की जा रही थीं, सैकड़ों एकड़ में कब्जे किए जा रहे थे, कॉलोनियां बसाई जा रही थीं, तब पटवारी से लेकर कलेक्टर तक, पूरा अमला क्या कर रहा था? वर्ष 2003 से भाजपा की सरकार है। प्रशासन जो बता रहा है, उससे तो यही मालूम होता है कि बीते 22 सालों में ही हुआ है ये सब।

तो जवाबदेही किसकी है? सरकार सब कर रही है, मगर जवाबदेही सुनिश्चित नहीं कर रही है। इन सालों में जितने पटवारी, आरआई, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर रहे, कायदे से सबकी सूची बनाई जाना चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि ये कैसे हो गया? क्यों होने दिया? जब ये हो रहा था, तब क्या कर रहे थे?

प्रशासन में ऊपर खबर क्यों नहीं दी? और खबर दी तो किसने कार्रवाई से रोका? एक झटके में सब पता लग जाएगा और जवाबदेही तय करके कार्रवाई हो जाएगी। ताकि, भविष्य में कोई हिम्मत न करे। लेकिन ये सब लिखने-पढ़ने की बातें हैं। सच्चाई यह है कि पिछले माह अगस्त में 6 तारीख को राज्य विधानसभा के मानसून सत्र में पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव का एक सवाल था-मछुआरों की समिति के बारे में।

सरकार ने उसका जो जवाब दिया है, उसको पढ़ लेने से अंदाजा हो जाएगा कि “चल क्या रहा है”। यही कि गुड़ तो दबाकर खाया जा रहा है, लेकिन परहेज एक गुलगुले से भी किया जा रहा है। वैसे भी “मछली ब्रदर्स” के अब तो बीजेपी के इतने छोटे-बड़े नेताओं के साथ फोटो-वीडियो वायरल हो गए हैं कि यदि “ऐक्शन” हुआ तो पार्टी में बचेगा कौन? हालांकि, फोटो-वीडियो पर ऐक्शन होना भी नहीं चाहिए। अब तो यों भी “एआई” का जमाना है।


ठाकरे जी को नॉनवेज पसंद था

भोपाल में एक होते थे- शरीफ अहमद उर्फ शरीफ ‘मछली’। मछली इसलिए, क्योंकि मछली के आढ़ती थे। बुधवारा में घर था। भारतीय जनसंघ से जुड़े हुए थे। जनसंघ की हालत खराब थी। कार्यालय में एक साइकिल तक नहीं थी।

मुलाजिम पैदल जाता था अखबारों के दफ्तर, पार्टी के प्रेस नोट लगाने। लखेरापुरा में एक घुड़साल के नजदीक लगता था जनसंघ का कार्यालय। 1980 में जब जनसंघ से भाजपा बनी तो दफ्तर पीरगेट पहुंच गया। किराए की बिल्डिंग में। पार्टी के नेता चने-मुरमुरे चबाते थे और सादगी भरा जीवन जीते थे।

कुशाभाऊ ठाकरे

सूक्ष्म में ये कि ऐसी हालत में शरीफ मछली से ‘इमदाद’ मिल जाती थी। चुनावों में, नेताओं को लाने-ले जाने के लिए गाड़ी-घोड़े मिल जाते थे। कुल मिलाकर, बुरे वक्त का सहारा थे शरीफ भाई। लिहाजा, पार्टी और उसके नेताओं का उनसे “अनुराग” था। कुछ के तो निहायत व्यक्तिगत कारण भी थे।

जैसे- “पितृपुरुष” कुशाभाऊ ठाकरे को नॉनवेज पसंद था। जब कभी उनकी इच्छा होती तो सारंग जी से बोलकर पहुंच जाते शरीफ के यहां। इस बीच, कारोबार बढ़ने लगा। वो मछली के ठेके लेने लगे। मतलब बांध वगैरह। कोई दिक्कत हुई, तो भाजपा के नेता कांग्रेस की सरकारों के मुख्यमंत्रियों-मंत्रियों के सामने ढाल बन जाते। तरक्की होती गई। परिवार में भी। शरीफ के नौ बेटे हैं। जब बच्चों के हाथ में काम-कारोबार आ गया तो उन्होंने “विस्तार” कर लिया। कैसे कर लिया, यह समझने की चीज है। समझ जाइए।


सीएम प्रभारी, डिप्टी सीएम के पास विभाग, और चूहों ने कुतर दिया!

गनीमत है कि न्यायिक व्यवस्था ने “आम आदमी” के हित में ‘स्वतः संज्ञान’ लेना बंद नहीं किया है, वर्ना इंदौर का ‘चूहा कांड’ भी उच्च पदों पर तैनात अधिकारियों की जवाबदेही तय हुए बिना ही सुलझ जाता, या कहें ‘ठंडा’ पड़ जाता। आम धारणा भी है कि भूलना मनुष्य की प्रवृत्ति हुआ करती है, और इसीलिए बड़ी से बड़ी घटना कुछ दिनों बाद भुला दी जाती है।

सरकारों को यह मालूम होता है, लिहाजा वे चाहे जितना बड़ा कांड या मामला हो, उसकी परवाह नहीं करतीं। किसी की जवाबदेही तय नहीं की जाती। छोटे-मोटे कारिंदों को दिखावे के लिए बलि का बकरा बना दिया जाता है और ऊंचे ओहदे वाले सदैव मजे की अवस्था में रहते हैं। उनकी सेहत पर कोई आंच नहीं आती।

उनका ओहदा, ठसक और रुतबा बरकरार रहते हैं। जैसा कि, इंदौर के जाने-माने एमवाय (महाराजा यशवंत राव) अस्पताल, जो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में स्थापित हुआ था, के मामले में देखने को मिल रहा है। 2-3 सितंबर की दो तारीखों में अस्पताल में भर्ती दो नवजात शिशुओं की चूहों के कुतरने से मौत हो गई थी।

जब यह मामला सामने आया तो प्रशासन ने निचले क्रम के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ ऐक्शन लेकर इतिश्री कर ली गई। न तो मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया और न ही अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक यादव की जवाबदेही पर सवाल खड़े किए गए। जिस प्राइवेट एजेंसी के पास साफ-सफाई और पेस्ट कंट्रोल का काम है, उसको भी मामूली चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

लेकिन, हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर घटना को घोर लापरवाही बताया है और सरकार से 15 सितंबर तक जवाब मांगा है। पीड़ितों में एक आदिवासी है और दूसरा अल्पसंख्यक। बहरहाल, सबसे बड़े अस्पताल का ये हाल तब है, जब स्वयं मुख्यमंत्री मोहन यादव इंदौर जिले के प्रभारी हैं और उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला के पास स्वास्थ्य-चिकित्सा शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है।

‘रात को रात कह दिया मैंने, सुनते ही बौखला गई दुनिया’

नेपाल में “जेन-जी” के विरोध प्रदर्शन ने इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव के पुत्र संघमित्र के उस भाषण की याद दिला दी, जो पिछले हफ्ते उन्होंने एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में दिया था। खास बात ये है कि जब संघमित्र बेबाकी से बोल रहे थे, तो मंच पर श्रोताओं में उनके पिता के अलावा राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव, विधानसभा के स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता भी शामिल थे।

सब भौंचक्के रह गए, जैसे ही संघमित्र ने रेलवे की बखिया उधेड़नी शुरू की। कहा- “बुलेट ट्रेन का वादा हुआ था। कहा गया था कि 2022 तक अहमदाबाद से मुंबई तक सरसराते हुए ट्रेन जाएगी। 2025 आ गया है, बुलेट ट्रेन तो नहीं वादाखिलाफी की रफ्तार दौड़ रही है। करोड़ों रुपये खर्च हो गए, जमीन अधिग्रहण में घोटाले हो गए हैं, लेकिन बुलेट ट्रेन सरकार की “पावर पॉइंट प्रजेंटेशन” से बाहर नहीं आ पाई।

सरकार कहती है कि कवच तकनीक सिस्टम से रेल हादसे खत्म हो जाएंगे, लेकिन आपको बता दूं कि पिछले 10 साल में 20 हजार लोगों ने रेल हादसे में अपनी जान गंवाई है। स्टेशन री-डेवलपमेंट की बात होती है, कहते हैं कि 400 स्टेशन हम एयरपोर्ट जैसे बनाएंगे, लेकिन बनते कितने हैं? केवल 20।

वहां से भी जनता की आवाज आती है कि यहां चमकते बोर्ड तो हैं, लेकिन पीने का पानी महंगा है। मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि सरकार कहती है कि सबका साथ सबका विकास, लेकिन रेलवे में हो रहा है “दलाल का साथ और जनता निराश”। जाहिर है, महापौर भार्गव खुद अपना राजनीतिक नुकसान क्यों चाहेंगे?

यदि उन्हें पहले से मालूम होता कि उनका बेटा क्या बोलने वाला है, तो वे निःसंदेह उसे रोकते-टोकते। इसीलिए, शायद उन्होंने सबके सामने सफाई भी दी-“मैंने भाषण की तैयारी नहीं कराई”। हालांकि, मुख्यमंत्री यादव ने उनसे इतना तो कह ही दिया- आप सफाई मत दीजिए, वर्ना हमारे यहां एक कहावत है “चोर की दाढ़ी में तिनका”।

बहरहाल, संघमित्र का भाषण सोशल मीडिया में वायरल हो गया। बेटा “जेन-जी” का है। उसने अपनी बात रख दी। भले ही मोदी की रेल के डिब्बे पटरी से उतर गए हों। हफ़ीज़ मेरठी का शेर है- “रात को रात कह दिया मैंने, सुनते ही बौखला गई दुनिया”।


“90 डिग्री की डिजाइन” और “114” वालों की खैरियत

राजधानी भोपाल में “90 डिग्री की डिजाइन” वाले जिस रेलवे ओवर ब्रिज के लिए मध्यप्रदेश की देश-दुनिया में बदनामी हुई, उसे राज्य के पीडबल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने सही ठहरा दिया है। उनका कहना है कि पुरानी बसाहटों में जगह की कमी के कारण “90 डिग्री” पर ब्रिज का निर्माण करना पड़ता है।

विभाग के अधिकारी इस बात से हैरान हैं कि संबंधित इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई गलत डिजाइन के कारण ही की, मगर अब मंत्री जी डिजाइन को सही ठहरा रहे हैं। दरअसल, “90 डिग्री की डिजाइन” को सही ठहराते समय राकेश सिंह ने एक और रहस्योद्घाटन किया।

उन्होंने बताया कि भोपाल में ही ऐशबाग का रेलवे ओवरब्रिज तो “114 डिग्री की डिजाइन” में बना है और इसमें कोई कठिनाई नहीं है। जाहिर है, जब से मंत्री जी ने अपने गृह नगर में इन डिजाइनदार पुलों के बारे में अपने “मन की बात” की है, तब से इंजीनियर बिरादरी उन नामों को पता करने में लग गई है, जिनकी देखरेख में “114 डिग्री” वाला ब्रिज तैयार हुआ था। कहीं ऐसा तो नहीं कि “114” वालों की खैरियत के चक्कर में “90” को सही ठहराया जा रहा हो?

‘लाड़ली बहनों’ का ऑडिट कराएगी मोहन सरकार, 28 माह में 41 हजार करोड़ बांटे

मोहन यादव सरकार को “लाड़ली बहना” योजना बहुत भारी पड़ रही है, क्योंकि उसे लगभग हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। लिहाजा अपात्र लाभार्थियों की छंटनी का फैसला किया गया है, ताकि कुछ तो राहत मिले।

जैसे पीएम मोदी ने एलपीजी सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया था, वैसे ही पहले सार्वजनिक अपील की जाएगी कि जो अपात्र हो चुकी हैं, वे खुद ही राशि त्याग दें। अन्यथा, इसके बाद सरकार जांच कर अपात्र महिलाओं को हितग्राहियों की सूची से हटा देगी। दरअसल, सरकार को अपात्र महिलाओं के बारे में कई शिकायतें मिली हैं।

पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए “गेम चेंजर” साबित हुई इस योजना के तहत लाड़ली बहनों को अब तक 28 किश्तों में 41 हजार करोड़ रुपये की राशि बांटी जा चुकी है।

अभी 1.26 करोड़ महिलाओं को हर माह 1250 रुपये दिए जा रहे हैं। चूंकि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अगले माह दीपावली के बाद भाई दूज से राशि बढ़ाकर 1500 रुपये देने का ऐलान किया है, लिहाजा सरकार इसके पहले छंटनी की कवायद निपटा लेना चाहती है। ताकि, उसको कुछ राहत मिले।

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