नेपाल में सोमवार सुबह भड़की हिंसा अप्रत्याशित नहीं है और यह ओ पी शर्मा ओली सरकार की चौतरफा नाकामी का नतीजा है, जिसने समय रहते कदम नहीं उठाए। नेपाल सरकार ने फेसबुक, व्हाट्सअप, लिंकडिन और यूट्यूब जैसे 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सरकारी कायदे नहीं मानने के कारण प्रतिबंधित करने का एलान किया, जिससे Gen-Z 18 से 30 साल के युवा भड़क उठे और सड़कों पर उतर आए।
हालात कितने गंभीर है, जिसे इससे समझा जा सकता है कि प्रदर्शनकारी सुरक्षा घेरा तोड़कर संसद परिसर तक में घुस गए। पुलिस फायरिंग और हिंसा में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 16 युवाओं की मौत हो गई थी और सौ से ज्यादा लोग घायल हैं। कहने को यह आंदोलन सोशल मीडिया पर रोक से भड़का है, लेकिन युवा जिस तरह से भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद और बेरोजगारी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं, उससे नेपाल की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वास्तव में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का मामला नया नहीं है। इससे पहले वहां चीनी सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटॉक सहित और भी प्लेटफार्म पर रोक लगाई गई थी, लेकिन इन कंपनियों ने खुद को नेपाली कानूनों के तहत रजिस्टर कर लिया तो उन्हें ताजा प्रतिबंधों से दूर रखा गया है।
दरअसल युवाओं की नाराजगी की वजह है अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय फेसबुक, यूट्यूब जैसे मंच, जिन्होंने हाल ही में नेपाल में मोनेटाइजेशन शुरू किया है, लिहाजा यह युवाओं के लिए कमाई का जरिया भी बन गए हैं। दरअसल इसे प्रतिबंधों से जोड़कर देखने की जरूरत है, क्योंकि नेपाल में पिछले कुछ वर्षों में बेरोजगारी दर काफी ऊंची है।
2024 के आंकड़ों के मुताबिक नेपाल में बेरोजगारी दर 10 फीसदी से भी ऊपर है, और रिपोर्ट्स बताती हैं कि रोजाना नेपाल से दो हजार युवा काम की तलाश में खाड़ी देशों के साथ ही यूरोप से लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का रुख कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि नेपाल की अर्थव्यवस्था कोरोनाकाल के बाद संकट से उबर ही नहीं पाई है, जिसका खामियाजा युवाओं को उठाना पड़ रहा है।
यह विडंबना ही है कि लंबे संघर्ष के बाद मनमानी राजशाही से मुक्ति के बाद नेपाल ने संवैधानिक गणतंत्र हासिल किया, लेकिन वहां बनने वाली सरकारों ने अपने राजनीतिक हितों के चलते युवाओं के हितों को नजरंदाज किया है। यह सचमुच हैरानी की बात है कि आखिर लोकतांत्रिक ढंग से बनी सरकार आखिर कैसे अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े सोशल मीडिया मंचों को प्रतिबंधित कर सकती है?
हालांकि अभी ऐसे कोई सूत्र नहीं मिले हैं कि युवाओं के ताजा आंदोलन का संबंध क्या कुछ महीने पहले अप्रैल में राजशाही के समर्थन के लिए भड़के आंदोलन से भी है, लेकिन इस पड़ोसी देश की अस्थिरता भारत के लिए भी चिंता का कारण होना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि राजनीतिक अस्थिरता के दौर से जूझ रहे नेपाल में युवाओं के आंदोलन का फायदा ऐसे तत्व नहीं उठाएंगे जिससे वहां संविधान और लोकतंत्र के लिए चुनौती पैदा हो; जाहिर है, भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।
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