लेंस डेस्क। Chandra Grahan 2025: साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को होगा। नई दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद, जयपुर, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और लखनऊ जैसे शहरों में लोग इसे देख सकेंगे। लेकिन चंद्र ग्रहण को लेकर अंधविश्वास भी खूब है। सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि चंद्रग्रहण सिर्फ खगोलीय घटना है। इसे इसी तरह से देखना चाहिए।

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि पुराने समय में लोग मानते थे कि चंद्रग्रहण राहू-केतू के चंद्रमा को निगलने से होता है। इस वजह से कई अंधविश्वास और मान्यताएं जुड़ गईं। लेकिन विज्ञान ने सिद्ध किया है कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया के कारण होता है।
जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है, तो उसका एक किनारा काला होने लगता है, जिसे स्पर्श कहते हैं। जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है, तो पूर्णग्रहण होता है। इसके बाद जब चंद्रमा छाया से बाहर निकलने लगता है, तो ग्रहण छूटना शुरू होता है। जब चंद्रमा पूरी तरह छाया से बाहर आ जाता है, तो ग्रहण समाप्त हो जाता है, जिसे मोक्ष कहते हैं।
क्यों कहते हैं खूनी चंद्रग्रहण?
कुछ लोग चंद्रग्रहण के लाल रंग को देखकर इसे “खूनी चंद्रग्रहण” कहते हैं और इसके दुष्प्रभाव की आशंका जताते हैं। डॉ. मिश्र ने स्पष्ट किया कि यह आशंकाएँ और भविष्यवाणियां सही नहीं हैं। चंद्रग्रहण में चंद्रमा का लाल रंग पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरने वाले सूर्य के प्रकाश के कारण होता है।
वायुमंडल नीली किरणों को हटा देता है और लाल किरणें चंद्रमा तक पहुंचती हैं। यही प्रभाव सूर्यास्त के समय भी देखा जा सकता है। चंद्रग्रहण का रंग हर बार अलग हो सकता है, जो वायुमंडल में धूल, बादल या साफ हवा पर निर्भर करता है। कभी-कभी चंद्रमा हल्का लाल, नारंगी या गहरा भूरा दिखता है। नवंबर 2021 और 2022 के चंद्रग्रहण गहरे लाल रंग के थे।
गलत फहमी न पालें, नहीं होता कोई दुष्प्रभाव
डॉ. मिश्र ने कहा कि चंद्रग्रहण का कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम और अंधविश्वास हैं, लेकिन लोगों को इनमें नहीं पड़ना चाहिए। चंद्रग्रहण देखना पूरी तरह सुरक्षित है और वैज्ञानिक इसका अध्ययन भी करते हैं। भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने 499 ईस्वी में अपने ग्रंथ “आर्यभट्टीय” में सिद्ध किया था कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया से होता है। इसके बावजूद आज भी कई भ्रम बने हुए हैं।
डॉ. मिश्र ने नागरिकों से अपील की कि चंद्रग्रहण को बिना डर के देखें। यह एक खगोलीय घटना है। ग्रहण के दौरान खाने-पीने, बाहर निकलने या स्नान करने की बंदिशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह धारणा भी गलत है कि गर्भवती महिलाओं या उनके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ग्रहण हानिकारक है।
खाद्य वस्तुए ग्रहण से अशुद्ध नहीं होतीं और इन्हें खाना सामान्य दिन की तरह सुरक्षित है। यह सब बातें केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की पुस्तिका में भी बताई गई हैं।
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