
‘Protection of life and personal liberty. No person shall be deprived of his life or personal liberty except according to procedure established by law.’
यह लिखा है हमारे भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में, जो भारतीय नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन, इसका जिक्र हम क्यों कर रहे हैं यह हम आपको बताते इस रिपोर्ट में बताएंगे।
दरअसल, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में कथित धर्मांतरण और मानव तस्करी के मामला चर्चा में बना हुआ है। रेलवे पुलिस की 25 जुलाई की एफआईआर में दो नन और एक आदिवासी युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया गया था।
उस एफआईआर के लिए तीन आदिवासी युवतियों से जबरन बयान कराए गए थे और धमकी देकर एफआईआर कराई गई थी। बाद में युवतियों ने अपने घर पहुंच कर बयान दिया कि उनसे जबरदस्ती बयान दिलाया गया था और उनसे बदसलूकी की गई थी।
नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियां कमलेश्वरी प्रधान, ललिता उसेंडी और सुकमति मंडावी ने दुर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई बदसलूकी के खिलाफ बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा और उनके सहयोगियों पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है। राज्य महिला आयोग में इस केस में सुनवाई चल रही है।
इस मामले की सुनवाई के लिए युवतियां आज फिर से छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग पहुंची थीं। लेकिन, शिकायत के खिलाफ नामित लोग सुनवाई में शामिल नहीं हुए। यह युवतियां महिला उत्पीड़न होने पर पहले छत्तीसगढ़ पुलिस में शिकायत की। गृह जिला नारायणपुर एसपी को आवेदन दिया। दुर्ग में शिकायत की, लेकिन FIR दर्ज नहीं हुई तो राज्य महिला आयोग के दरवाजे पर आईं। अब महिला आयोग में सुनवाई के दौरान कुछ बातें सामने आईं हैं।

दरअसल, मामला महिला उत्पीड़न का था, लेकिन महिला आयोग की दो सदस्य सरला कोसरिया और दीपिका सोरी ने सवाल पूछे धर्मांतरण से जुड़े। वह कहते रहे कि आप एक धर्म से दूसरे धर्म में जा रहे हैं। इस पर पुलिस ने सही कार्रवाई की है। उन्होंने यह भी कहा कि रोजगार तो नारायणपुर में मिल जाता आपको बाहर जाने की जरूरत क्यों थी?
इस सुनवाई के दौरान जब युवतियों ने बताया कि वे नौकरी के लिए जा रही थीं। तब उन्होंने पूछा कि क्या आपने पुलिस को इसकी लिखित सूचना दी थी कि आप एक शहर से दूसरे शहर जा रहे हैं। इन सबके बीच एक सदस्य लक्ष्मी वर्मा का यह सवाल हैरान करने वाला था, ‘आवेदन तो आपने खुद नहीं लिखा है। यह तो किसी से लिखवाया हुआ लग रहा है।’
उन्हें संभवतः यह ध्यान नहीं रहा कि 121 करोड़ से ज्यादा लोगों वाले देश में करोड़ों करोड़ निरक्षर आबादी सरकारी या अदालतीं कामकाज के लिए समाज के साक्षर लोगों पर ही निर्भर हैं। और अदालती कामकाज की लिखा पढ़ी तो पढ़े लिखे लोगों के लिए भी वकील ही करते हैं। वैसे यह पीड़ित तीनों युवतियां दसवीं तक तो पढ़ाई कर चुकी हैं।
एक सदस्य दीपिका सोरी ने पिछली सुनवाई को दोहराते हुए कहा कि मैं उस दिन भी कही थी और आज भी बोल रही हूं कि तुम मंदिर जाते हो चर्च जाते हो तो मस्जिद भी जाया करो ऐसी सलाह उन्होंने दी।

इस सुनवाई पर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक से हमने बात की। उन्होंने बताया कि आवेदक पक्ष यानि तीनों युवतियां तो आई थीं, लेकिन अनावेदक पक्ष यानी ज्योति शर्मा और उनके सहयोगी मौजूद नहीं थे।
इसके अलावा जीआरपी थाना टीआई भी नहीं आए थे और अब तक सीसीटीवी फुटेज भी हमें नहीं मिला है। क्योंकि, सीसीटीवी फुटेज रेलवे डीआरएम के माध्यम से प्राप्त कराया जाएगा, इसलिए उन्हें अलग से नोटिस भेजा जाएगा।
इसके अलावा अगली सुनवाई में अब सभी पक्षों को आवश्यक रूप से आने के लिए फिर से नोटिस दिया जाएगा। नहीं आने पर शो कॉस नोटिस दिया जाएगा।
सुनवाई के बाद thelens.in ने पीड़ित युवती और उनके परिजनों से भी बातचीत की। उन्होंने क्या कहा आप इस वीडियो में सुन सकते हैं –
महिला आयोग को अर्धन्यायिक संस्था का दर्जा हासिल है, लेकिन आयोग की तीन सदस्यों के सवाल और टिप्पणियां सुनकर यह प्रतीत हो रहा था कि उन्हें इस देश के संविधान के प्रावधान याद नहीं रहे और उसके द्वारा प्रदत्त नागरिक अधिकारों को भी वह भूल गईं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में नागरिकों को अंतरआत्मा की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार हासिल है। कानून के जानकार कहते हैं कि लोक व्यवस्था और नैतिकता के आधार पर हालांकि इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकतें हैं। और भारत धर्मनिरपेक्ष और कई मौलिक अधिकारों वाला देश है, ऐसे में ये सुनवाई कई सवाल भी खड़े कर रही है, क्योंकि युवतियों ने साफतौर पर ये भी कहा की हमें शायद ही महिला आयोग से न्याय मिलेगा। हालांकि अभी अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं है। संभवतः अक्टूबर में अगली सुनवाई हो।