जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, दिल्ली और मध्य प्रदेश सहित देश का बड़ा हिस्सा पिछले कई दिनों से भारी बारिश और बाढ़ से जूझ रहा है, लेकिन बीते तीन दिनों से छत्तीसगढ़ के बस्तर में जैसी मूसलाधार बारिश हुई है, वैसा यहां पिछले कई दशकों में नहीं हुआ। वास्तव में सोमवार से मंगलवार के बीच बस्तर संभाग में हुई 217 मिलीमीटर बारिश ने 94 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
इससे पहले 1931 में बस्तर में बारिश ने ऐसा कहर बरपाया था। बारिश और बाढ़ में फंसे अनेक लोगों को हेलीकॉप्टर से सुरक्षित निकालना पड़ा है। आदिवासियों पर कभी बैलाडीला की लौह खदानों के कारण अपने लाल पानी से संकट पैदा करने वाली संकनी और डंकनी जैसी नदियां इस बार उन पर बाढ़ का कहर लेकर टूट पड़ी हैं।
यही हाल उफनती इंद्रावती नदी का है, जिसने एक बड़े हिस्से को बाढ़ से प्रभावित किया है। बस्तर के विभिन्न हिस्सों से ऊफनते नदी-नालों, जलमग्न बस्तियों में जूझते लोगों की जैसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, उससे साफ है कि प्रशासन ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार ही नहीं था।
नतीजतन बस्तर संभाग के जगदलपुर, सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों के अधिकांश हिस्सों में जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। हालत यह हो गई कि सौ से अधिक गांव अपने जिला मुख्यालयों से ही कट गए। बाढ़ से बीजापुर से दंतेवाड़ा जाने वाली सड़क बाधित हो गई थी, तो जगदलपुर से सुकमा के बीच छिंदगढ़ में उफनते नाले ने वाहनों की आवाजाही रोक दी। यही हाल सुकमा-कोंटा का है।
जगदलपुर को हैदराबाद से जोड़ने वाले नेशनल हाइवे पर भी कई घंटों तक कई फीट ऊपर पानी बह रहा था, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि जंगलों के अंदरूनी हिस्सों में हालात कैसे होंगे। जगदलपुर और दंतेवाड़ा जैसे जिला मुख्यालयों में जिस तरह बस्तियों में घंटों तक कई फीट ऊपर पानी बह रहा था, उससे समझा जा सकता है कि शहर नियोजन की फाइलें निगम के दफ्तरों में कहीं दबी पड़ी होंगी।
घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरे बस्तर की विशिष्ट परिस्थितियों को समझने की जरूरत है, जो आजादी के बाद से ही दशकों तक विकास की धारा से अलग-थलग रहा है। देश के बेहद पिछड़े इलाकों में से एक बस्तर के लिए ऐसी आपदा के लिए विशेष तैयारियों की जरूरत है।
उन गांवों तक जहां आज भी सड़कें नहीं पहुंच सकी हैं और जहां आज भी आदिवासियों को मीलों पैदल चलकर सफर करना पड़ता है, ऐसी बारिश एक और आपदा ही है। बस्तर में आज भी ऐसे इलाके हैं, जहां सरकारी कारिंदे दूर दूर तक नजर नहीं आते, वहां ऐसी बारिश से होने वाली तबाही का आकलन तक करना मुश्किल है। बस्तर की यह पूरी तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि यहां बारिश और बाढ़ से निपटने के लिए दूरगामी नीतियों की जरूरत है।