गाजा पट्टी में इसराइल के दमन के विरोध में जब दुनियाभर में आवाजें उठ रही हैं, भारत स्थित उनके राजदूत ने एक नया राजनीतिक विवाद छेड़ दिया है। दरअसल कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने 12 अगस्त को माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर फलस्तीनियों की हालत पर चिंता जताते हुए एक पोस्ट जारी कर इसराइल को गाजा में 60,000 हजार मौतों का जिम्मेदार बताते हुए लिखा कि इनमें 18,430 बच्चे शामिल थे। प्रियंका ने इसराइल के इस कृत्य को नरसंहार बताते हुए मोदी सरकार पर भी टिप्पणी की कि इस नरसंहार पर उसकी ‘चुप्पी शर्मनाक है’। इसके जवाब में इसराइल के भारत स्थित राजदूत रेवुएन अजार ने एक्स पर प्रियंका को निशाना बनाते हुए लिखा कि ‘शर्मनाक तो आपकी धोखेबाजी है’। आम तौर पर विदेशी राजदूत या उच्चायुक्त भारत के किसी नेता या प्रतिनिधि के बयानों पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं देते। रेवुएन अजार की यह टिप्पणी राजनय के मान्य कायदों के खिलाफ तो है ही, भारत के संदर्भ में तो यह एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला भी है। वास्तविकता यही है कि गाजा पट्टी को इसराइल ने एक यातना शिविर में बदल दिया है, जहां मासूम बच्चों सहित हजारों लोग भुखमरी और कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता कि सात अक्टूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर जो हमला किया था, वह भड़काने वाली कार्रवाई थी और उसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन दूसरी ओर इसराइल फलस्तीनी लोगों के स्वीकार्य राजनीतिक और संप्रभु अधिकारों में न केवल दखल दे रहा है, बल्कि वह गाजा को दमन के जरिये अपने उपनिवेश में बदल देना चाहता है। वास्तव में गाजा की हालत दिनों दिन बदतर होती जा रही है और इसे लेकर दुनिया के तमाम देश चिंता जता रहे हैं और इसराइल के खिलाफ और फलस्तीनियों के हक में रैलियां निकाल रहे हैं। पिछले दो तीन हफ्तों के दौरान ही ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस और कनाडा जैसे देशों में लाखों लोगों ने सड़कों पर उतरकर इसराइल के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानेस ने कहा है कि सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन को एक अलग देश के रूप में मान्यता देगा। ऐसी घोषणाएं ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा ने भी कर रखी है। भारत शुरू से ही इसराइल और फलस्तीन के रूप में दो राष्ट्र का समर्थक है। भारत के इस रूख में बदलाव नहीं आया है, चाहे केंद्र में कोई भी सरकार क्यों न रही हो। अच्छा तो यह होता कि मोदी सरकार की ओर से आधिकारिक रूप से इसराइल के राजदूत की बयानबाजी पर एतराज जताया जाता। यह नहीं भूलना चाहिए कि पखवाड़े भर पहले भी संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने गाजा में तत्काल मानवीय सहायता पहुंचाने की अपील की थी। वहां की बदतर स्थिति की कल्पना इसी से की जा सकती है कि युद्ध के हालात में गाजा में बच्चे 20 महीनों से भी ज्यादा समय से स्कूलों से वंचित हैं। इसराइल के राजदूत इस सचाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि गाजा आज एक भीषण मानवीय संकट का सामना कर रहा है।
गाजा का दर्द

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