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लेंस संपादकीय

आपदा के आगे बेबस

Editorial Board
Last updated: August 5, 2025 9:20 pm
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के हर्षिल के नजदीक बादल फटने की घटना ऐसी आपदा है, जिसका शायद इंतजार ही किया जा रहा था। देखते ही देखते एक सैलाब आया और एक समूचा गांव तबाह हो गया। सैकड़ों मकान और इमारतें ध्वस्त हो गईं। सौ से अधिक लोग लापता हैं। लोगों के मलबे के साथ बह जाने के दृश्य, ये ब्योरे और ये आंकड़े पहाड़ में पिछले कुछ बरसों में आई आपदाओं की पुनरावृत्ति जैसे हैं, और शायद आने वाली आपदा की चेतावनी भी। वास्तविकता यह है कि उत्तराखंड सहित सारे हिमालयी राज्य भयावह जोखिम का सामना कर रहे हैं। तीन दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और हिमाचल की सरकार को फटकारा था और कहा था कि अंधाधुंध निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती संख्या से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि ऐसी ही हालत रही, तो हिमाचल प्रदेश भारत के नक्शे से गायब हो जाएगा! उत्तराखंड का यह हादसा बता रहा है कि वहां के हालात भी कुछ अलग नहीं हैं। जून, 2013 में केदारनाथ में आई आपदा के बाद पिछले 12 बरसों में बादल फटने और भूस्खलन की न जाने कितनी घटनाएं हो चुकी हैं। भीषण बारिश या चरम तापमान जैसी घटनाओं की आवृत्तियों में बढ़ोतरी बता रही है कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने में हम कैसे नाकाम साबित होते जा रहे हैं। मगर इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि ऐसी आपदाएं हमारी संस्थागत नाकामियों को भी उजागर करती हैं। हर्षिल के नजदीक खीर गंगा में यह हादसा जहां हुआ है, वहां के दृश्य बता रहे हैं कि किस बेतरतीब तरीके से इमारतें खड़ी कर दी गईं और लोगों को उनके भरोसे छोड़ दिया गया है। पहाड़ पर पर्यटकों का जिस तरह का दबाव बढ़ा है, उसका खामियाजा स्थानीय लोगों को ऐसे हादसों के समय भुगतना पड़ता है। यह हादसा चारधाम के रास्ते पर हुआ है, जिसे लेकर काफी विवाद रहा है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। करीब नौ साल पहले संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में उत्तराखंड की स्थिति को लेकर गंभीर चेतावनी दी गई थी कि यहां हिमायली राज्यों में सर्वाधिक अस्थायी क्षेत्र हैं, जहां टेक्टोनिक दबाव, फॉल्ट लाइन और प्लेटों के टकराने से अक्सर भूस्खलन और भूकंप आते हैं। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तऱाखंड में औसत बारिश तो कम हुई है, लेकिन चरम मौसम की घटनाएं, मसलन बादल फटने, मूसलाधार बारिश होने और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का आकलन है कि 1988 से 2023 के बीच उत्तराखंड में भूस्खलन की 12,319 घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 1100 से ज्यादा घटनाएं अकेले 2023 में दर्ज की गई थीं। यह सचमुच चिंता की बात है कि इस हादसे के बाद विशेषज्ञ बता रहे हैं कि यही हाल रहा, तो ऐसी आपदाओं की संख्या और बढ़ेगी। यह हादसा केंद्र और राज्य की सरकार के लिए चेतावनी है कि क्या वे अपने लोगों को उनके हाल पर ऐसे ही छोड़ देंगी या कोई सबक लेंगी।

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