[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
असम में PM मोदी ने फिर से नेहरू पर साधा निशाना, कहा – 1962 में जो घाव दिया वह अभी तक भरा नहीं
हिन्दी की इस रात की सुबह कब होगी?
धोखाधड़ी में सजायाफ्ता के समर्थन में लंदन में सड़क पर उतरे लाखों, जानिए टॉमी रॉबिन्सन को
2025 Asia Cup: दुबई में आज भिड़ेंगे IND vs PAK
क्या बृजमोहन – अमर को किसी कनिष्ठ नेता के नेतृत्व में काम करना होगा? भाजपा की जीएसटी टीम से पार्टी में असहजता का माहौल
“मछली ब्रदर्स”: गुड़, गुलगुले और बीजेपी
AI वीडियो के इस्‍तेमाल पर कांग्रेस पर FIR, बीजेपी ने कहा-धूमिल हुई पीएम मोदी और उनकी मां की छवि
हिंदी दिवस पर ‘हिंदी की बदलती दुनिया’ पर संगोष्ठी कल
सत्ता के लिए साजिश में ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को 27 साल की सजा, फैसले से नाराज ट्रंप ने ठोंक दिया 50% टैरिफ
पटना में बर्खास्त संविदाकर्मियों का हल्‍लाबोल, घेर लिया भाजपा दफ्तर, नड्डा की मीटिंग की जगह बदली
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
लेंस रिपोर्ट

बिहार ‘शून्य किसान आत्महत्या’ मॉडल कितना सच?

राहुल कुमार गौरव
Last updated: July 30, 2025 4:02 pm
राहुल कुमार गौरव
Byराहुल कुमार गौरव
Follow:
Share
SIR in Bihar
SHARE

बिहार को कृषि प्रधान राज्य कहा जाता है, जहां अधिकांश आबादी की आजीविका कृषि पर निर्भर करती है। आजकल बिहार ‘शून्य किसान आत्महत्या’ मॉडल के लिए काफी चर्चित है। NCRB के मुताबिक बिहार में 2004 से 2014 के बीच बिहार में 756 किसानों ने आत्महत्या की थी। वहीं 2015 से 2022 के बीच एक भी आत्महत्या नहीं हुई है।

खबर में खास
इन दो घटना से समझिए पूरी कहानीपलायन कर रहे हैं किसानवर्तमान में किसानों की स्थिति

कृषि वैज्ञानिक प्रफुल्ल सारडा के अनुसार, बिहार में कृषि पर निर्भरता कम करके आजीविका के विविध स्रोत पैदा किए गए हैं। ज्यादातर छोटी जोत वाली खेती के कारण राज्य में कर्ज का जोखिम न के बराबर है। मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड, सिंचाई योजनाएं और फसल बीमा योजनाओं का सरल क्रियान्वयन इसका मुख्य कारण है। यानी पूरे आठ वर्षों तक बिहार में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। आज हम बिहार में किसानों की स्थिति और खेती की स्थिति पर विस्तृत पड़ताल करेंगे।

14 जुलाई, 2025 को बक्सर के जलहरा गांव दिलवंत बाल बच्चन चौहान के पुत्र मुन्ना चौहान किसान ने आर्थिक तंगहाली से जहर खाकर आत्महत्या कर ली। 24 जून 2025 को मधेपुरा जिले के बिहारीगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत गमैल गांव निवासी 52 वर्षीय किसान ओमकार नाथ झा ने आत्महत्या की है। लगभग तीन महीना पहले सहरसा स्थित सलखुआ थाना क्षेत्र के मुसहरनिया वार्ड में रहने वाले किसान देवानंद पासवान (50) ने कीटनाशक खाकर जान दे दी।

बिहार के बक्सर जिले में आयोजित किसान-मजदूर महापंचायत। (फाइल फोटो)

पिछले तीन महीनों में मीडिया में तीन किसानों की मौत की खबर देखने को मिल रही है। तीनों किसानों ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की है। थोड़ा पीछे देखें, तो मार्च 2018 में बिहार के शिवहर जिले के राजाडीह गांव निवासी किसान नारद राय (55) ने मक्के की फसल में दाना नहीं देखा, तो जहर खा कर आत्महत्या कर ली। बिहार में किसान आत्महत्या की घटनाएं कम होने का मतलब यह कतई नहीं कि यहां के किसान खेती कर मालामाल हो रहे हैं। कृषि संकट के मामले में बिहार की तस्वीर भी दूसरे राज्यों की तरह भयावह है।

बिहार में खेती एवं किसानों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। सबसे ताज्जुब लगता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे अमीर राज्य आत्महत्या के मामले में शीर्ष पर हैं, वहीं बिहार जैसे गरीब राज्य में पिछले सात सालों में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। जबकि उससे पहले 10 सालों में 756 किसानों ने आत्महत्या की थी। बिहार में ऐसे कई किसानों की आत्महत्या की खबर मीडिया में देखने को मिलती रहती है।

पूर्णिया #बिहार के किसान दीपक प्रजापति के आत्महत्या करने से क्षेत्र के अनेकों किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है…मुख्यमंत्री @NitishKumar जी को मामले का संज्ञान लेकर मृतक तथा क्षेत्र के किसानों की समस्या का हल करना चाहिए तथा इन्हे न्याय प्रदान करना चाहिए @helpline_BP pic.twitter.com/2tUx0HDj9H

— Navodaya Jankalyan Party (@NavodayaParty) January 16, 2025

इन दो घटना से समझिए पूरी कहानी

बिहार में सत्ताधारी पार्टी और मीडिया इस मुद्दे को जोर-शोर से प्रचारित कर रहा है कि किसानों की आत्महत्याओं की संख्या में कमी आई है। पिछली दो घटना से इस मामले को कुछ हद तक समझा जा सकता है।

पहली घटना पंजाब से जहां एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से 2018 तक पंजाब में 1018 किसानों और खेत मजदूरों ने आत्महत्या की। इसके उलट पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के एक सर्वेक्षण में 2015 से 2018 के बीच 2852 आत्महत्या सामने आईं। इनमें सबसे जरूरी बात यह है कि पीएयू के इस सर्वेक्षण में केवल ढाई हजार गांवों को ही शामिल किया गया है। अगर पंजाब के बाकी 10 हजार गांवों का सर्वे किया गया होता, तो कुछ और हकीकत सामने आती।

वहीं दूसरी घटना बंगाल से है, पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया था कि वर्ष 2021 में बंगाल में आत्महत्या के कारण एक भी किसान की मृत्यु नहीं हुई है। यह जानकारी एनसीआरबी की रिपोर्ट से प्राप्त हुई थी। इसी के उलट आरटीआई एक्टिविस्ट विश्वनाथ गोस्वामी ने बंगाल सरकार से जानकारी मांगी थी कि वर्ष 2021 में कितने किसानों की मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई है? इसके जवाब में बंगाल सरकार ने लिखित जवाब देते हुए बताया कि 2021 में राज्य के सिर्फ पश्चिमी मेदिनीपुर जिले में 122 किसानों ने आत्महत्या की है। इन दोनों घटना से एक बात स्पष्ट होती है कि इस तरह के आंकड़ों पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता है।

पलायन कर रहे हैं किसान

रिटायर्ड कृषि अधिकारी अरुण कुमार झा बताते हैं, ”बिहार में शायद ही कोई घर ऐसा होगा, जहां एक या दो लोग राज्य से बाहर कमा नहीं रहे होंगे। इनमें अधिकांश लोग मजदूरी करते है। बिहार का अधिकांश गरीब तबका खेती पर नहीं, बल्कि अन्य राज्य में जाकर मजदूरी पर निर्भर हो चुका है। गांव में कोई मजबूरी में ही बचा हुआ है। खेती पर निर्भर रहना बिहार के अधिकांश लोगों के बस की बात नहीं है। यहां अधिकांश लोगों के पास जमीन भी ज्यादा नहीं है।” राज्य में 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है। जिसमें 82.9 प्रतिशत भूमि जोत सीमांत किसानों के पास है और 9.6 प्रतिशत छोटे किसानों के पास है।

पीएचडी कर रहे शोधार्थी सौरभ दुबे बताते हैं कि “बिहार के किशनगंज इलाके में चाय की खेती होती है। कई इलाकों में मक्का की खेती होती है। मखाना की खेती होती है। सवाल यह है कि कितने जगहों पर सरकार के द्वारा प्रोसेसिंग यूनिट लगाया गया है। कृषि क्षेत्र में बिहार में रोजगार के नाम पर कुछ नहीं है।” कृषि क्षेत्र में रोजगार लगातार घट रहा है। भारत में 1972-73 में कृषि क्षेत्र में 74 प्रतिशत लोगों को रोजगार देता था, वहीं 1993-94 में 64 प्रतिशत और अब केवल 54 प्रतिशत लोगों को रोजगार देता है।

दिसंबर 2022 को बिहार के तत्कालीन कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने बिहार सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ बयानबाज़ी शुरू की, जिसके बाद उन्हें कृषि मंत्री के पद से भी हटना पड़ा। पूर्व कृषि मंत्री, नीतीश सरकार को जिन मुद्दों पर घेर रहे हैं उनमें कृषि विभाग में भ्रष्टाचार, खाद में कालाबाज़ारी और मंडी कानून मूख्य रूप से शामिल हैं।

सुधाकर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए बताया था कि, “साल 2006 में मंडी कानून खत्म होने के बाद राज्य में मूल्य और उत्पादन स्तर पर किसानों को गेहूं और धान में करीब 90 हज़ार करोड़ रुपये और सभी फसलों को मिला दें तो लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। कई संस्थाएं भी इस बात की सिफारिश कर चुकी हैं कि राज्य में मंडी कानून होना चाहिए जिससे किसानों को फसल का न्यूनतम मूल्य मिल सके।”

वर्तमान में किसानों की स्थिति

अभी की वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो बिहार के कई इलाकों में बाढ़ का प्रभाव देखा जा रहा है तो कई इलाका सुखार झेल रहा है। कृषि विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रहे मनु सत्यम बताते हैं कि,”सहरसा, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधेपुरा और समस्तीपुर जैसे इलाकों में बारिश की कमी हैं वहीं पर भोजपुरी का कई इलाका बाढ़ को झेल रहा है।“ मौसम विभाग के ताजा आंकड़ों की मानें, तो जुलाई 2025 तक बिहार में सामान्य से 46% कम बारिश हुई है। जलवायु परिवर्तन ने बिहार में मानसून को काफी प्रभावित किया है। इसका सबसे ज्यादा असर बिहार के किसानों पर देखने को मिल रहा है।

बिहार के भागलपुर में किसानों के हक के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे विपिन यादव बताते हैं कि, “पैक्स और व्यापार मंडल की स्थिति यहां बेहतर नहीं है। कोई भी सरकारी योजना धरातल पर काम नहीं कर रही है। इसके बावजूद पंजाब और हरियाणा की तरह बिहार में किसानों के हक के लिए कोई भी संस्था ठीक से काम नहीं कर रहा है। ‌ क्योंकि यहां पर खेती पर निर्भरता बहुत कम है। खेती रोजगार नहीं पेट चलाने का एक साधन भर है।”

आसान भाषा में कहे तो अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में भी किसान मौसम की मार, सरकारी उदासीनता, व लालफीताशाही के सींखचों में बुरी तरह फंसे हुए हैं। बस फर्क इतना है कि वे प्रदर्शन करने के लिए झंडा लेकर सड़कों पर नहीं उतरते, बल्कि सामान सिर पर लादकर मज़दूरी करने के लिए अन्य राज्यों की राह पकड़ लेते हैं।

TAGGED:Biharbihar kathaLatest_Newszero farmer suicide
Previous Article Gujarat ATS action कौन है शमा परवीन जो चला रही थी अल-कायदा का नेटवर्क, सोशल मीडिया पर करती थी ब्रेनवॉश? 
Next Article LDF वृंदा करात का सवाल : क्या छत्तीसगढ़ में बजरंग दल और RSS को कानून हाथ में लेकर हिंसा करने की छूट है?

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

राणा सांगा पर विवादित बयान से फूटा करणी सेना का गुस्सा, रामजीलाल के घर पर प्रदर्शन, पुलिस ने खदेड़ा  

आगरा। राणा सांगा पर विवादित बयान को लेकर सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के…

By Amandeep Singh

ट्रंप के “आग्रह” पर पीएम मोदी ने की बात, कहा- ‘तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं’

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से कहा कि भारत कश्मीर…

By Lens News Network

मेडिकल स्टूडेंट्स को 33 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद

लेंस डेस्‍क। medical students case: पीजी मेडिकल स्टूडेंट्स की लगातार 36 घंटे लंबी ड्यूटी का…

By Lens News

You Might Also Like

Chaitanya Baghel
छत्तीसगढ़

वारंटी फिर भी गिरफ्तारी नहीं!

By नितिन मिश्रा
BIHAR CAG REPORT
अन्‍य राज्‍य

बिहार में CAG रिपोर्ट आई सामने, 70 हजार करोड़ का हिसाब नहीं दे सकी नीतीश सरकार

By पूनम ऋतु सेन
Chhattisgarh Drug Cartel
छत्तीसगढ़

पाक के ड्रग्स की छत्तीसगढ़ में सप्लाई, मां-बेटा चला रहे थे सिंडिकेट, पुलिस ने दोनों को पकड़ा, 2 ड्रग कार्टल ध्वस्त करने का दावा

By दानिश अनवर
Triple Murder
छत्तीसगढ़

रायपुर के तीन युवकों को धमतरी में दौड़ा-दौड़ा कर चाकू से मारकर की हत्या, पुलिस पकड़ी तो पोज देते रहे हत्यारे

By Lens News
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?