मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में शुक्रवार को सुनवाई हुई। दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद न्यायालय ने शाही ईदगाह को विवादित संरचना घोषित करने की मांग को ठुकरा दिया। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह की अर्जी को खारिज कर दिया।
इस मामले में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि शाही ईदगाह से जुड़ी संपत्ति को विवादित घोषित किया जाए। ठीक वैसा ही जैसे अयोध्या के बाबरी मस्जिद मामले में हुआ था। महेंद्र प्रताप सिंह का दावा था कि शाही ईदगाह का निर्माण श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मूल गर्भगृह को ध्वस्त करके किया गया है।
वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष ने इस मांग का कड़ा विरोध किया और लिखित आपत्ति भी दर्ज की। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने पहले ही 23 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था और 4 जुलाई को निर्णय सुनाने की तारीख तय की थी।
कोर्ट ने क्या कहा …
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों और याचिका के आधार पर शाही ईदगाह को विवादित संरचना घोषित करना संभव नहीं है। हिंदू पक्ष ने तर्क दिया था कि शाही ईदगाह का निर्माण प्राचीन मंदिर को तोड़कर किया गया, लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस फैसले से हिंदू पक्ष को झटका लगा है और माना जा रहा है कि वे अब सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
हिंदू पक्ष के वकील महेंद्र प्रताप सिंह ने 5 मार्च 2025 को याचिका दायर कर यह मांग की थी। उन्होंने मसीर-ए-आलम गिरी और मथुरा के कलेक्टर एफएस ग्रोसे जैसे ऐतिहासिक स्रोतों का हवाला देते हुए दावा किया था कि वहां पहले मंदिर था। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष मस्जिद के अस्तित्व का कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया और अंततः कोर्ट ने हिंदू पक्ष के खिलाफ फैसला सुनाया।