कनाडा खुफिया एजेंसी “CSIS” की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा से संचालित हो रहा है, जहां उग्रवादी भारत में हिंसा को बढ़ावा देने के लिए कनाडा को एक ठिकाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अहिंसक राजनीतिक मांगें अतिवाद नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित हिंसक अतिवाद चिंता का विषय है।
भारत लंबे समय से कनाडा को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए एक सुरक्षित जगह मानता आया है। जून 2023 में खालिस्तानी अलगाववादी नेता “हरदीप सिंह निज्जर” की हत्या के बाद दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया, कि दोनों देशों ने ही अपने राजनयिकों को स्वदेश बुला लिया। पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों ने इस कूटनीतिक संकट को और गहरा कर दिया था।
रिपोर्ट में मार्च 2024 में शुरू हुई विदेशी हस्तक्षेप पर सार्वजनिक जांच (Public Inquiry into Foreign Interference – PIFI) के पहले चरण का भी उल्लेख किया गया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि भारत और पाकिस्तान दोनों के अधिकारी विदेशी हस्तक्षेप में शामिल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान का उद्देश्य भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को रोकना है।
यह रिपोर्ट भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के “G7 शिखर सम्मेलन” के औपचारिक मुलाकात के बाद जारी की गयी। दोनों नेताओं ने हाई कमिश्नर नियुक्त करने के साथ संबंधों को सुधारने पर सहमति जताई।
खालिस्तानी उग्रवाद और भारत की चिंता
12 जून 2025 को इकोनॉमिक टाइम्स के हवाले से बताया गया कि कनाडा की “पील क्षेत्रीय पुलिस” ने ‘प्रोजेक्ट पेलिकन’ नामक विशेष अभियान के तहत- एक ख़ालिस्तान समर्थकनशीले पदार्थों के तस्कर और आतंकी गुट को गिरफ़्तार किया है। इस कार्रवाई को “कनाडा के इतिहास की सबसे बड़ी ड्रग बरामदगी” बताया गया है, जिसमें 479 किलोग्राम कोकीन ज़ब्त की गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी अनुमानित कीमत लगभग 400 करोड़ रुपये है।
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, इस नेटवर्क से नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें सात भारतीय मूल के व्यक्ति शामिल हैं, जो लंबे समय से कनाडा में बसे हुए थे। जांच में सामने आया कि यह गिरोह संयुक्त राज्य अमेरिका से कनाडा तक वाणिज्यिक ट्रकिंग मार्गों का इस्तेमाल कर रहा था और इसका मैक्सिकन ड्रग कार्टेल और अमेरिका-आधारित वितरकों से सीधा संपर्क था।
सूत्रों के अनुसार, इस ड्रग तस्करी से प्राप्त धन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिए किया जा रहा था — जिनमें प्रदर्शन, ख़ालिस्तान जनमत संग्रह, और हथियारों की ख़रीदारी शामिल हैं। खुफिया एजेंसियों ने यह भी संकेत दिया कि यह नेटवर्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI द्वारा प्रायोजित है, जो कनाडा में खालिस्तानी समूहों को मैक्सिकन कोकीन की तस्करी के लिए आर्थिक मदद देती है।
गिरफ्तार किए गए आरोपियों में भारतीय मूल के कई नाम शामिल हैं।
- सजगित योगेन्द्रराज, 31 वर्ष, टोरंटो
- मनप्रीत सिंह, 44 वर्ष, ब्रैम्पटन
- फिलिप टेप, 39 वर्ष, हैमिल्टन
- अर्विंदर पवार, 29 वर्ष, ब्रैम्पटन
- करमजीत सिंह, 36 वर्ष, कैलेडन
- गुर्तेज सिंह, 36 वर्ष, कैलेडन
- सरताज सिंह, 27 वर्ष, कैम्ब्रिज
- शिव ओंकार सिंह, 31 वर्ष, जॉर्जटाउन
- हाओ टॉमी हुआन्ह, 27 वर्ष, मिसिसॉगा
कनाडाई पुलिस के अनुसार, इन सभी आरोपियों पर ड्रग और हथियार संबंधित 35 आपराधिक धाराएं लगाई गई हैं।
पंजाब बनाम खालिस्तान
‘खालसा’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’। 1699 में गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में इस धर्म को ‘खालसा’ के रूप में पुनर्गठित किया गया। खालिस्तान की धारणा सिख धर्म में निहित है, जो 15वीं सदी में मुगल शासन के दौरान उदित हुआ।
इस आंदोलन के समर्थकों के बीच प्रस्तावित राज्य की सीमाओं को लेकर कोई सर्वसम्मति नहीं है, फिर भी अधिकांश प्रस्तावों में भारत के पंजाब राज्य को इसका मुख्य हिस्सा माना गया है। कुछ प्रस्तावों में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के पंजाबी भाषी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
किसी समय इस आंदोलन में केवल भारतीय राज्य नहीं, बल्कि पाकिस्तान अधीन पंजाब भी था। लेकिन, हाल के वर्षों में खालिस्तानी और पाकिस्तानी गठजोड़ के उजागर होने के बाद, खालिस्तान के मैप से पाकिस्तानी पंजाब नदारद हो गया।
2011 की भारत सरकार की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 2.08 करोड़ सिख हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 1.7 प्रतिशत हिस्सा हैं। इन सिखों में से अधिकांश — करीब 1.6 करोड़ — पंजाब राज्य में रहते हैं, जहां वे राज्य की कुल आबादी का लगभग 58 प्रतिशत हैं।
भारत की आज़ादी के बाद पंजाब में अकाली दल और कांग्रेस के बीच सत्ता का संघर्ष चलता रहा। 1970 और 80 के दशक में, भारत और प्रवासी सिख समुदायों के बीच खालिस्तान आंदोलन के प्रति समर्थन उभरने लगा। जल्द ही सिख विद्रोही नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले के प्रभाव में यह आंदोलन सशस्त्र विद्रोह में बदल गया।
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या, और देशभर में दंगे अंत में इसकी परिणीति रहे।
खालिस्तान, पाकिस्तान और ड्रग तस्करी
अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने 33 किलोग्राम हेरोइन के साथ अंतर्राष्ट्रीय ड्रग तस्करी से जुड़े एक प्रमुख आरोपी को गिरफ्तार किया। हरजीत सिंह, नामक यह व्यक्ति पंजाब के तरनतारन जिले के कासेल गांव का निवासी है। ये सीमावर्ती इलाका हाई-प्रोफाइल नार्को-टेररिज्म गलियारे के रूप में सक्रिय है।
वहीं दूसरी तरफ़ 21 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण कानूनी घटनाक्रम में, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने जगदीश सिंह भोला को जमानत दे दी। पंजाब पुलिस के पूर्व अधिकारी और इंटरनेशनल पहलवान- जगदीश सिंह भोला “नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम” के तहत जेल में थे। वर्ष 2013 में भोला की गिरफ्तारी से एक अरब डॉलर की ड्रग तस्करी श्रृंखला का पर्दाफाश हुआ था, जिसमें भारत से कनाडा तक हेरोइन व मेथामफेटामाइन पहुंचाई जाती थी।
नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुताबिक, पंजाब से हर साल अनुमानित 7,000 करोड़ रुपये की ड्रग्स भारत से बाहर भेजी जाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) और पंजाब पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, केवल 2024 में ही राज्य में नशे की बरामदगी में भारी इजाफा हुआ है: 800 किलोग्राम से अधिक हेरोइन, 1,200 किलोग्राम अफीम और बड़ी मात्रा में सिंथेटिक ड्रग्स जब्त की गई हैं।
कुछ ‘घरेलू’ उपाय
2025 में भारत सरकार ने खालिस्तानी आंतकवादियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई जारी रखी। द ट्रिब्यून के अनुसार, कैनेडियाई गैंगस्टर और आतंकी अर्श डल्ला के करीबी माने जाने वाले दो उग्रवादी- कश्मीर सिंह गलवड्डी, और बलजीत मौर की NIA ने गिरफ्तारी की पुष्टि की।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मई 2025 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) से जुड़े एक हत्या के षड्यंत्र को विफल कर दिया था, जिसमें मध्य प्रदेश से लाए गए चार सेमी ऑटोमैटिक पिस्तौल बरामद किए गए, और एक ऑपरेटर को गिरफ्तार किया गया था । इसके कुछ ही दिन बाद, पंजाब पुलिस ने “सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ)” से जुड़े एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जिसने डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर उस पर खालिस्तान समर्थक नारे लिखे थे। खबर में पुष्टि कि गयी कि यह सब एक सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय प्रचार रणनीति का हिस्सा था, जिसकी फंडिंग दूसरे देशों से हो रही थी।
भारत- कनाडा द्विपक्षीय मामले में, जून 2025 में एक साल के लंबे अंतराल के बाद दोनों देशों के संबंध गहराते नज़र आये। इटली में G7 शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने बातचीत के माध्यम से फिर से राजनयिक संबंध बहाल कर लिए। दोनों देशों ने ही भारत और कनाडा में हाई कमिश्नर नियुक्त किये जाने पर अपनी स्वीकृति दे दी है।
विशेषज्ञों के अनुसार, आनेवाले समय में खालिस्तानी उपद्रवियों द्वारा भारत में आतंकवाद वित्तपोषण, ड्रग ट्रैफिकिंग और उसके ब्लॉकचेन को रोकने में कुछ व्यापक कदम प्रभावी होंगे। जैसे:
- उन्नत सीमा निगरानी: सुरक्षा मामलों में एक समन्वित राष्ट्रीय रणनीति। सीमा निगरानी को अर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस – AI आधारित ड्रोन पहचान प्रणाली, सैटेलाइट निगरानी के माध्यम से अधिक प्रभावी बनाना।
- विकसित फोरेंसिक तकनीक: अत्याधुनिक फोरेंसिक क्षमताओं का विकास। सिंथेटिक ड्रग्स के बढ़ते खतरे को देखते हुए, आधुनिक प्रयोगशालाओं का बुनियादी ढांचा विकसित करना और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उन्नत नशीले पदार्थ-शिनाख्त तकनीकों में प्रशिक्षित करना ताकि यह सुनिश्चित रहे कि अभियोजन ठोस और प्रभावी है।
- वित्तीय निगरानी और FATF: वित्तीय निगरानी को भी व्यापक बनाना। FATF (वित्तीय कार्रवाई कार्यबल) को कनाडा की मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी (AML) और आतंकवाद फंडिंग निरोधक (CTF) ढांचे की निगरानी में अधिक परिपक्व भूमिका निभानी होगी, जिसमें खालिस्तान-सम्बंधित संभावित मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के प्रयास भी शामिल हों।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत द्वारा इंटरपोल में प्रस्तुत वास्तविक-समय खुफिया साझाकरण प्रणाली के प्रस्ताव को शीघ्र लागू कर, द्विपक्षीय समझौतों को संयुक्त अभियानों में विस्तारित करना।
- राजनीतिक प्रतिबद्धता: राजनीतिक जवाबदेही के तहत चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता, पुलिस और पत्रकारों जैसे विजिलबलोवेर्स के लिए मज़बूत सुरक्षा क़ानून।
आगे क्या?
भारत इस समय सिर्फ नशीले पदार्थों की समस्या से नहीं, बल्कि एक ‘हाइब्रिड युद्ध’ से जूझ रहा है। खालिस्तानी नेटवर्क— के साथ आईएसआई सहायता, प्रवासी फंडिंग और भारत होते हुए पाकिस्तान, अफगानिस्तान से लेकर कनाडा, यूएस और मेक्सिको तक बसा एक बड़ा नारकोटिक्स रैकेट शामिल है।
कनाडा का यह मानना कि ख़ालिस्तानी उग्रवाद केवल भारत के विरुद्ध है, आनेवाले समय में उनकी सबसे बड़ी भूल साबित होगी। हिंसा और चरमपंथ किसी देश के नहीं, बल्कि शांति के विरुद्ध होते हैं। यह दुखद है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) ने भी अब तक इस मामले पर संज्ञान नहीं लिया है।
उम्मीद करें कि NATO के हालिया दुर्दशा के विपरीत, दुनिया, समय रहते ही उग्रवाद के खिलाफ एकजुट हो जाए।