[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
रिटेल महंगाई दर 2% से नीचे, सरकार ने कहा- खाद्य सामग्री के दामों में गिरावट बड़ी वजह
चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में जिसे मृत बताया, उन दोनों को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंच गए योगेंद्र यादव
भारतीय छात्रों को ब्रिटेन में पढ़ाई का मौका, जानें क्‍या है प्रोसेस?
इस साल अब तक रुपये में 2.3% तो डॉलर में 9.53 फीसदी की गिरावट
जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव मंजूर, तीन सदस्यों की समिति गठित
केरल में जिस एक सीट पर जीती बीजेपी, उस सीट पर एक पते पर 9 फर्जी मतदाता!
बाढ़ और सुखाड़ के बीच जल रही ‘विकास और सरकारी वादों’ की चिताएं 
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की रिपोर्ट : UP के करीब 5 हजार संदिग्ध वोटर बिहार के भी मतदाता
चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी को हाइकोर्ट में चुनौती, ED ने जवाब पेश करने के लिए मांगा समय, 26 अगस्त को अगली सुनवाई
छत्तीसगढ़ में ट्रिपल मर्डर, रायपुर के तीन युवकों की धमतरी में हत्या, एक को दौड़ा-दौड़ा कर उतारा मौत के घाट
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
लेंस रिपोर्ट

जनगणना में आदिवासियों की धार्मिक पहचान पर संकट, उठ रहे सवाल

अरुण पांडेय
Last updated: June 30, 2025 2:41 pm
अरुण पांडेय
Share
Tribal and census
SHARE

देश में 2027 में प्रस्तावित जनगणना में जातियों के लिए अलग कॉलम शामिल करने का निर्णय लिया गया है, लेकिन आदिवासियों के धर्म को लेकर अलग से कॉलम न होने पर विवाद खड़ा हो गया है। अन्य धार्मिक विश्वास (ORP- Other Religious Persuasion) के कॉलम में ही आदिवासियों की धार्मिक पहचान को शामिल करने की योजना है।

खबर में खास
क‍ब–कब हुए बदलाव2011 की जनगणना में क्‍या थी स्थितिझारखंड में आदिवासियों की धार्मिक पहचान की मांग ने जोर पकड़ादो चरणों में होगी जनगणना, मार्च 2027 तक पूरा होने की उम्‍मीद

आदिवासी संगठनों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनकी धार्मिक मान्यताएं हिंदू, ईसाई या किसी अन्य धर्म से अलग हैं। जनगणना में उनकी पहचान को अलग कॉलम न देना आदिवासियों को अदृश्य कर देगा। आदिवासी संगठन इस बात को लेकर भी आशंकित हैं कि सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद के नाम पर सबको एक ही तराजू में तौले जाने का खतरा है। यह तब है जब ‘एक देश एक संस्‍कृति’ की मुहिम को आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों का समर्थन मिल रहा है। 

आदिवासी बाहुल राज्यों जैसे झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, एमपी और पूर्वोत्‍तर भारत के राज्‍यों में इस मुद्दे पर प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। झारखंड सरकार ने केंद्र से इस मांग पर विचार करने का आग्रह किया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक बयान में कह चुके हैं कि आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को संरक्षित करना हमारी प्राथमिकता है। हम केंद्र सरकार से इस दिशा में कदम उठाने की मांग करते हैं।

मौजूदा समय में राजनीतिक चर्चाओं में जातिगत जनगणना और आदिवासी पहचान दो प्रमुख मुद्दे बनकर सामने आए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बार-बार “आदिवासी बनाम वनवासी” का मुद्दा उठाया है, जिसमें वे आदिवासियों की अलग और विशिष्ट पहचान पर बल देते हैं। इसके विपरीत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन उन आदिवासियों का आरक्षण खत्म करने की मांग कर रहे हैं, जो ईसाई धर्म अपनाते हैं। इस संदर्भ में, आदिवासियों की धार्मिक और सामाजिक पहचान को स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

बेला भाटिया

बस्‍तर में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने द लेंस से कहा कि आगामी जनगणना में आदिवासियों के लिए दो तरह के कॉलम बनाए जाने चाहिए। पहला मुख्‍य कॉलम जिसमें आदिवासी का जिक्र हो और दूसरा उप कॉलम जिसमें वह अपनी धार्मिक पहचान बता सकें। जैसे यदि कोई आदिवासी ईसाई या अन्‍य धर्म अपना लेता है, तो इससे उसकी आदिवासी पहचान नहीं मिटनी चाहिए। वह मूल रूप से आदिवासी है और आदिवासी ही रहने देना चाहिए।   

सीपीआई (एम) की नेता वृंदा करात ने अपने एक लेख में तर्क दिया है कि जनगणना में आदिवासी धार्मिक पहचान को नजरअंदाज करना असंवैधानिक है। मौजूदा सरकार का ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ का केंद्रीकरण और एकरूपता का प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। 700 से अधिक मान्यता प्राप्त एसटी समुदायों में समानता और विविधता दोनों हैं। भारत की विविधता वास्तव में एसटी समूहों में दिखती है, जो सांस्कृतिक, भाषाई और आध्यात्मिक विविधता का प्रतीक हैं। आदिवासी समुदाय आत्मसात करने की नई रणनीतियों का विरोध कर रहे हैं। जनगणना में उनकी आस्थाओं की मान्यता की मांग भी ऐसा ही एक प्रतिरोध है।

वीडियो देखें : जनगणना में कहां हैं आदिवासी

क‍ब–कब हुए बदलाव

ब्रिटिश शासन के दौरान 1891 से 1941 तक की जनगणनाओं में आदिवासी धार्मिक पहचान को अलग-अलग नामों से दर्ज किया जाता था। 1891 में इसे “पीपल हैविंग अ ट्राइबल फॉर्म ऑफ रिलीजन” कहा गया, 1901 और 1911 में “ट्राइबल एनिमिस्ट”, 1921 में “हिल एंड फॉरेस्ट ट्राइब्स”, और 1931 में “प्रिमिटिव ट्राइब्स” के रूप में दर्ज किया गया। 1941 तक यह सिर्फ “ट्राइब्स” के रूप में जाना जाने लगा। इन सभी नामों के बावजूद, आदिवासियों को अपनी धार्मिक पहचान दर्ज करने का अवसर मिलता था।

हालांकि, स्वतंत्रता के बाद यह प्रक्रिया बदल गई। 1950 में संविधान लागू होने के बाद आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में वर्गीकृत किया गया, लेकिन जनगणना में उनकी धार्मिक पहचान “अन्य” श्रेणी में शामिल कर दी गई। इससे उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान धुंधली पड़ने लगी। 1968 से 1980 तक आदिवासी समुदायों ने “आदि धर्म” के नाम से मान्यता की मांग की और 1991 की जनगणना से पहले भी यह मांग उठी, लेकिन सफलता नहीं मिली।

2011 की जनगणना में क्‍या थी स्थिति

2011 की जनगणना में एसटी आबादी 10.43 करोड़ (8.6% कुल 120 करोड़ आबादी का) थी। लेकिन ORP कॉलम में केवल 0.66% (79 लाख लोग) ने खुद को दर्ज किया। इसका मतलब है कि अधिकांश एसटी समुदाय अपनी धार्मिक या आध्यात्मिक पहचान दर्ज नहीं कर पाए और उन्हें अन्य धर्मों के साथ गलत पहचान करनी पड़ी। यह अन्यायपूर्ण है।

अधिकांश आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और ORP कॉलम के बारे में कम जानकारी रखते हैं। जहां एसटी संगठनों ने ORP के तहत विशिष्ट आस्थाओं को दर्ज करने की जानकारी दी, वहां ORP में दर्ज होने वालों की संख्या बढ़ी। उदाहरण के लिए, झारखंड में सरना आंदोलन के कारण ORP में सरना के नाम पर सबसे ज्यादा 49 लाख लोग दर्ज हुए। मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय के आंदोलन के कारण 10 लाख से अधिक लोगों ने गोंड आस्था को ORP में दर्ज किया। यानी जहां जानकारी उपलब्ध होती है, वहां एसटी समुदाय अपनी आस्थाओं को दर्ज करना पसंद करते हैं।

नंद कुमार साय

इस मामले पर द लेंस ने बीजेपी के सीनियर आदिवासी नेता नंद कुमार साय से राय जानना चाही तो उनका कहना था कि संविधान में आदिवासियों के हितों के लिए पहले से ही तमाम प्रावधान हैं, जिनको ठीक ढंग से लागू किया जाना बेहद जरूरी है। आदिवासियों के धार्मिक पहचान एक जरूरी विषय तो है, लेकिन उससे ज्‍यादा जरूरी है कि उन्‍हें शैक्षणिक और आर्थिक रूप से कैसे मजबूत किया जाए। 

झारखंड में आदिवासियों की धार्मिक पहचान की मांग ने जोर पकड़ा

झारखंड के स्थापना वर्ष 2000 के बाद से सरना धर्म कोड की मांग ने जोर पकड़ा। झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम के आदिवासी समुदायों ने इसके लिए आंदोलन शुरू किए। 2020 में झारखंड विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास कर 2021 की जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कॉलम की मांग की। बीजेपी ने इसका विरोध नहीं किया। यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

हाल ही में 2027 की जनगणना की गजट अधिसूचना के बाद पाकुड़ जिले में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने कड़ा विरोध जताया। पार्टी ने साफ कहा कि जब तक आदिवासियों की धार्मिक पहचान को आधिकारिक मान्यता नहीं मिलती, तब तक झारखंड में जातिगत जनगणना नहीं होने दी जाएगी।

डॉ. वासवी किडो

इस बारे में आदिवासी लेखिका और झारखंड निवासी वरिष्‍ठ पत्रकार डॉ. वासवी किडो ने द लेंस को बताया कि देश में पहली जनगणना 1872 में हुई थी, हालांकि इसे व्यवस्थित रूप से 1881 में ब्रिटिश शासन के तहत पहली पूर्ण जनगणना माना जाता है। तब‍ आदिवासियों की धार्मिक पहचान को सुरक्षित रखा गया। मौजूदा समय में भी वही व्‍यवस्‍था लागू करने की जरूरत है। इससे आदिवासियों की संस्‍कृति और उनकी धार्मिक पहचान सुरक्षित रहेगी। वासवी किडो का कहना है कि सरना धर्म कोड को लेकर केंद्र सरकार को ऐतराज है क्‍योंकि उनका कहना है कि सरना धार्मिक स्‍थल है, इसलिए इसे धर्म के रूप में मान्‍यता नहीं दी जा सकती, ठीक उसी तरह जैसे मंदिर या चर्च में पूजा की जाती है। उन्‍होंने बताया कि कुछ दिन पहले आदिवासी समुदाय और संगठनों ने तय किया कि यदि सरकार को सरना धर्म कोड से एतराज है तो आदिवासी धर्म कोड लागू किया जाए, जिससे धार्मिक पहचान का संकट खत्‍म हो।

दो चरणों में होगी जनगणना, मार्च 2027 तक पूरा होने की उम्‍मीद

गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना और जातिगत जनगणना के लिए आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है। यह प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होगी। पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 तक और दूसरा चरण 1 मार्च 2027 तक समाप्त होगा। 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि को संदर्भ तिथि माना जाएगा, जिसके आधार पर जनसंख्या और सामाजिक स्थिति के आंकड़े दर्ज किए जाएंगे। इसके बाद आंकड़े सार्वजनिक होने शुरू होंगे। जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड जैसे हिमालयी और दुर्गम क्षेत्रों वाले राज्यों में मौसम और भौगोलिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जनगणना 1 अक्टूबर 2026 तक पूरी कर ली जाएगी।

आजादी के बाद पहली बार जनगणना के साथ जातिगत जनगणना होगी, जिसमें OBC, SC, ST और सामान्य वर्ग की सभी जातियों की गिनती होगी। साथ ही आय, शिक्षा और रोजगार जैसे सामाजिक-आर्थिक आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। यह डेटा सरकार की योजनाओं, आरक्षण नीतियों और सामाजिक न्याय से जुड़े कार्यक्रमों के लिए महत्वपूर्ण होगा। केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्यों को अनुदान देने के लिए इस डेटा का उपयोग करेगा।

जनगणना की पूरी प्रक्रिया 21 महीनों में, यानी 1 मार्च 2027 तक पूरी होगी। प्राथमिक आंकड़े मार्च 2027 में जारी हो सकते हैं, जबकि विस्तृत आंकड़े दिसंबर 2027 तक सामने आएंगे। इसके बाद 2028 में लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन शुरू हो सकता है, जिसमें महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू हो सकता है। इस तरह 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की स्थिति भी स्पष्ट हो सकती है।

TAGGED:CensusORPOther Religious PersuasionReligious identityTop_NewsTribal
Previous Article Trump vs journalist Media standing up to a bully
Next Article RSS vs congress आरएसएस को संविधान की प्रस्तावना नापसंद, कांग्रेस ने किया हमला

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

अमेरिका में बोइंग विमान में लगी आग, डेनवर हवाई अड्डे पर टला बड़ा हादसा

द लेंस न्यूज नेटवर्क। अमेरिका के डेनवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर शनिवार को एक बड़ा हादसा…

By पूनम ऋतु सेन

अंधेरे में

विपुल खनिज संपदा और वनों से समृद्ध बस्तर कई तरह के विरोधाभासों के साथ जीता…

By The Lens Desk

मुस्लिमों को मोदी की तरफ से ‘ईदी’ क्‍यों बांट रही बीजेपी  

नई दिल्‍ली। भारतीय जनता पार्टी के अल्‍प संख्‍यक मोर्चे ने ईद के मौके पर ‘सौगात-ए-मोदी’…

By अरुण पांडेय

You Might Also Like

india pakistan war
दुनिया

दुनिया के चश्‍मे से कैसा दिख रहा है भारत-पाकिस्तान तनाव

By अरुण पांडेय
अन्‍य राज्‍य

एयर इंडिया की फ्लाइट में झटकों से यात्रियों में हड़कंप, 10 मिनट तक अटकी रही सांसें, बिखर गई नाश्ते की प्लेट

By Lens News Network
Supreme Court : निशिकांत दुबे पर आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू
देश

सीजेआई के बाद दुबे के निशाने पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी, इधर सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अवमानना को लेकर कवायद शुरू

By आवेश तिवारी
SC ON BIHAR SIR
अन्‍य राज्‍य

बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल, ADR ने उठाए सवाल

By पूनम ऋतु सेन
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?