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Home » 55 के राहुल, 21 साल की राजनीति

देश

55 के राहुल, 21 साल की राजनीति

Awesh Tiwari
Last updated: June 19, 2025 12:51 pm
Awesh Tiwari
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Rahul Gandhi Birthday
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नई दिल्‍ली। राहुल गांधी भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं, जो नेहरू-गांधी परिवार से मिली विरासत को परे रखकर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह जानते हैं कि न केवल उनके परिवार की, बल्कि देश की समृद्ध राजनीतिक विरासत की छवि को छिन्न भिन्न करने का दौर चल पड़ा है। वैसे में  सिर्फ विरासत की चादर ओढ़ने से काम नहीं चलेगा, जनता से सीधे और मजबूत कनेक्शन बनाना होगा।

राहुल गांधी ऐसे समय में राजनीति में आए, जब 70 के दशक का वह पोस्टर धुंधला हो चुका था जिस पर लिखा रहता था ‘हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं’। यह गलतफहमी नहीं रखनी चाहिए कि राहुल गांधी कांग्रेस के पीछे-पीछे या उसके झंडे के नीचे चल रहे हैं। दरअसल राहुल गांधी कांग्रेस से आगे चल रहे हैं। कांग्रेस को उनकी गति पकड़नी है, चाहे वह सामाजिक न्याय का मामला हो आरक्षण का मुद्दा हो या संप्रदायवादी राजनीति के खिलाफ स्टैंड लेने की बात हो।

राहुल गांधी 55 वर्ष के हो चुके हैं। यह उम्र भारतीय राजनीति में चरमोत्कर्ष की होती है। उनका जन्म 19 जून, 1970 को नई दिल्ली में हुआ है। उनके परिवार ने भारत  की राजनीति को दशकों तक प्रभावित किया है। अब राहुल गांधी कर रहे हैं। यह सच है कि विपक्षी एकता की कोई बात अब भी राहुल गांधी के बिना सम्भव नहीं हो पाती। राहुल गांधी को नजदीक से जानने वाले तमाम लोग मानते हैं कि अगर पिछले लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने की स्थिति बनती, तब भी वह प्रधानमंत्री का पद स्वीकार नहीं करते। शायद आगे भी ऐसी स्थिति बने तो संभव है, राहुल गांधी इससे इनकार कर दें और किसी दलित, पिछड़े या अल्पसंख्यक को देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए आगे कर दें।

उनकी राजनीति बहुत हद तक उनके दादा फिरोज गांधी की राजनीति है। वह इंदिरा गांधी की इमरजेंसी, ऑपरेशन ब्लू स्टार पर अंगुली उठाने से भी गुरेज नहीं करते। कांग्रेस की गलतियों को स्वीकारना उनकी आदत में है। राहुल बहुत कुछ फिरोज गांधी की तरह क्रांतिकारी विद्रोही हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व का एक संवेदनशील पहलू यह भी है कि वह जिस तरह से समाज के अलग अलग तबके के लोगों से मिलते हैं, देश को एक विद्यार्थी की तरह जानने की कोशिश करते हैं। मौजूदा भारतीय राजनीति यह विरल उदाहरण है।

राहुल गांधी ने 2004 के आम चुनाव में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। उन्होंने गांधी परिवार की पारंपरिक अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वे लगातार 2009 और 2014 में इसी सीट से विजयी रहे। हालांकि 2019 में वह  भाजपा की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी से अमेठी में हार गए, लेकिन केरल के वायनाड से संसद पहुंचे।

2007 में राहुल कांग्रेस के महासचिव बने और यूथ कांग्रेस तथा एनएसयूआई (छात्र संगठन) की कमान संभाली। 2013 में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया और 2017 में वे कांग्रेस अध्यक्ष बने। राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन 2014 और 2019 के आम चुनावों में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2014 में भाजपा के नेतृत्व में नरेंद्र मोदी की प्रचंड जीत ने कांग्रेस को ऐतिहासिक रूप से कमजोर स्थिति में पहुंचा दिया। राहुल गांधी ने इस हार की नैतिक जिम्मेदारी ली और पार्टी में सुधार के प्रयास किए।

2019 में राहुल गांधी ने विपक्ष का मुख्य चेहरा थे। उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी, राफेल सौदे, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं को मुद्दा बनाकर सरकार पर तीखा हमला बोला। लेकिन चुनावों में कांग्रेस को दोबारा बड़ी हार का सामना करना पड़ा और राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। निश्चित तौर पर इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि 2014 में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी समेत समूचा विपक्ष और खुद राहुल गांधी सड़क और जनता के बीच से नदारद थे।

अमेठी सीट पर हार उनके राजनीतिक जीवन ले लिए  एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई। हालांकि, वे केरल की वायनाड सीट से जीतकर संसद पहुंचे और विपक्ष में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

राहुल गांधी की राजनीति सामाजिक और आर्थिक न्याय पर केंद्रित है। यकीनन अब उन्होंने खुद को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर लिया है। वह जानते हैं कि आर्थिक न्याय भी सामाजिक न्याय से ही संभव है। राहुल गांधी की राजनीति खांटी हिंदुस्तान की और हिन्दुस्तानियों की राजनीति है, यह लाइन वह नहीं छोड़ते। वह बार-बार संविधान के मूल मूल्यों की रक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर जोर देते हैं। उनकी राजनीतिक समझ में गरीब, किसान, मजदूर, युवा और सभी है।


राहुल गांधी अब जिद्दी हैं, उन्हें वह सूत्र पता है कि क्या बोलने से सत्ता पक्ष परेशान हैरान हो सकता है। वह भाजपा और भाजपा नेताओं की राजनीति पर कुछ भी बोलने में संकोच नहीं करते। वह बार-बार संस्थाओं की स्वतंत्रता, प्रेस की आजादी और संविधान की मूल भावना की रक्षा करने की बात करते हैं, लेकिन मीडिया को लेकर उनकी भाषा ज्यादातर मौकों पर आक्रामक और अनापेक्षित होती है।

राहुल गांधी की राजनीतिक समझ पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिलती रही हैं। उनके समर्थक उन्हें संवेदनशील, ईमानदार और जनसरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध मानते हैं। आलोचक उन्हें कभी-कभी अप्रभावी रणनीतिकार और निर्णयों में अस्थिर बताने की कोशिश करते हैं।

यह सच है कि भारी धन खर्चे करके भी उनकी छवि को बिगाड़ पाना भाजपा के लिए संभव नहीं हो पाया। निस्संदेह अगर कांग्रेस का संगठन निष्प्रभावी है, क्षेत्रीय क्षत्रपों ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की जगह ले ली है तक इसका ठीकरा राहुल गांधी पर भी फूटेगा। यह सवाल तो उठेगा ही कि संगठन की मजबूती को लेकर उन्होंने क्या किया? उस तंत्र को समाप्त करने की कोशिश भी नहीं की गई जो छद्म रूप से राहुल और कार्यकर्ताओं के बीच खड़ा रहता है जिसकी वजह से संवादहीनता रहती है।

राहुल गांधी ने 2014 और 2019 और फिर 2025 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ साझा विपक्ष को खड़ा करने  की कोशिश की। उन्होंने राफेल सौदा, नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने 2025 में कांग्रेस को मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया निस्संदेह इसके पीछे भारत जोड़ो यात्रा जैसे अभियान भी बड़ी वजह थे।  जिसके माध्यम से देश में नफरत के खिलाफ और एकता के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते दिखे। ऐसे ही माध्यम सूत्र बनेंगे लेकिन इसमें वक्त लगेगा शायद राहुल भी यह जानते हैं।

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