
स्वतंत्र लेखक
कहावत है, ‘खावे पान, टुकड़े को हैरान ‘ मतलब रोटी के लिए भले ही परेशान हो, पर पान जरूर खाया जाएगा। ये देश की बरसों की तस्वीर देखते हुए ही कहावत कही गई होगी। यही वजह है देश में पान दुकानों, ठेलों, गुमटियों की संख्या असीमित है। इसका अनुमान भी लगाना मुश्किल है।
भारत में पान की दुकानों की संख्या का एक अनुमान एक पुराने स्रोत (Quora, 2014) से मिलता है, जिसमें कहा गया है कि प्रति एक लाख जनसंख्या पर 345 पान की दुकानें हैं। इस स्रोत से मान लीजिये आज 11 बरस बाद प्रति लाख आबादी 400 पान की दुकानें हो गई हों, तो दो लाख की आबादी वाले शहर में काम से काम 700 से 800 पान ठेले / दुकानें होनी चाहिए।
जिन दिनों फ़िल्मी गाने बजते कि ‘खइके पान बनारस वाल खुली जाए बंद अक्ल का ताला…’ उस समय उन शहरों के लोगों के ताले कैसे खुलते होंगे, जो पान नहीं खाते या जहां पान दुकान न हो !
जिन दिनों ये गीत बजता, ‘चली आना तू पान की दूकान पर ठीक साढ़े तीन बजे ..’ उन दिनों वे लोग साढ़े तीन बजे कहाँ मिलते होंगे … ?
किसी ने लिखा है :
‘पान के ठेले होटल लोगों का जमघट अपने तन्हा होने का एहसास भी क्या’
तो क्या जहां पान ठेले नहीं होते, वहां रौनक या जमघट नहीं जुटता!
डॉन पान नहीं खाता ये बहुत बुरा करता है …ये अमिताभ का सुप्रसिद्ध डायलाग है। अब अगर इसी तरह सोचें जो शहर पान नहीं खाते, जिन्हें पान की तलब नहीं है, वो बुरा करते हैं ..हाहाहा
गंभीर होने की ज़रूरत नहीं। सिर्फ आंखों देखी बता रहा हूं कि ऐसे शहर ऐसे मोहल्ले हैं, जहां दूर -दूर तक आपको पान ठेले नहीं मिलेंगे। सिगरेट, सौंफ आपको जनरल स्टोर में मिलेगी पर पान न मिलेगा, इसलिए ऐसी जगहों पर रहते हुए किसी को ‘साढ़े तीन बजे ‘ पान दुकान पर नहीं बुलवाया जा सकता।
बात सीधे पहाड़ों की रानी शिमला की करूं तो शिमला के सुप्रसिद्ध पर्यटक पॉइंट माल रोड पर स्वादिष्ट पान की दो -एक दुकानें / ठेले मिलेंगे। इसी से लगे लोअर बाजार में भी मिल जाएगा पर ये शिमला की तस्वीर नहीं है।
जैसे मैंने बताया औसत दो लाख की आबादी पर 700 -800 पान ठेले इस देश में हैं, पर शिमला में पूरे कार्ट रोड घूम लीजिए, पन्था घाटी से लेकर शोघी के बीच छान लीजिए बमुश्किल कोई मिले तो मिले मुझे तो एक न दिखा !
मैंने बहुत से लोगों से बात की। एक जनरल स्टोर चलने वाले सज्जन ने कहा, ‘बस चलन नहीं है जी। हमने पिता और दादा को ही कभी खाते न देखा तो रिवाज ही नहीं है। ‘
कपड़ों के एक व्यापारी का कहना है कि ‘नीचे के कुछ लोगों ने प्रयास किए थे पर चला ही नहीं सो परचून की दुकान बना ली। ‘
एक सज्जन का कहना है कि उन्हें विशेष शौक नहीं है, कभी -कभी मन करता है, तो माल रोड जब जाते हैं खा लेते हैं।
एक सीधा फायदा तो है, पूरा शिमला पान के छीटों -दाग से मुक्त है।
शिमला के लिए पान दुर्लभ है, ऐसा नहीं पर पान ठेले नहीं हैं। गोष्ठियां, अड्डेबाजी चाय के अड्डों पर होती है। शिमला में बाहर से आए लोगों को पान माल रोड, लोअर बाज़ार आदि से मिल जाता है पर आम हिमाचली इसके कतई आदि नहीं। पीढ़ियों से उनके यहां ऐसी कोई परंपरा नहीं।
पान चबाते हुए आम लोग जैसे नीचे लोग बतियाते हैं, पीकदान प्रयोग करते हैं , दीवारों को रंगते हैं, ओठ लाल -लाल दीखते हैं, ये दृश्य शिमला में आम नहीं है, क्योंकि नीचे की तरह पान का रिवाज यहां आम नहीं है।
पर पान हिन्दुस्तान की जान है, यही तो मानते हैं हम। मानिये पर पूरे हिन्दुस्तान को देखिये बहुत से प्रदेश /शहर मिलेंगे जहां खान -पान स्वादिष्ट होगा, थोड़ी -थोड़ी दूर में सुरा-पान की सुविधा जरूर होगी पर पान न मिलेगा!