रायपुर। “1991 में कांग्रेस सरकार द्वारा लाई गई उदारीकरण नीति के बाद से आदिवासी समाज के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं, जिसे किसी भी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया, चाहे वह केंद्र हो या राज्य सरकार।“ यह बात कही है पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने। वह शुक्रवार को रायपुर में पत्रकारों से मुखातिब थे क्योंकि वह नागपुर में संघ के एक कार्यक्रम से लौटे थे।
उन्होंने कहा कि आरएसएस कोई राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक मंच है, जो गहन चिंतन-मंथन करता है। आरएसएस ने अब आदिवासियों को वनवासी कहना बंद कर दिया है। यह बदलाव हमारी कोशिशों की वजह से हुआ है।
नेताम ने कहा कि उदारीकरण के बाद आदिवासी समाज के लिए खतरे की स्थिति उत्पन्न हुई, जो पिछले 35 वर्षों से दिख रही है। उन्होंने व्यक्त किया कि सरकारों ने आदिवासियों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया। राजनीति से लगभग संन्यास ले चुके नेताम ने बताया कि वे अब सामाजिक कार्यों पर ध्यान दे रहे हैं, जो उनकी बचपन की रुचि रही है।
नेताम ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अपनी सार्थक बातचीत का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने आदिवासी समाज और संघ के बीच वैचारिक दूरी को कम करने पर चर्चा की। उन्होंने आरएसएस से आग्रह किया कि आदिवासी समाज में एकजुटता की कमी को दूर करने के लिए कदम उठाए जाएं। नेताम ने दोहराया कि कांग्रेस के उदारीकरण ने आदिवासियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी और जब सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं, तो आरएसएस ही एकमात्र संगठन बचता है, जो मदद कर सकता है।
उन्होंने आश्चर्य जताया कि संघ ने उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया, जो उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए सोच-समझकर लिया गया फैसला था। इसके लिए उन्होंने संघ का आभार व्यक्त किया।
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक बहस तेज
नेताम के संघ मुख्यालय में दिए गए भाषण के बाद आदिवासी संस्कृति और धर्मांतरण को लेकर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक बहस तेज हो गई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने नेताम पर संघ की भाषा बोलने का आरोप लगाया। वहीं इसका जवाब देते हुए नेताम ने बैज के धर्म पर सवाल उठाते हुए पूछा कि कहीं उनका धर्म ईसाई तो नहीं हो गया।