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लेंस संपादकीय

अफसरों की जमानत पर रिहाई

Editorial Board
Last updated: May 31, 2025 7:24 pm
Editorial Board
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chhattisgarh coal scam
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छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला और डीएमएफ घोटालों में आरोपी दो निलंबित आईएएस समीर विश्नोई और रानू साहू तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव रहीं सौम्या चौरसिया की सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जमानत पर हुई रिहाई ने यह विचार करने का मौका दिया है कि आखिर लोकतंत्र में अधिकारियों की जवाबदेही किसके प्रति होती है, सत्ता के गलियारे में नेता-अफसर-ठेकेदार का गठजोड़ काम कैसे करता है? वास्तव में यह आपसी हितों का ऐसा गठजोड़ है, जिसके सूत्रधार को पकड़ पाना आसान नहीं है। देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने नौकरशाही को भारत का ‘स्टील फ्रेम’ कहा था और उम्मीद जताई थी कि सत्ता और नौकरशाही बेहतर तालमेल से काम करेगी। लेकिन उत्तरोत्तर इस तालमेल का न केवल क्षरण हुआ है, बल्कि यह राज्य या देश के हित के बजाए निहित स्वार्थ को साधने का जरिया बन गया। छत्तीसगढ़ के मामले में ही देखा जा सकता है कि किस तरह सत्ता और नौकरशाही के साथ ही ठेकेदारों की मिलीभगत से कोयला खनन के नाम पर लेवी और डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन) के कमीशन के रूप में हजारों करोड़ रुपये के घोटालों को अंजाम दिया गया। दरअसल ऐसे हर मामले में ये तीन सवाल महत्वपूर्ण हैं, पहला यह कि क्या सत्ता ने नौकरशाहों को कमीशन वगैरह के लिए मजबूर किया और यदि यह सच है, तो इन अधिकारियों ने अपनी रीढ़ सीधी रखकर इसका विरोध क्यों नहीं किया। दूसरा यह कि क्या अधिकारी इतने ताकतवर हैं कि उन्होंने सत्ता को कमीशन के लिए मजबूर या गुमराह कर दिया। और तीसरा यह कि क्या कमीशन का धंधा सत्ता और नौकरशाही की आपसी रजामंदी से चलता रहा? सवाल उन जांच एजेंसियों पर भी है, जिनकी खुद की कमीज में कम दाग नहीं हैं, जैसा कि हाल ही में ईडी एक अफसर को 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया गया है। देर से आने वाले फैसले या मामलों के निपटारे के राजनीतिक निहितार्थ भी होते हैं, इसे भी समझने की जरूरत है।

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