नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को डिजिटल पत्रकार अजय शुक्ला के खिलाफ एक वरिष्ठ न्यायाधीश के बारे में “कठोर और निंदनीय” टिप्पणी करने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की। न्यायालय ने यूट्यूब को वरप्रद मीडिया के प्रधान संपादक अजय शुक्ला का वीडियो हटाने का भी निर्देश दिया।
द लेंस से बातचीत में अजय शुक्ला ने न्यायालय की कार्रवाई को आश्चर्यजनक बताते हुए कहा कि मैं न्यायालय में अपना पक्ष रखूंगा, मैंने किसी भी न्यायाधीश की मानहानि नहीं की है। जस्टिस बेला त्रिवेदी के अपने हालिया वीडियो पर अजय शुक्ला ने कहा कि एक पत्रकार की सीमा में रहकर ही मैंने अपना काम किया है।
शुक्ला के वीडियो पर स्वत: संज्ञान लेते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि “व्यापक रूप से प्रकाशित इस तरह के निंदनीय आरोपों से न्यायपालिका की प्रतिष्ठित संस्था की बदनामी होने की संभावना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। लेकिन यह स्वतंत्रता वाजिब प्रतिबंधों के अधीन है। किसी व्यक्ति को ऐसे आरोप लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती जो इस न्यायालय के न्यायाधीश को बदनाम करने की प्रकृति के हों और अवमाननापूर्ण भी हों, जो न्यायपालिका की संस्था की बदनामी करने का प्रयास करते हों।”
न्यायालय ने रजिस्ट्री को मामले को अवमानना का मामला मानकर पंजीकृत करने और शुक्ला को नोटिस जारी करने को कहा। भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से न्यायालय की सहायता करने का अनुरोध किया गया। सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय को स्वत: संज्ञान से की गई कार्रवाई के लिए धन्यवाद दिया।
हालांकि पीठ ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह न्यायाधीश कौन है जिसके खिलाफ आरोप लगाए गए थे, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि शुक्ला ने हाल ही में न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी के खिलाफ टिप्पणी करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया था। शुक्ला पिछले तीन वर्षों से वरप्रद मीडिया के प्रधान संपादक हैं।