नई दिल्ली। (Impeachment on Justice Verma) इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की चर्चा जोरों पर है, क्योंकि उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के बाद वहां से भारी मात्रा में अधजली नकदी बरामद हुई थी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को सही पाया है, जिसके बाद भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की।
भारत में न्यायपालिका के उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया एक संवैधानिक कदम है, जो गंभीर दुराचार या अक्षमता के मामलों में शुरू की जा सकती है।
मीडिया खबरों के अनुसार, केंद्र सरकार जुलाई 2025 में शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। सरकार इस प्रस्ताव के लिए विपक्षी दलों से भी समर्थन जुटाने की कोशिश में है, क्योंकि इसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफा नहीं देते, तो यह प्रस्ताव संसद में पेश किया जा सकता है।
जानिए क्या है महाभियोग की प्रक्रिया
महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है। लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर इस प्रस्ताव के लिए आवश्यक हैं।
प्रस्ताव स्वीकार होने पर, संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी (लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति) भारत के मुख्य न्यायाधीश से एक जांच समिति गठित करने का अनुरोध करते हैं। इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट जज, एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होते हैं।
समिति आरोपों की गहन जांच करती है और अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंपती है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है।
दोनों सदनों से पारित होने के बाद, प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो जज को पद से हटाने का अंतिम आदेश जारी करते हैं।
जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला
जस्टिस यशवंत वर्मा, जो पहले दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे, मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के बाद विवादों में आए। इस घटना के दौरान वहां से भारी मात्रा में अधजली नकदी बरामद हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 40 दिनों तक जांच की, जिसमें दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली अग्निशमन सेवा के प्रमुख सहित 45 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए गए।
जांच में यह पाया गया कि नकदी की मौजूदगी के लिए जस्टिस वर्मा के निजी स्टाफ पर संदेह है, लेकिन जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने दावा किया कि जिस कमरे में नकदी मिली, वह सभी के लिए सुलभ था और इसका उनके परिवार से कोई संबंध नहीं है।
इसके बावजूद पूर्व CJI संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने का सुझाव दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसके बाद सीजेआई ने 3 मई को जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा का जवाब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेज दिया।
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