[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
‘भूपेश है तो भरोसा है’ फेसबुक पेज से वायरल वीडियो पर FIR, भाजपा ने कहा – छत्तीसगढ़ में दंगा कराने की कोशिश
क्या DG कॉन्फ्रेंस तक मेजबान छत्तीसगढ़ को स्थायी डीजीपी मिल जाएंगे?
पाकिस्तान ने सलमान खान को आतंकवादी घोषित किया
राहुल, प्रियंका, खड़गे, भूपेश, खेड़ा, पटवारी समेत कई दलित नेता कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में
महाराष्ट्र में सड़क पर उतरे वंचित बहुजन आघाड़ी के कार्यकर्ता, RSS पर बैन लगाने की मांग
लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर AC बस में लगी भयानक आग, 70 यात्री बाल-बाल बचे
कांकेर में 21 माओवादियों ने किया सरेंडर
RTI के 20 साल, पारदर्शिता का हथियार अब हाशिए पर क्यों?
दिल्ली में 15.8 डिग्री पर रिकॉर्ड ठंड, बंगाल की खाड़ी में ‘मोंथा’ तूफान को लेकर अलर्ट जारी
करूर भगदड़ हादसा, CBI ने फिर दर्ज की FIR, विजय कल पीड़ित परिवारों से करेंगे मुलाकात
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
छत्तीसगढ़

बस्तर में आज तक एक भी ग्रामसभा ईमानदारी से नहीं हुई : अरविंद नेताम

सुदीप ठाकुर
सुदीप ठाकुर
Published: May 28, 2025 7:05 PM
Last updated: May 29, 2025 12:22 PM
Share
Arvind Netam Interview
SHARE
The Lens को अपना न्यूज सोर्स बनाएं

:: विशेष साक्षात्कार ::

बस्तर संभाग के कांकेर से लंबे समय तक  लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके  और इंदिरा गांधी और नरसिंह राव की कांग्रेस सरकारों में केंद्रीय मंत्री रहे अरविंद नेताम का कहना है कि माओवादियों के सफाये के बाद एक हाई पावर कमेटी बननी चाहिए जो यह तय करे कि बस्तर में डेवलपमेंट किस तरह हो। बेहद पीड़ा के साथ वह कहते हैं कि बस्तर में जितने औद्योगिक लाइसेंस दिए जा रहे हैं, उनमें ईमानदारी से ग्राम सभा की मंजूरी नहीं ली गई है। बस्तर में सबसे बड़े माओवादी नेता बसवराजू सहित अन्य माओवादियों के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद द लेंस के सुदीप ठाकुर ने नेताम से हुई लंबी बातचीत में यह जानने की कोशिश की कि वह बदलते हालात में बस्तर को किस तरह देख रहे हैः

खबर में खास
कॉर्पोरेट तो अपना मजदूर भी साथ लाते हैं…अबूझमाड़ आर्मी को दिया जा रहा है
  • अबूझमाड़ में डीआरजी के साथ मुठभेड़ में सबसे बड़े माओवादी नेता और सीपीआई (माओवादी) के जनरल सेक्रेट्री बसव राजू के मारे जाने के बाद और पिछले कुछ समय से माओवादियों के खिलाफ चल रहे अभियान को देखते हुए कहा जा रहा है कि यह बस्तर में माओवाद के अंत की शुरुआत है, आप इस पूरे हालात को किस तरह देख रहे हैं?

यह परीक्षा की घड़ी होगी केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार दोनों के लिए। मेरी तो यह सोच है कि इस माहौल के बाद अगर सरकार कहती है कि हमने माओवादियों को एलमिनेट कर दिया है, तो उसके बाद सरकार की क्या रणनीति होगी, यह मैं नहीं जानता। अगर वह सोच रहे होंगे कि हमने तो उन्हें खतम कर दिया और उत्साह मनाने लगेंगे, तो देखिए माओवाद एक राजनीतिक विचारधारा है। यह अंतरराष्ट्रीय विचारधारा है। ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ अपने देश में है और सिर्फ बस्तर में है। यह तो अंतरराष्ट्रीय विचारधारा है।

राजनीतिक विचारधारा कब क्या करवट लेगी इसका कोई अंदाज रहता नहीं है। हो सकता है कि माओवादी फिर से संगठित हों और अपनी स्थिति को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर सकते हैं। यह संभावना है, बशर्ते कि सरकार को सतर्क रहना चाहिए। मेरा तो यह कहना है कि एक हाई पावर कमेटी बननी चाहिए कि बस्तर को इस परिस्थिति में डेवलप कैसे करना है। विकास की जो परिभाषा है, सरकार की नजरों में और बहुत से लोगों की नजरों में कि बड़े उद्योग लगने चाहिए तभी विकास होगा। मैं केवल बस्तर के लिए नही, बल्कि पूरे देश के लिए, वह भी आदिवासी इलाकों के लिए कह रहा हूं। पर सरकार कभी आदिवासियों से पूछ कर तो देखे कि विकास की उनकी परिभाषा क्या है, जो आज तक कभी पूछी भी नहीं गई।

  • आपने लंबे समय तक बस्तर (कांकेर) का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है। आप 1972 से केंद्र में मंत्री बन गए थे। बस्तर में 80 के दशक से नक्सली या माओवादियों का आगमन हुआ और उन्होंने आदिवासियों का भरोसा जीता। इस चालीस-पचास सालों में बस्तर के हालात क्यों नहीं बदले, आप इसे कैसे देखते हैं? आप इसके लिए किन दो तीन बुनियादी बातों को जिम्मेदार मानते हैं?

देखिए मैं आज भी कहता हूं कि बस्तर के विकास के लिए कौन गंभीर है, ये बता दीजिए। आप जर्नलिस्ट हैं, सरकार के स्तर पर, पॉलिटिकल पार्टीज, कांग्रेस हो या भाजपा या लेफ्ट आप सबको वाच करते रहते हैं, आप बता दीजिए गंभीर कौन हैं। और गंभीर हैं, तो उनकी सोच का विचार का पैमाना क्या है। केवल बयानबाजी से तो नही चलेगा काम। एक बात मैं आपको बता रहा हूं, इसका कोई उत्तर या काट नहीं बना सका। राजीव गांधी ने यह कहा था कि हम सौ रुपया भेजते हैं, तो मुश्किल से पंद्रह रुपया पहुंचता है। आज भी वही है। हम उस समय संसद में थे। हमने सरकार में यह जानने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री ने इतना बड़ा स्टेटमेंट देश के सामने दिया है,तो क्या सरकार में किसी ने इसे गंभीरता से लिया। कहीं दिखता नहीं था। आज भी करप्शमन सबसे बड़ी समस्या है।

  • बस्तर में माइनिंग को लेकर काफी बातें होती हैं। सुरक्षा बलों के इस ऑपरेशन को भी इससे जोड़ कर देखा जा रहा है। क्या इसे माइनिंग से जोड़ कर देखना चाहिए?

ये सब इंटरलिंक्ड हैं। जब तक माओवादियों का यहां से सफाया नहीं करते, तब तक माइनिंग ऑपरेशन नही कर सकते। राज्य सरकार हो, यह केंद्र सरकार, वे अच्छी तरह से इसे जानती रही हैं। इसलिए भारत सरकार और राज्य सरकार ने कहा कि पहले माओवादियों का इलाज किया जाए। सरकार उस दिशा में गई और काफी हद तक दिखता है कि उन्हें सफलता मिली है। (यह) चाहे अच्छा हो या गलत हो, यह अलग बात है। माइनिंग ऑपरेशन में माओवादी अड़ंगा थे और इसीलिए पहले उनका इलाज किया गया कि इनको पहले खत्म किया जाए। (बस्तर में) इतनी फोर्स लगाई गई है, एक से डेढ़ लाख तो पैरामिलिट्री फोर्स है। इतनी फोर्स तो जम्मू और कश्मीर के बॉर्डर पर नहीं है।

कॉर्पोरेट तो अपना मजदूर भी साथ लाते हैं…

  • जहां तक खदानों की बात है, तो यह भी कहा जा रहा है कि ये कॉर्पोरेट को दे दी जाएंगी, या दी जा रही हैं। ऐसे में नई परिस्थितियों में आदिवासियों को क्या मिलेगा?

वही तो हमारा प्रश्न है। हमको तो गड्ढा खोदने के लिए भी नहीं मिलेगा। बाहर से आने वाले कॉर्पोरेट तो अपना मजदूर भी साथ लाते हैं। अब तो यह ट्रेंड हो गया है इस देश में। जो भी उद्योगपति हैं, वह अपने साथ पूरा सैटअप लाता है और लोकल लोगों को कुछ नहीं मिलता… नगरनार (स्टील प्लांट) में देख लीजिए ना, एक भी लोकल नहीं है। शुरुआत में ऐसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं, जैसे यहां बिल्कुल स्वर्ग हो जाएगा। यदि आप दक्षिण बस्तर गए होंगे, तो वहां सभी जगह फोरलेन रोड बनी है, बन रही है। इनसे साऊथ (बस्तर) की सारी माइन्स इनसे लिंक्ड हैं…. क्या जरूरत थी…इससे मकदस तो साफ हो गया ना।

हम एडवांस में बना रहे हैं, उसकी तैयारी अभी से कर रहे  हैं, जब ये (माओवादी) एलिमिनेट हो जाएंगे, जब कोई विरोध भी नहीं करेगा तब यही फोर लेन तो काम आएंगी ना। देश की ट्राइबल एरिया की पॉलिसी आज तक समझ नहीं आई। इसमें ट्राइबल की भागीदारी कहां है। एक भी भागीदारी बता दीजिए, उलटा वे उजड़ रहे हैं, अपने गांव से, अपने परिवार से, अपने इलाके से। और सबसे बड़ी बात, यह मैं साऊथ बस्तर मे लोगों से कहने भी लगा हूं कि, देखो भाई, बैलाडीला रेंज के इस पार और उस पार बहुत से देवी देवता हैं, बहुत महत्वपूर्ण हैं, उनका क्या होगा? इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है। सरकार तो आदमी का मुआवजा दे देगी, फिर कहीं भी जाओ, देवी देवताओं का क्या होगा?

  • ओडिशा के नियमगिरी में इसी बात को लेकर आंदोलन चला था और उसी के कारण वहां माइनिंग रुकी थी.. क्या उसी तरह की बात कर रहे हैं?

उस मामले में उच्च स्तर पर राहुल (गांधी) जी को क्रेडिट जाता है। गांव वाले बेचारे क्या लड़ते, सुप्रीम कोर्ट तक। कांग्रेस पार्टी ने नियमगिरि पहाड़ की लड़ाई लड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने वेदांता के मामले में यही कहा कि एक अदालत और गांव में है और वह ग्राम सभा।

  • बस्तर में ग्राम सभा की क्या स्थिति है। क्या वहां जो फैसले हो रहे हैं, उन्हें ग्राम सभा की मंजूरी है?

मैं एक ही शब्द कह सकता हूं, जितने भी इंडस्ट्रियल लाइसेंस हैं, जहां जहां ग्राम सभा की जरूरत पड़ती थी, वहां ईमानदारी से एक भी ग्राम सभा नहीं हुई…नए राज्य के बनने के बाद से। या तो फर्जी ग्राम सभा हुई या सेटिंग से हुई, कुछ लोगों को बुलाकर… अंगूठा ही तो लगाना है ना… एक बोतल इंतजाम कर दो…। यह भी रिसर्च की बात है और जिस पेसा को हमने 1996 में संसद में कानून बनवाया, उसका बैकग्राउंड क्या था…।

उदारीकरण 1999 में आया, उस समय चंद्रशेखर कभी कभी संसद में उदारीकरण के खिलाफ बेबाक बोलते थे और कहते थे कि ये गांधी का देश है, वेस्ट की नकल नहीं करना। उदारीकरण भी वेस्ट की नकल है, और यह जो हो रहा है पूरे तौर तरीके यह भी वेस्ट की नकल है। यदि आपको आईएमएफ से लोन लेना है, तो आपको यह सब मानना पड़ेगा। उस समय के कई अच्छे नौकरशाह थे, शंकरन, बी डी शर्मा, भूपेंदर सिंह और सक्सेना, ये लोग आदिवासी इलाकों के बारे में प्रतिबद्ध थे। अब कितने अफसर होंगे मैं नहीं जानता। उन लोगों ने हमसे कहा था कि पेसा कानून आ रहा है उसमें कुछ इंतजाम कर लीजिए, नहीं तो दुर्दिन शुरू हो जाएंगे।

पेसा कानून बनवाने में काफी मशक्कत हुई, लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि पेसा कानून को आज तक कोई राज्य सरकार ईमानदारी से लागू नहीं की है। यह इस देश में विडंबना है। हमने यह कानून बनवाया, लेकिन किसी को रोका तो नहीं। बीच का एक रास्ता निकाला कि ग्राम सभा में पूछ लो।

अबूझमाड़ आर्मी को दिया जा रहा है

  • बस्तर के आज जो हालात हैं, उसमें आने वाले समय में जो दो-तीन महत्त्वपूर्ण चीजें की जानी चाहिए वह क्या हो सकती हैं, क्या रोडमैप हो सकता है?

आपने तो एक लाइन में कह दिया कि रोडमैप क्या होना चाहिए। यह एक बड़ा गंभीर विषय है। डेवलपमेंट का सरकार का जो नजरिया है, वह सरकारी होता है। ट्राइबल एरिया में जब तक समाज के लोगों को शामिल नहीं करेंगे, या उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करेंगे, तो नक्सलवाद फिर पैदा होगा। नक्सलवाद पैदा वहीं हुआ जहां अन्याय होता रहा, कि वेजेस (पारिश्रमिक) नहीं देते थे, पटवारी तंग करता था, फॉरेस्ट गार्ड तंग करता था, यही तो था।

आज भी आम लोगों की शिकायतें या तकलीफ हैं, वह सुनी नहीं जा रही हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि साऊथ बस्तर से सेंट्रल बस्तर तक 1933 में अंग्रेजों के समय जो सेटेलमेंट (निपटारा) हुआ था उसी का रिकॉर्ड अप टू डेट है। आजादी के बाद दो सेटलमेंट हुए उनका अता पता नहीं है। क्या आप सोच सकते हैं, जबकि रेवन्यू लॉ में यह बुनियादी बात है। अंग्रेज बेवकूफ नहीं थे। सात समंदर पार करके आए। हाथी-घोड़ा जिससे भी संभव हुआ बियाबन जंगल में जाकर सर्वे, सेटलमेंट सब किया।

आज हम सेटलमेंट नहीं कर सकते। रिकॉर्ड अप टु डेट नहीं है। गांव का जो किसान है, उसको तो पट्टा भर मिलना चाहिए, फिर वह निश्चिंत हो जाता है। उसी का ठिकाना नहीं है। अभी भी साऊथ बस्तर और सेंट्रल बस्तर के रेवन्यू रिकॉर्ड में अभी भी दादा के नाम हैं। दादा चले गए, पिताजी चले गए अब नाती-पोते खेती कर रहे हैं। मरने के बाद फौती (मृत्यू के बाद नामांतरण की कानूनी प्रक्रिया) चढ़ाया जाता है। रिकॉर्ड को इस तरह दुरुस्त रखना अनिवार्य है। अबूझमाड़ से अंग्रेजों ने 1928 मे अपना एडमिनिस्ट्रेशन हटाया था। वहां बियाबान जंगल था। कोई सर्वे नहीं कर सके तो छोड़ दिया उन्होंने। आजादी के बाद भी तो करना चाहिए था। 75 साल बाद भी वहां की जमीन का क्या होगा, यह सरकार ने तय नहीं किया है। अब चूंकि यह आर्मी को सौंपा जा रहा है, यह एक नया डेवलपमेंट है।

  • क्या अबूझमाड़ का इलाका आर्मी को दिया जा रहा है?

हां दे रहे हैं। तस्वीर ही बदल जाएगी। सारा कैंप वहां होगा। वहां के लोगों का क्या होगा यह मैं तो जानता नहीं। क्योंकि सरकार से जब तक कोई सूचना नहीं मिलेगी पता नहीं चलता कि क्या हो रहा है।

  • आर्मी को दिए जाने की बात कहीं आई है क्या?

हां…हां यह तो सिक्रेट चल रहा है, आप थोड़ा नारायणपुर का चक्कर लगाइए…। अबूझमाड़ को बड़े कैंप के अंडर में कर रहे हैं, हो सकता है। आने वाले 30-40 साल में क्या होगा , हम तो कल्पना नहीं कर सकते। आप जो प्रश्न उठा रहे हैं, उसके बारे में सोचना या अंदाज लगाना भी मुश्किल है।

TAGGED:Arvind Netam InterviewBastarLatest_News
Previous Article trump on canada कनाडा को ट्रंप का ऑफर ‘अमेरिका का 51वां राज्य बनें, मुफ्त मिलेगा गोल्डन डोम’, कनाडा ने दिया जवाब
Next Article Corona is back चंडीगढ़ में कोरोना से पहली मौत, यूपी का था मरीज  
Lens poster

Popular Posts

Indian Army Agniveer Answer Key 2025 : ऐसे करें डाउनलोड, जाने स्टेप्स

द लेंस डेस्क। भारतीय सेना जल्द ही अग्निवीर भर्ती 2025 की सामान्य प्रवेश परीक्षा (CEE)…

By पूनम ऋतु सेन

समय रैना समेत पांच कॉमेडियनों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली। (Court notice to comedian) दिव्यांग व्यक्तियों पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले…

By Lens News Network

छत्तीसगढ़ में 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सिरप देने पर बैन, मध्यप्रदेश में 16 बच्चों की मौत के बाद फैसला

रायपुर। दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सिरप नहीं देने की केंद्रीय स्वास्थ्य…

By Lens News

You Might Also Like

sextoshern
छत्तीसगढ़

दुर्ग में पति- पत्नी का भांडा फूटा, कारोबारी का अश्लील वीडियो बनाकर कर रहे थे ब्लैकमेल, वसूली के पैसे से लग्जरी लाइफ स्टाइल

By Lens News
CG GST Action
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में स्टेट GST की बड़ी कार्रवाई, 26 करोड़ टैक्स चोरी मामले में व्यापारी गिरफ्तार

By Lens News
Hightech Station
छत्तीसगढ़

कल पीएम मोदी करेंगे छत्तीसगढ़ के 5 रेलवे स्टेशनों का उद्घाटन, प्रदेश के 32 रेल्वे स्टेशन योजना में हैं शामिल

By Lens News
MOODIES RATINGS
अर्थ

मूडीज रिपोर्ट: ट्रम्प के टैरिफ का असर भारत में नहीं, पाकिस्तान पर पड़ेगी भारी मार

By Lens News

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?