बारूद और लाशों के बीच बस्तर से एक अच्छी खबर आई है। खबर है कि बस्तर में सुकमा जिले के जगरगुंडा में अब इलाके के लोगों को औपचारिक बैंकिंग सुविधाएं मिलेंगी। रविवार को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एक बैंक की शाखा का डिजिटल उद्घाटन किया।कभी उस इलाके में कलेक्टरी कर चुके राज्य के वित्त मंत्री ओपी चौधरी इस मौके पर जगरगुंडा में ही थे और उन्होंने उस बैंक में अपना खाता भी खुलवाया। देश के किसी और इलाके में बैठ कर इस खबर को पढ़ने वालों के लिए ये छोटी सी खबर है पर ये देश के उस इलाके की खबर है, जहां इस समय सुरक्षा बल और माओवादियों के बीच एक ऐसा युद्ध हो रहा है जिसके बारे में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यह इस इलाके से माओवादियों के सफाए के साथ ही थमेगा और यह भी कि माओवादियों का सफाया मार्च 2026 तक हो जाएगा। अमित शाह बंदूक का जवाब बंदूक से ही देने की राह पर हैं, लेकिन संविधान विरोधी हिंसा की राजनीति से मुकाबले का यह शॉर्टकट ही है। लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा का केंद्र बन गए बस्तर की जरूरतें वहां मौजूद खनिजों के विपुल भंडार सी बड़ी हैं। बस्तर को शांति चाहिए और शांति की राह बम, बारूद, खून और लाशों से भरी बहुत कठिन राह है। सरकार की बंदूकों को ऐसे मोर्चे पर तो होना ही पड़ेगा पर लोकतंत्र इस अग्निपरीक्षा में तभी सफल होगा जब बंदूकों के सीमित उपयोग के साथ ही वो माओवाद को अलग–थलग कर सके। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मोर्चे पर भी माओवाद से मुकाबले की जरूरत है। बस्तर के सारे आदिवासियों के लिए ना भी सही पर अब एक बड़े हिस्से को स्कूल, कॉलेज, अस्पताल के बाद बैंकिंग सुविधाएं भी चाहिए।खासतौर पर आज जब सरकारों से मिलने वाले कल्याणकारी लाभ बैंकों के जरिए पहुंच रहे हों। अब एक बैंक के पहुंचने का मतलब संसदीय लोकतंत्र के एक प्रतीक का ही पहुंचना है।बस्तर को बंदूकों से ज्यादा कदम–कदम पर ऐसे प्रतीक चाहिए। लोकतंत्र के खाते में तभी ठीक से दर्ज होगा शुभ–लाभ!
लोकतंत्र का शुभ–लाभ !

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अरुण पांडेय