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क्या आपका सनस्क्रीन आपके स्किन के लिए सुरक्षित है ?

क्या आपका सनस्क्रीन आपके स्किन के लिए सुरक्षित है ?

पूनम ऋतु सेन
Last updated: April 21, 2025 1:50 pm
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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sunscreen : indian skin tone uva uba rays
सनस्‍क्रीन क्रीम को लेकर हो रहे सवाल
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भारत के कॉस्मेटिक बाजार में एक नई जंग छिड़ गई है और इस बार मामला सनस्क्रीन की सुरक्षा का है। ममाअर्थ और लक्मे जैसे बड़े ब्रांड्स के बीच शुरू हुआ यह विवाद अब उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है – क्या आप जो सनस्क्रीन इस्तेमाल कर रहे हैं, वह वाकई आपकी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों से बचा रहा है? इस जंग ने भारत में सनस्क्रीन के लिए सख्त नियामक मानकों की कमी को सबके सामने ला दिया है। आइए इस मामले की पूरी कहानी जानते हैं।

क्या है पूरा मामला?
हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) जो लक्मे ब्रांड की मालिक कंपनी है, इस ब्रांड ने ममाअर्थ के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। HUL का आरोप है कि ममाअर्थ अपने सनस्क्रीन की SPF रेटिंग को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है जो गलत विज्ञापन की श्रेणी में आता है। SPF सन प्रोटेक्शन फैक्टर है जो सनस्क्रीन की UVB किरणों से सुरक्षा की क्षमता को मापता है। दूसरी तरफ ममाअर्थ ने भी पलटवार करते हुए लक्मे पर सवाल उठाए और कहा कि उनके सनस्क्रीन में जरूरी सुरक्षा की कमी है। दोनों ब्रांड्स ने सोशल मीडिया पर भी एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधा जिससे यह विवाद और गहरा गया।

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भारत में सनस्क्रीन मानकों की सच्चाई
यह विवाद सिर्फ दो ब्रांड्स की लड़ाई नहीं है बल्कि यह भारत में सनस्क्रीन की टेस्टिंग और नियामक ढांचे की कमजोरियों को उजागर करता है। भारत में सनस्क्रीन को कॉस्मेटिक्स की श्रेणी में रखा जाता है और इसे ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत रेगुलेट किया जाता है लेकिन यह कानून 80 साल पुराना है और आधुनिक टेस्टिंग जरूरतों को पूरा नहीं करता।

सनस्क्रीन में दो तरह की हानिकारक यूवी किरणों से सुरक्षा जरूरी होती है-
UVB किरणें: ये त्वचा को जलाती हैं और सनबर्न का कारण बनती हैं।
UVA किरणें: ये त्वचा में गहराई तक जाती हैं समय से पहले झुर्रियां लाती हैं और त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ाती हैं।

यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में सनस्क्रीन को दवा की तरह ट्रीट किया जाता है, जहां सख्त टेस्टिंग (जैसे इन विट्रो और इन विवो टेस्ट) जरूरी होता है लेकिन भारत में ऐसे मानक नहीं हैं। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) ने कुछ नियम बनाए हैं लेकिन वे न तो सख्त हैं और न ही व्यापक। नतीजा यह है कि कई ब्रांड्स बिना सही टेस्टिंग के बड़े-बड़े दावे कर देते हैं जैसे SPF 50+ या ब्रॉड स्पेक्ट्रम प्रोटेक्शन और उपभोक्ताओं को पता ही नहीं चलता कि प्रोडक्ट वाकई सुरक्षित है या नहीं।

क्यों है सनस्क्रीन भारत में इतना जरूरी?

भारत में तेज धूप और प्रदूषण की वजह से त्वचा को नुकसान का खतरा बहुत ज्यादा है। भारतीय त्वचा जो ज्यादातर टाइप IV और V होती है (यानी गहरे रंग की त्वचा ) इनमें मेलेनिन ज्यादा होता है जो कुछ हद तक प्राकृतिक सुरक्षा देता है। लेकिन यह सुरक्षा पर्याप्त नहीं है। तेज यूवी किरणें त्वचा कैंसर, सनबर्न और समय से पहले बूढ़ी दिखने वाली त्वचा का कारण बन सकती हैं। ऐसे में सनस्क्रीन जरूरी है लेकिन अगर सनस्क्रीन ही सही न हो तो यह सुरक्षा की जगह नुकसान पहुंचा सकता है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

त्वचा विशेषज्ञों का कहना है कि सनस्क्रीन में सही मात्रा में UVA और UVB दोनों से सुरक्षा होनी चाहिए। लेकिन भारत में टेस्टिंग की कमी की वजह से यह सुनिश्चित करना मुश्किल है। कई सनस्क्रीन में रसायन जैसे ऑक्सीबेंजोन और एवोबेंजोन होते हैं, जो ज्यादा मात्रा में त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को सनस्क्रीन के लिए सख्त टेस्टिंग प्रोटोकॉल बनाने चाहिए, जैसे:

लैब में सनस्क्रीन की यूवी अवशोषण क्षमता की जांच।
असल त्वचा पर टेस्ट करके इसकी प्रभावशीलता को मापना।
लेबलिंग में साफ-साफ लिखना कि प्रोडक्ट कितनी सुरक्षा देता है।

भारतीय ब्रांड्स के लिए एक मौका

यह विवाद भारतीय सौंदर्य ब्रांड्स के लिए एक सबक है। ममाअर्थ जैसे नए स्टार्टअप्स ने पिछले कुछ सालों में भारतीय बाजार में तेजी से जगह बनाई है लेकिन अब उन्हें ग्लोबल स्टैंडर्ड्स को अपनाना होगा। वहीं लक्मे जैसे बड़े ब्रांड्स को भी अपनी टेस्टिंग और पारदर्शिता में सुधार करना होगा। अगर भारतीय ब्रांड्स सख्त मानकों को अपनाते हैं तो वे न सिर्फ भारतीय उपभोक्ताओं का भरोसा जीत सकते हैं बल्कि ग्लोबल मार्केट में भी अपनी पहचान बना सकते हैं।

उपभोक्ताओं के लिए सलाह

जब तक भारत में सख्त नियम लागू नहीं होते तब तक उपभोक्ताओं को सावधानी बरतनी चाहिए। सनस्क्रीन खरीदते वक्त इन बातों का ध्यान रखें: प्रोडक्ट का लेबल ध्यान से पढ़ें और देखें कि क्या यह UVA और UVB दोनों से सुरक्षा देता है। ऐसे ब्रांड्स चुनें जो अपनी टेस्टिंग प्रक्रिया के बारे में पारदर्शी हों। ज्यादा SPF (जैसे SPF 70+) के दावों पर आंख बंद करके भरोसा न करें। SPF 30-50 भी काफी है अगर सही टेस्टिंग हुई हो।

आगे क्या?

यह विवाद भारत में सनस्क्रीन और कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा सबक है। सरकार को ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (DSCO) के जरिए सख्त मानक लागू करने चाहिए। साथ ही ब्रांड्स को रिसर्च और इनोवेशन में निवेश करना चाहिए ताकि वे उपभोक्ताओं को सुरक्षित और प्रभावी प्रोडक्ट्स दे सकें। यह जंग न सिर्फ सनस्क्रीन की गुणवत्ता पर सवाल उठाती है बल्कि यह भी बताती है कि भारत को अपने सौंदर्य उद्योग को ग्लोबल स्टैंडर्ड्स के साथ जोड़ने की जरूरत है।

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Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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