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आंकड़ा कहता है

19% महिलाएं केवल भारत में सी-सूट भूमिकाओं में, वैश्विक स्तर से काफी पीछे

पूनम ऋतु सेन
Last updated: April 16, 2025 3:27 am
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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द लेंस डेस्क। भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में लैंगिक समानता की स्थिति को लेकर हाल ही में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अवतार ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सी-सूट (C-suite) भूमिकाओं जैसे CEO, CFO, और COO में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 19 फीसदी है। यह आंकड़ा वैश्विक औसत 30% से काफी पीछे है और यह सवाल उठाता है कि क्या भारत की कॉर्पोरेट दुनिया सचमुच समावेशी बन पा रही है? इस आर्टिकल में रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं, प्रभावों, और नीतियों को समझतें हैं-

सी-सूट में महिलाओं की वैश्विक हालात क्या ?

अवतार ग्रुप, जो डाइवर्सिटी, इक्विटी, और इनक्लूजन (DEI) पर केंद्रित एक प्रमुख कंसल्टिंग फर्म है, उसके अनुसार भारत में शीर्ष कॉर्पोरेट पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कमजोर है। वैश्विक स्तर पर जहाँ सी-सूट में महिलाओं की हिस्सेदारी 30% है, वहीं भारत में यह केवल 19% तक सीमित है। यह अंतर न केवल लैंगिक असमानता को उजागर करता है, बल्कि भारत की कॉर्पोरेट संस्कृति में गहरे बैठे मुद्दों की ओर भी इशारा करता है।

लिंक्डइन और द क्वांटम हब की 2024 रिपोर्ट से तुलना करें तो वरिष्ठ नेतृत्व में महिलाओं की हिस्सेदारी 18% थी, जो 2022 के 19% से थोड़ा कम है। वहीं, ग्रांट थॉर्नटन, 2023 के अनुसार मिड-मार्केट व्यवसायों में यह आंकड़ा 36% तक पहुंच गया, जो दर्शाता है कि छोटे संगठनों में प्रगति बेहतर है।

कॉर्पोरेट में महिलाओं के लिए क्या हैं चुनौतियाँ?

अवतार की रिपोर्ट ने कई मूलभूत समस्याओं को उजागर किया जो महिलाओं को सी-सूट तक पहुंचने से रोक रही हैं। ये चुनौतियाँ न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि संगठनात्मक और सामाजिक स्तर पर भी मौजूद हैं। रिपोर्ट में 60% उत्तरदाताओं ने वर्क-लाइफ इंटीग्रेशन को सबसे बड़ी बाधा बताया, 44% ने लैंगिक भेदभाव को, और 41% ने योग्य उम्मीदवारों की कमी को जिम्मेदार ठहराया।

1 . वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी
60% लोगों का मानना है कि कार्य और जीवन के बीच संतुलन न होना महिलाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा है। मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत 26 सप्ताह का अवकाश मिलता है, लेकिन पितृत्व अवकाश की कमी से घरेलू जिम्मेदारियां आसान रहती हैं।

2 . लैंगिक भेदभाव
44% ने कहा कि भर्ती और पदोन्नति में भेदभाव अब भी जारी है। यह “ग्लास सीलिंग” प्रभाव को दर्शाता है, जो महिलाओं को शीर्ष तक पहुंचने से रोकता है।

3. योग्यता की कमी
41% कंपनियों का मानना है कि नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिए योग्य महिलाएं उपलब्ध नहीं हैं। यह शिक्षा और प्रशिक्षण में लैंगिक अंतर को दर्शाता है।

4 महामारी का प्रभाव
2019 में जहाँ वरिष्ठ नेतृत्व में महिलाओं की छंटनी दर 4% थी, वहीं 2020 में यह 10% तक पहुंच गई। 2024 में यह 8% तक कम हुई, लेकिन अभी भी सामान्य से अधिक है।

डाइवर्सिटी, इक्विटी, और इनक्लूजन (DEI) नीतियाँ भारत में कॉर्पोरेट क्षेत्र में बदलाव ला रही हैं, लेकिन प्रभाव अभी तक सीमित है। कंपनी अधिनियम, 2013 के बाद बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी 5.8% से बढ़कर 17.1% हुई। DEI अपनाने वाली कंपनियों में सी-सूट में यह 22-25% तक है।

समाधान, सिफारिशें और सम्भावनायें
भारत में लैंगिक समानता को बढ़ाने के लिए कुछ प्रयास किये जा सकतें हैं –

1 अवतार की संस्थापक डॉ. सौंदर्या राजेश ने “टारगेटेड डाइवर्सिटी-ड्रिवेन एग्जीक्यूटिव सर्च” की वकालत की। यह योग्य महिलाओं को शीर्ष तक पहुंचा सकता है।
2 हाइब्रिड वर्क और समान माता-पिता अवकाश (जैसे स्वीडन का 480 दिन का मॉडल) लागू करना।
3 अवतार का “डिजिपिवट” प्रोग्राम जैसे प्रयास नेतृत्व के लिए महिलाओं को तैयार कर सकते हैं।
4 नॉर्वे (40% बोर्ड कोटा, 35% सी-सूट) और कनाडा (“Comply or Explain”) से प्रेरणा लेकर नीतियाँ सख्त करना।
5 DEI लक्ष्य पूरा करने वाली कंपनियों को टैक्स छूट देना।

DEI नीतियों ने भारत में प्रगति की नींव रखी है, लेकिन सी-सूट में 19% से आगे बढ़ने के लिए सख्त और व्यापक कदम उठाने होंगे। अगले 3-5 वर्षों में यदि सुझाई गई नीतियाँ लागू हों, तो 25-30% तक पहुंच संभव है। विश्व बैंक के अनुसार, लैंगिक समानता से भारत की GDP में 5.8 ट्रिलियन USD की वृद्धि हो सकती है। यह न केवल कॉर्पोरेट, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव की भी पहल है।

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Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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