- क्या उत्तर भारत में ‘उत्तर भारत तमिल प्रचार सभा’ या ‘द्रविड़ भाषा सभा’ जैसी कोई संस्था बनाई गई
चेन्नई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने के आरोपों के बीच फिर बड़ा हमला बोला है। स्टालिन ने सवाल उठाया कि क्या उत्तर भारत में ‘उत्तर भारत तमिल प्रचार सभा’ या ‘द्रविड़ भाषा सभा’ जैसी कोई संस्था बनाई गई है, जो वहां के लोगों को दक्षिण भारतीय भाषाएं सीखने में मदद करे?
‘हिंदी थोपे जाने का विरोध’ विषय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित अपने पत्र में स्टालिन ने कहा कि आधुनिक तकनीकों जैसे ‘गूगल ट्रांसलेट’, ‘चैटजीपीटी’ और कृत्रिम मेधा (एआई) के जरिए भाषा संबंधी बाधाओं को दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि छात्रों को केवल आवश्यक तकनीक सीखनी चाहिए, जबकि किसी भाषा को जबरन थोपना उनके लिए अनावश्यक बोझ बन जाएगा।
उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का जिक्र करते हुए कहा कि गांधी जी ने दक्षिण भारतीयों को हिंदी और उत्तर भारतीयों को किसी दक्षिण भारतीय भाषा को सीखने की सलाह दी थी, जिससे राष्ट्रीय एकता मजबूत हो। इसी उद्देश्य से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हुई थी, जिसमें गांधीजी स्वयं चेन्नई स्थित मुख्यालय में भाग लेते थे।
स्टालिन ने भाजपा पर आरोप लगाया कि गंगा नदी के तट पर संत कवि तिरुवल्लुवर की प्रतिमा स्थापित करने का दावा करने वालों ने ही उसे कूड़े के ढेर में फेंक दिया। उन्होंने कहा, “जो लोग गोडसे के मार्ग पर चलते हैं, वे गांधीजी के उद्देश्यों को कभी पूरा नहीं कर सकते।”
गांधी जी ने की थी दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा एक प्रमुख हिंदी सेवी संस्था है जो भारत के दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में भारत के स्वतंत्रत होने के काफी पहले से हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है। इसकी स्थापना 1918 में महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए की थी। 1964 में इसे संसद द्वारा राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया गया था। सभा को विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रमों की शिक्षा देने और उपाधियां देने का अधिकार प्राप्त है। सभा का केंद्रीय कार्यालय चेन्नई में है।