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Home » पहले से संपन्‍न लोगों की भर रही तिजोरी, नहीं बन रहे हैं नए अमीर

देश

पहले से संपन्‍न लोगों की भर रही तिजोरी, नहीं बन रहे हैं नए अमीर

Arun Pandey
Last updated: March 6, 2025 3:32 pm
Arun Pandey
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  • ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 10 फीसदी आबादी ही सशक्‍त उपभोक्‍ता और आर्थिक विकास का सहारा

नई दिल्‍ली। अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने लिखा है कि गरीब होने का मतलब किसी काल्पनिक गरीबी रेखा से नीचे रहना नहीं है, जैसे कि दो डॉलर प्रतिदिन या उससे कम की आय। इसका मतलब आय का वह स्‍तर है जो किसी व्यक्ति को उसकी जरूरतों को पूरा करने की अनुमति नहीं देता है।

हाल ही में आई वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स की “इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट-2025” भारत में इसी तरह की तस्‍वीर पेश रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की एक अरब 40 करोड़ की आबादी में से एक अरब लोगों के पास बुनियादी जरूरतों पर खर्च करने को पैसे नहीं हैं। जिसका मतलब यह है कि सिर्फ 10 फीसदी आबादी ही सशक्‍त उपभोक्‍ता और आर्थिक विकास का सहारा है।

ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट बताती है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल भारत में नए अमीरों की संख्‍या नहीं बढ़ रही है, जो पहले से ही संपन्न हैं वो और अमीर हो रहे हैं। इससे खरीदी की क्षमता तो बढ़ रही है, लेकिन खरीदारों की संख्‍या में इजाफा नहीं हो रहा है।

केंद्र सरकार के आंकड़े भी बताते हैं कि मौजूदा समय में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की जरूरत पड़ रही है। यह योजना अब 2028 तक चलेगी। मुफ्त राशन भी अप्रतक्ष्‍य रूप से एक तरह की आर्थिक मदद ही है, क्‍योंकि इसका लाभ लेने वालों को इस पर खर्च नहीं करना पड़ रहा है।

क्‍यों घटी खर्च करने की क्षमता
ब्लूम वेंचर्स रिपोर्ट तैयार करने वालों में से एक सजित पाई ने मीडिया को बताया कि हाल के दिनों में उपभोग में आई मंदी केवल खरीदी क्षमता घटने की वजह से नहीं आई है। आमजन की आर्थिक बचत में कमी और कर्ज में बढ़ोत्‍तरी भी इसका कारण है। पाई ने बताया कि बैंकों ने भी आसान और असुरक्षित कर्ज पर नकेल कसी है। भारत के इमर्जिंग या आकांक्षी वर्ग का अधिकांश उपभोग खर्च इसी तरह के कर्ज से हो रहा था, इसे बंद करने का कुछ असर निश्चित रूप से उपभोग पर पड़ेगा।

बढ़ रहा है प्रीमियमाइजेशन का ट्रेंड
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के उपभोक्ता बाजार को “प्रीमियमाइजेशन” ने नई दिशा दी है। जहां ब्रांड्स अब बड़े पैमाने पर उत्पादों के बजाय प्रीमियमाइजेशन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। रियल स्‍टेट सेक्‍टर में देश में सस्‍ती दरों पर मिलने वाले घरों की हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 18 फीसदी रह गई है, जबकि पांच साल पहले यह 40 फीसदी थी। इसके अलावा, “एक्सपीरियंस इकॉनमी” में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जिसका प्रमाण कोल्डप्ले और एड शीरन के हाउसफुल कॉन्सर्ट्स के रूप में दिया गया है।

TAGGED:indian middle classIndus Valley Annual Report 2025macro-economic
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