न्यूज पोर्टल स्क्रॉल ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि किस तरह टाटा समूह को दो सेमीकंडक्टर इकाई की स्थापना के लिए दी गई सब्सिडी के बदले में इस औद्योगिक समूह ने भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अच्छा खासा चंदा दिया था! यह साफ साफ एक हाथ दे दूसरे हाथ ले का मामला लगता है। इस खुलासे ने चुनावी चंदों पर छाई धुंध को और गहरा कर दिया है।
स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव से महज दो-ढाई महीने पहले 29 फरवरी, 2024 को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने तीन सेमीकंडक्टर इकाइयों को मंजूरी दी थी, जिनमें से दो इकाइयां टाटा समूह की थी। सरकार ने इन कंपनियों की स्थापना का आधा खर्च सब्सिडी के तौर पर वहन करने का फैसला किया।
इसके मुताबिक टाटा की दो इकाइयों को 44,203 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी गई। इसके एक महीने बाद ही उसी साल अप्रैल में टाटा समूह ने भाजपा को 753 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा दिया।
देश के सबसे पुराने औद्योगिक समूह की साख को दांव पर लगा देने वाले इस कदम पर हैरत नहीं होनी चाहिए। दरअसल मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा लगातार आर्थिक रूप से मजबूत होती गई है और उसमें उसे मिलने वाले चंदे का बड़ा योगदान है।
बेशक, सत्तारूढ़ दल के प्रति औद्योगिक घरानों और दानदाताओं की मेहरबानी कुछ ज्यादा होती है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को मिलने वाला चंदा असाधारण है।
राजनीतिक दलों की आर्थिक स्थिति और चंदे का आकलन करने वाले एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 में भाजपा को कुल 2243.947 करोड़ रुपये का चंदा मिला। हैरत नहीं होनी चाहिए कि यह कांग्रेस सहित चार अन्य राष्ट्रीय पार्टियों को मिलने कुल चंदे का छह गुना है।
उल्लेखनीय यह भी है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 240 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 99 सीटें। सीटों के अनुपात में भी देखें तो दोनों पार्टियों को मिलने वाले चुनावी चंदे में कोई मेल नहीं है।
विवादास्पद चुनावी बांड को लेकर देखा ही जा चुका है कि किस तरह से भाजपा को इसके जरिये आर्थिक लाभ पहुंचाए गए थे।
दरअसल असमान चुनावी चंदे ने भाजपा के बरक्स दूसरे राजनीतिक दलों की आर्थिक स्थिति में असामान्य अंतर ला दिया है। यह बहुदलीय लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है।
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