रायपुर। हिंदी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को आज हिंदी का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार, उनके रायपुर स्थित निवास पर दिया गया। ज्ञानपीठ के महाप्रबंधक आरएन तिवारी ने सम्मान के साथ उन्हें वाग्देवी की प्रतिमा और पुरस्कार का चेक उन्हें प्रदान किया गया।
विनोद कुमार शुक्ल ने अपने पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा- “जब हिन्दी भाषा सहित तमाम भाषाओं पर संकट की बात कही जा रही है। मुझे पूरी उम्मीद है नई पीढ़ी हर भाषा का सम्मान करेगी। हर विचारधारा का सम्मान करेगी। किसी भाषा या अच्छे विचार का नष्ट होना, मनुष्यता का नष्ट होना है।
वे पिछले कई सालों से बच्चों और किशोरों के लिए भी लिख रहे हैं। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि “मुझे बच्चों, किशोरों और युवाओं से बहुत उम्मीदें हैं। मैं हमेशा कहता रहा हूं कि हर मनुष्य को अपने जीवन में एक किताब जरूर लिखनी चाहिए। अच्छी किताबें हमेशा साथ होनी चाहिए। अच्छी किताब को समझने के लिए हमेशा जूझना पड़ता है. किसी भी क्षेत्र में शास्त्रीयता को पाना है तो उस क्षेत्र के सबसे अच्छे साहित्य के पास जाना चाहिये।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 1 जनवरी 1937 को हुआ था। अपनी युवा अवस्था में ही वह राजनांदगांव के दिग्विजय महाविद्यालय में प्राध्यापक रहे जाने माने कवि गजानन माधव मुक्तिबोध के संपर्क में आ गए थे। मुक्तिबोध ने ही उनकी कविताओं को सबसे पहले पहचाना था।

