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लेंस संपादकीय

272 लोगों की चिट्ठी: तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर?

Editorial Board
Editorial Board
Published: November 20, 2025 9:23 PM
Last updated: November 21, 2025 3:09 PM
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Letter against Rahul Gandhi
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खुद को वरिष्ठ नागरिक के रूप में पेश करते हुए 272 पूर्व जज, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी और राजनयिकों ने खुली चिट्ठी लिख कर आम तौर पर विपक्ष और विशेष रूप से लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर तेज हमला करते हुए आरोप लगाया है कि ये लोग देश के लोकतंत्र पर हमला कर रहे हैं।

दरअसल वे इस बात से बात से खफा हैं कि राहुल गांधी लगातार देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर हमले कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोटों की चोरी कर रही है। इन वरिष्ठ नागरिकों का आरोप है कि विपक्ष के नेता ईमानदार नीतिगत विकल्प प्रस्तुत करने के बजाए राजनीतिक रणनीति के तहत भड़काऊ तरीके से चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर आरोप लगा रहे हैं।

कई दशकों तक सेवाओं में रहने के बाद इन वरिष्ठ नागरिकों को भारत के लोकतंत्र की रक्षा का खयाल आया है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन बात दरअसल इतनी सीधी है नहीं। हम तो इस सूची में शामिल उन पूर्व अधिकारियों के कार्यकाल पर टिप्पणी भी नहीं कर रहे हैं, जिनके दामन दागदार हैं।

असल में सवाल यह है कि अचानक इन अधिकारियों को ऐसी चिट्टी जारी करने की जरूरत क्यों पड़ गई और वह भी तब जब बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं, और जहां चुनाव आयोग की पक्षपाती भूमिका को लेकर सवाल अब भी कायम हैं।

सबसे पहली बात तो यह कि एक दशक से भी लंबे समय कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल केंद्र की सत्ता में भी नहीं हैं। बिहार में तो कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पहली जवाबदेही तो चुनी हुई सरकार की बनती है और उसी से सवाल किए जाते हैं। इन महानुभावों ने सरकार से सवाल पूछना छोड़कर लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में संवैधानिक पद पर बैठे राहुल गांधी से सवाल पूछा है। इसका जो जवाब राहुल और कांग्रेस पार्टी को देना है, वे दें, यह हमारा काम नहीं है।

हमारी चिंता देश में लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण से जुड़ी हुई है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से ही राहुल गांधी और महाअघाड़ी ते नेताओं ने लोकसभा के बाद वहां अचानक बढ़ गए मतदाताओं का मुद्दा उठाया था। यही नहीं, कर्नाटक के एक क्षेत्र के शोध के आधार पर राहुल गांधी ने सप्रमाण देश के सामने रखा था कि किस तरह से वहां संदिग्ध मतदाता पाए गए थे। ऐन बिहार चुनाव के बीच में उन्होंने हरियाणा में मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर दस्तावेज सामने रखे थे।

यह लोकतंत्र का तकाजा है कि यदि निर्वाचन प्रक्रिया और मतदाता सूची को लेकर कोई संदेह है, तो उसकी निष्पक्ष जांच पर क्या एतराज?

दिलचस्प यह है कि चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोप का बचाव करने में भाजपा आगे रहती है और अब ये 272 वरिष्ठ नागरिक सामने आए हैं। याद दिलाने की जरूरत नहीं कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और मतदाता सूची में गड़बड़ी को लेकर उठे सवालों पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने भी माना है कि चुनाव आयोग के काम में पारदर्शिता होनी चाहिए।

चुनाव आयोग इन आरोपों पर जिस तरह की पर्दादारी कर रहा है, उससे तो संदेह गहरा होता है। फिर यह भी देखा जा सकता है कि बिहार में ऐन चुनाव के समय जब नीतीश सरकार ने जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर किए तब इन वरिष्ठ नागरिकों को कोई एतराज नहीं हुआ?

अचरज की बात यह भी है कि इस सूची में शामिल पूर्व जजों को तब दर्द नहीं हुआ, जब देश के दलित मुख्य न्यायाधीश पर भरी अदालत में जूते फेकने की कोशिश की गई थी!

इन वरिष्ठ नागरिकों की यह चिट्ठी लोकतंत्र की जायज चिंता के बजाय राजनीतिक बयान की तरह लगती है, जिसमें उन्होंने विपक्ष के साथ ही लेफ्टिस्ट एनजीओ, बुद्धिजीवियों पर भी सवाल उठाए गए हैं। हिंदी के मशहूर कवि की कविता की तर्ज पर उनसे पूछा जा सकता है, पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

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