The Lens Exclusive : आज हम आपको एक ऐसी रिपोर्ट दिखाने जा रहें हैं जिसे सुनकर देखकर न केवल आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे बल्कि आप हैरान रह जाएंगे कि गरीब मासूम बच्चों के साथ जानलेवा निर्ममता के आगे भी एक सिस्टम इतना लाचार और घुटने टेका हुआ नज़र आता है।
“गुड़िया बाहर आओ… डरना नहीं… बाहर आओ”
ये आवाजें सुनकर और वीडियो देखकर किसी का भी दिल दहल जाए। छत्तीसगढ़ की राजधानी से महज 40 किमी दूर खरोरा इंडस्ट्रियल एरिया की मोजो मशरूम प्रोसेसिंग यूनिट एक बार फिर सुर्खियों में है लेकिन इस बार शर्मनाक वजह से। सोमवार को NHRC के सदस्य प्रियंक कानूनगो के निर्देश पर पुलिस, महिला-बाल विकास विभाग और NGO की संयुक्त टीम ने छापा मारा तो अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला था। 109 बच्चे (68 लड़कियाँ, 41 लड़के), उम्र 11 से 17 साल।
बाहर से साफ-सुथरी दिखने वाली इस फैक्ट्री के अंदर का सच भयावह था। सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक 15-16 घंटे लगातार काम। न खाने का ठीक समय, न सोने की जगह। दो छोटे-छोटे कमरों में 50-60 बच्चे एक साथ ठूँस दिए जाते थे, जहाँ हवा भी नहीं जाती थी। गर्मी में पसीना, ठंड में ठिठुरन और हर वक्त फॉर्मलिन (फॉर्मेल्डिहाइड) की जहरीली भाप।
जिनके हाथों में किताबें और कॉपी होनी चाहिए थीं वो हाथ फॉर्मलिन से छिल गए थे, जिन आँखों में रंग-बिरंगे सपने होने चाहिए थे, वो आँखें रसायन की जलन से सूजकर लाल हो चुकी थीं,जिन पैरों को पार्क में दौड़ना चाहिए था खेल कूद करते हुए ज़िन्दगी जीनी थी वो पैर बिना सेफ्टी बेल्ट के तीन-तीन मंज़िला लोहे की जालियों पर चढ़ रहे थे और जो मुस्कान इनके चेहरे की चमक बननी चाहिए थी, वो मुस्कान कब की मर चुकी थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे ग्रुप-1 कार्सिनोजन मानता है यानी सीधे कैंसर पैदा करने वाला केमिकल। डॉक्टर भी बिना ग्लव्स-मास्क के हाथ नहीं लगाते, लेकिन यहाँ 11-12 साल की बच्चियाँ नंगे हाथों से मशरूम पैकेट्स में फॉर्मलिन मिली मिट्टी भर रही थीं। सिर दर्द, उल्टी, खाँसी होती तो कहा जाता “रोएगा तो और मारेंगे, चिल्लाएगा तो और काम।” लड़कियों के साथ छेड़छाड़, मारपीट और गाली-गलौच रोज की बात थी।
फैक्ट्री के अंदर की ये आवाजें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि इन बच्चों को महीनों से किसी ने इन्हें ‘बेटा-बेटी’ कहकर नहीं पुकारा था। इन्हें सिर्फ़ गालियाँ मिलती थीं मारपीट किया जाता था और काम, बेमौत काम.. सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक… 15-16 घंटे तक काम,,, न खाने का टाइम… न सोने का टाइम,, न बाहर निकलने की इजाज़त,,, फैक्ट्री के अंदर ही बने दो छोटे-छोटे कमरे… जिनमें हवा तक नहीं जाती थी… वहाँ 50-60 बच्चे एक साथ ठूँसे जाते थे,,, गर्मी में पसीना… ठंड में ठिठुरन… और हर वक़्त फॉर्मलिन की भाप,,, न सोने की जगह न बाथरूम के लिए सुविधा,, गुटखा थूके कमरों में जैसे किसी ने अपराध कर दिया हो वैसे कैद में रखा गया हो। कहा जाता था, ‘रोएगा तो मारेंगे… चिल्लाएगा तो और काम करवाएँगे’।

ये कोई एक-दो दिन की बात नहीं, कुछ बच्चे तो 6 साल से यहाँ कैद थे। 2019 में जब ये 11 साल के थे तब इन्हें असम, झारखंड, ओडिशा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के गाँवों से लुभावना झाँसा देकर लाया गया था, एजेंट ने माँ-बाप को कहा था। “शहर में पढ़ाएँगे,,अच्छा खाना,, 5-6 हज़ार सैलरी देंगे और फिर बच्चे ग़ायब, फिर शुरू हुई नरक जैसी ज़िन्दगी।

सबसे शर्मनाक सच ये कि ये कोई पहली बार नहीं हुआ। इसी साल जुलाई 2025 में भी यही मोजो मशरूम फैक्ट्री पकड़ी गई थी। तब 97 बच्चे बचाए गए थे। द लेंस ने लगातार खबरें दिखाई थीं। मामूली धाराओं में FIR हुई, मीडिया में हंगामा हुआ, फिर सब शांत। वजह? फैक्ट्री मालिक अनिल तिवारी और मोनिका खेतान रसूखदार हैं। सत्ताधारी दल से नजदीकी, रायपुर के एक आला अफसर का संरक्षण और पैसों का खेल। केस ठंडे बस्ते में चला गया, फैक्ट्री फिर शुरू हो गई और बच्चों को दोबारा फंसाया गया। कई बच्चे तो वही थे जो जुलाई में छुड़ाए गए थे। असम, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल से ठेकेदारों ने माँ-बाप को “पढ़ाई-नौकरी” का लालच देकर बच्चों को बेच दिया।

जब मामला फिर NHRC सदस्य प्रियंक कानूनगो तक पहुँचा तो उन्होंने तुरंत संज्ञान लिया। AVA और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की शिकायत पर रायपुर SSP को निर्देश दिए गए। डीएसपी नंदिनी ठाकुर के नेतृत्व में छापा पड़ा। सभी बच्चों को बाल सम्प्रेषण गृह भेजकर काउंसलिंग शुरू कराई जा रही है। बचपन बचाओ आंदोलन के सीनियर डायरेक्टर मनीष शर्मा ने द लेंस को बताया – “ये सिर्फ बाल मजदूरी नहीं, संगठित ह्यूमन ट्रैफिकिंग है।” NHRC ने दोनों यूनिट्स को तुरंत सील करने के आदेश दे दिए हैं।
यह मामला बताता है कि सिर्फ छापा मारना या बच्चों को छुड़ाना काफी नहीं,,, जब तक रसूखदार अपराधियों के खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती तब तक न तो इन मासूम बच्चों को न्याय मिलेगा ना ही ऐसे सफेदपोश लोगों के हौसले पस्त होंगे। इस मामले पर हमने रायपुर डीएम गौरव कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने द लेंस से कहा ” यह कार्रवाई जिले की टीम ने नहीं की है, इस कार्रवाई के लिए ऊपर से टीम आई थी और मैं इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता जो लोग ऊपर से आए थे वहीं से प्रेस नोट या जानकारी आएगी मुझे ना संचालकों के बारे में जानकारी है ना ही कार्रवाई की है”

सवाल उठता है कि ज़िले के भीतर प्रशासन के नाक के नीचे मासूम बच्चों को ऐसे जानलेवा खौफनाक काम में लगाया गया था तो क्या कोई कानून कोई तंत्र जो इसे रोकता और ऐसी क्रूरताओं पर अंकुश लगाता,,, यह अपने आप में रायपुर का प्रशासन ही नहीं छत्तीसगढ़ की सरकार पर भी बड़ा सवाल है कि ऐसी कार्रवाई करने के लिए दिल्ली से पहल हुई।
इस मामले पर हमने डीएसपी नंदिनी ठाकुर से भी बात की द लेंस को उन्होंने बताया की कार्रवाई अभी किन धाराओं के तहत की जाएगी यह आगे वेरीफिकेशन और काउंसलिंग के बाद पता चल पाएगा और अभी बच्चों का आधार वेरिफिकेशन भी किया जा रहा है उनके पैरेंट्स से भी संपर्क किया गया है और उन्हें बुलाया जा रहा है जिसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
क्या ये बात आपको हैरान नहीं करती कि पहली नज़र में जो सूचना किसी का दिल दहला दे उसपर कानूनी कार्रवाई के लिए एक ऐसी प्रक्रिया चलेगी जिसमें काउंसलिंग है. वेरिफिकेशन है, आधार वेरिफिकेशन किया जाएगा उसके बाद कहीं जाकर अफसरों को स्पष्ट होगा की अपराध क्या था कि दरअसल नाबालिग बच्चों को इस खौफनाक जानलेवा काम में लगाने वाले लोग कौन हैं और इसपर कार्रवाई की क्या की जाए, क्या आपको लगता है कि आप ऐसे सभ्य समाज में जी रहें हैं जहां संविधान और कानून का राज हो, क्या आपको नहीं लगता है की एक बार फिर तंत्र इन रसूखदारों को कोशिशें में जुटा है।

फिलहाल काउंसिलिंग के दौरान ये पता चला है कि रेस्क्यू किए गए बच्चों में कुछ वही हैं, जिन्हें जुलाई में भी बचाया गया था। ठेकेदारों ने उन्हें फिर से काम दिलाने के नाम पर यहां लाकर फंसा दिया। अधिकतर बच्चे असम, झारखंड, ओडिशा, यूपी, एमपी और पश्चिम बंगाल से हैं। हर राज्य में अलग-अलग ठेकेदार मजदूरों की सप्लाई कर रहे थे।
कहा जा रहा है कि एक फैक्ट्री का तार जिन रसूखदारों से जुड़ा हुआ है उन्हें प्रशासन और सरकार में पकड़ रखने वाले सत्ताधारियों का सरक्षण है,,, इसी वजह से पहले की जाँच दबा दी गई थी,,, मीडिया में लगातार खबरें आने के बाद NHRC ने खुद मामले को गंभीरता से लिया और तीन महीने की जाँच के बाद सोमवार को दोबारा छापा मारा,,, फिलहाल NHRC ने दोनों फैक्ट्रियों को तुरंत बंद करने के आदेश दे दिए हैं,,, जाँच पूरी होने तक यहाँ ताला लगा रहेगा।
अब सुनिए कानून क्या कहता है? 14 साल से कम उम्र के बच्चे से कोई भी काम करवाना पूरी तरह गैर-कानूनी है। 14 से 18 साल के किशोरों को भी खतरनाक काम (जैसे रसायन, भट्ठे, फैक्ट्री की भारी मशीनें) नहीं करवाया जा सकता। बाल मजदूरी करवाने पर मालिक को 2 साल तक की जेल या 50 हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अभी तक अफसरों ने इनकी समुचित स्वास्थ्य जांच कराई है, इन पंक्तियों को लिखे जाने तक द लेंस को जो जानकारी मिली है वो संवेदहीन प्रशासनिक और सरकारी तंत्र की निशानी है और वो जानकारी ये है की इन्हें रेस्क्यू किये जाने 48 घंटों के बाद तक इनकी स्वास्थ्य जांच नहीं की गयी थी,,
क्या आपको नहीं लगता कि इन बच्चों के अपराधी क्या सिर्फ मोनिका खेतान या कोई अनिल तिवारी नहीं है बल्कि वो पूरा सिस्टम है जिसमें इन तिवारियों और खेतानों को बचाने वाले अफसर शामिल हैं , नेता शामिल हैं, आंखमूंदा प्रशासन शामिल हैं आंखमूंदि सत्ता भी शामिल है और सिर्फ ये लोग ही क्यों वो विपक्ष भी वो तमाम राजनीतिक, गैर राजनीतिक संगठन, वो मीडिया जिन्हें ऐसे मामलों में मुखर हस्तक्षेप करना चाहिए था उनकी नाम=कामी भी तो इस अत्याचार के लिए ज़िम्मेदार है।

ये सिर्फ़ मोजो मशरूम की कहानी नहीं है ये सिर्फ़ 109 बच्चों की कहानी नहीं है ये उन हज़ारों बच्चों की चीख़ है। जो अभी भी किसी फैक्ट्री, किसी भट्ठे, किसी खतरनाक जगह में कैद हैं,और जानलेवा काम कर रहें हैं। द लेंस इस स्टोरी के ज़रिये इस वीडियो के ज़रिये अपने दर्शकों से अपील करता है कि अगर आपको कहीं भी बाल मज़दूरी या ट्रैफिकिंग दिखे तो चाइल्डलाइन हेल्पलाइन 1098 पर तुरंत कॉल करें क्योंकि कोई भी बच्चा अकेला नहीं है।

