नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने लोकपाल द्वारा सीबीआई को उनके विरुद्ध आरोप पत्र दायर करने की अनुमति प्रदान करने वाले फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है जो पैसे से जुड़े विवाद में पूछताछ से संबंधित है।
इस याचिका पर मंगलवार को न्यायमूर्ति अनिल कोहली और न्यायमूर्ति हरिश वैद्यनाथन शंकर वाली डिवीजन बेंच ने सुनवाई की। उन्होंने 12 नवंबर के उस आदेश पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि यह फैसला गलत है अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करता और न्याय के मूल सिद्धांतों की अनदेखी करता है।
उनका तर्क है कि भले ही उनसे बहस और प्रमाण मांगे गए थे लेकिन अधिनियम की धारा 20(7)(ए) के अनुसार अनुमति देने से पूर्व उनकी बातों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। याचिका में उल्लेख है कि यह अनुमति लोकपाल के कार्य को महज जांच विवरण की औपचारिक स्वीकृति तक समेट देती है जबकि मोइत्रा के पक्ष को बिना सुने ही अभियोजन की छूट दे दी गई।
लोकपाल न केवल इस चरण में समापन रिपोर्ट पर विचार करने का हक रखता है बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी है कि वे आरपीएस के बचाव को निष्पक्षता से परखें ताकि तय हो सके कि अभियोग पत्र जरूरी है या मामला बंद करना उचित।
याचिका में कहा गया है कि लोकपाल ने मोइत्रा के पक्ष और दलीलों को नजरअंदाज कर समापन का रास्ता रोका और पहले से तय रवैये से अनुमति प्रदान की। इसी कड़ी में मोइत्रा ने इस आदेश पर तत्काल रोक की अपील की है साथ ही सीबीआई को उस स्वीकृति के आधार पर अभियोग पत्र सहित किसी भी कदम से रोके जाने की मांग भी।
उन पर उद्योगपति व मित्र दर्शन हीरानंदानी के पक्ष में सवाल उठाने के एवज में नकदी लेने का इल्जाम है। इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में उन्होंने हीरानंदानी को संसदीय लॉगिन व पासवर्ड साझा करने की बात मानी लेकिन नकदी लेने के दावे को सिरे से नकारा।
यह विवाद तब भड़का जब दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि मोइत्रा ने संसद में सवालों के लिए कथित रूप से रकम ली। दुबे का कहना था कि ये इल्जाम देहाद्राय के उन्हें लिखे पत्र से उपजे। बाद में मोइत्रा ने दुबे देहाद्राय और मीडिया संस्थानों को कानूनी नोटिस भेजी जिसमें अपने विरुद्ध दावों को खारिज किया।

