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लेंस रिपोर्ट

जीन संपादित चावल की नई किस्मों पर सवाल: दावों में वैज्ञानिक धोखाधड़ी का आरोप

अरुण पांडेय
अरुण पांडेय
Published: November 17, 2025 10:35 PM
Last updated: November 17, 2025 10:35 PM
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scientific fraud
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नई दिल्ली। भारत में हाल ही में घोषित जीन संपादित चावल की दो नई किस्मों – पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 (कमला) पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। जीएम-फ्री इंडिया गठबंधन नामक संगठन ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें इन किस्मों के बारे में किए गए बड़े-बड़े दावों को झूठा और असत्यापित बताया गया है।

खबर में खास
पूसा डीएसटी-1 धान के दावे और आरोपकमला (डीआरआर धान 100) पर आरोप

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इन किस्मों को बढ़ावा देने के लिए गलत आंकड़ों का इस्तेमाल किया है, जो किसानों की आजीविका से जुड़े वैज्ञानिक कार्य में धोखाधड़ी जैसा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ये दोनों किस्में जीन एडिटिंग तकनीक (सीआरआईएसपीआर-कैस9) से विकसित की गई हैं। पूसा डीएसटी-1 को एमटीयू 1010 से बनाया गया है, जबकि कमला को संबा महसूरी (बीपीटी 5204) से।

सरकार और आईसीएआर ने दावा किया था कि ये किस्में नमकीन और क्षारीय मिट्टी में 10% से 30% तक ज्यादा उपज देती हैं, और सूखा सहन करने में बेहतर हैं। लेकिन रिपोर्ट में 2023 और 2024 के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (एआईसीआरपी) ट्रायल्स के आंकड़ों का हवाला देकर इन दावों को खारिज किया गया है।

पूसा डीएसटी-1 धान के दावे और आरोप

  • दावे: नमकीन मिट्टी में 10% ज्यादा उपज (3508 किग्रा/हेक्टेयर), क्षारीय मिट्टी में 14% ज्यादा (3731 किग्रा/हेक्टेयर), और तटीय नमकीन इलाकों में 30% ज्यादा (2493 किग्रा/हेक्टेयर)। इसे 14 राज्यों में रिलीज करने की सिफारिश।
  • वास्तविकता: 2024 के ट्रायल्स में, 8 में से 6 जगहों पर तटीय नमकीन हालत में पूसा डीएसटी-1 ने मूल किस्म से कम उपज दी। औसतन 5% से 19% कम। रिपोर्ट कहती है कि 30% ज्यादा उपज का दावा गलत है, क्योंकि आईसीएआर की अपनी रिपोर्ट में यह किसी जोन में बेहतर नहीं पाई गई।
  • क्षारीय मिट्टी: 9 में से 5 जगहों पर कम उपज। दो जोनों में नकारात्मक परिणाम और दक्षिणी जोन में सिर्फ 1.6% बेहतर, न कि 14%।
  • अंदरूनी नमकीन मिट्टी: सिर्फ 3 जगहों पर टेस्ट, जहां औसतन 12.6% बेहतर, लेकिन एक जगह पर बराबर और आईसीएआर के मानकों से कम (कम से कम 10% जरूरी)।
  • 2023 के ट्रायल्स में बीज की कमी के कारण लक्ष्य गुणों का परीक्षण ही नहीं हुआ, फिर भी इसे आगे बढ़ाया गया।

रिपोर्ट में पूछा गया है कि एक सीजन के सीमित डेटा पर इतने बड़े दावे कैसे किए गए? साथ ही, पौधों की ऊंचाई, पैनिकल्स की संख्या और रोग प्रतिरोध में भी कमियां बताई गई हैं।

देखिए वीडियो

कमला (डीआरआर धान 100) पर आरोप

  • दावे: मूल किस्म से 19% ज्यादा उपज, और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक समेत कई राज्यों में रिलीज।
  • वास्तविकता: 2023 खरीफ में 19 में से 8 जगहों पर कम उपज। दो जोनों में 15% से 51% कम। 2023-24 रबी में 14 में से 8 जगहों पर कम, औसतन सिर्फ 2.8% बेहतर। 2024 खरीफ में मिले-जुले नतीजे, औसतन 1.7% से 9.9% बेहतर।
  • अन्य कमियां: कमला के पौधे मूल से 5-15 सेमी ज्यादा लंबे, पैनिकल्स 20-77 कम, ब्लास्ट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग ज्यादा (2-7% अधिक)। मिलिंग प्रतिशत 2.2% कम, जिससे प्रति हेक्टेयर 81 किग्रा चावल की हानि। हेड राइस रिकवरी 2.8% कम, यानी 109 किग्रा कम चावल।
  • रिपोर्ट कहती है कि उपज में कोई बड़ा फर्क नहीं, और परिणाम महत्वपूर्ण नहीं (पी वैल्यू >0.05)।

गठबंधन ने तकनीक की सुरक्षा पर भी सवाल उठाए। कहा गया है कि जीन एडिटिंग से अनचाहे बदलाव (ऑफ-टारगेट इफेक्ट्स) हो सकते हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। रिपोर्ट में पूछा गया है कि क्या इन किस्मों का पूरा डीएनए सीक्वेंसिंग किया गया? और एंटीबायोटिक मार्कर्स का इस्तेमाल क्यों, जो असुरक्षित हो सकता है?

गठबंधन के अनुसार, ये दावे किसानों को गुमराह कर सकते हैं और कृषि अनुसंधान की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने मांग की है कि आईसीएआर इन आंकड़ों की जांच करे और पारदर्शिता बरते। आईसीएआर की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

यह रिपोर्ट किसानों और वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जीन एडिटिंग जैसी नई तकनीकों पर भरोसा बनाने के लिए सटीक डेटा जरूरी है।

TAGGED:DRR Paddy 100gene-edited riceKamalaPusa DST-1scientific fraudTop_News
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