साहित्य जगत की सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में शुमार बुकर प्राइज (Booker Prize 2025) के लिए आज रात लंदन में होने वाले समारोह में ब्रिटिश लेखक एंड्र्यू मिलर और भारतीय मूल की लेखिका किरण देसाई को सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। दोनों को चयन समिति ने टॉप फेवरेट बनाया है, और जीतने पर 50,000 पाउंड (करीब 66,000 डॉलर) की राशि के साथ-साथ किताबों की बिक्री और लेखक की लोकप्रियता में जबरदस्त उछाल मिलेगा।
इस साल 153 उपन्यासों में से चुनी गई छह किताबों के बीच मुकाबला है। जजों के पैनल में आयरिश लेखक रॉडी डोयल (जो खुद 1993 में बुकर जीत चुके हैं) और ‘सेक्स एंड द सिटी’ की अभिनेत्री सारा जेसीका पार्कर शामिल हैं। डोयल ने एक सवाल पूछे जाने पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि ‘ये सभी किताबें प्रवास, वर्ग और मानवीय भावनाओं जैसे बड़े मुद्दों को बहुत संवेदनशील तरीके से छूती हैं।’ विजेता का ऐलान आज रात लंदन में होगा जो भारतीय समयानुसार मंगलवार सुबह 3 बजे के आसपास होगा।
मिलर और देसाई की किताबें क्यों हैं आगे?
बुकमेकर विलियम हिल ने मिलर की किताब ‘द लैंड इन विंटर’ को 15-8 के ऑड्स दिए हैं। ये कहानी 1962-63 की कड़ाके की सर्दी में इंग्लैंड के ग्रामीण इलाके में दो जोड़ों की प्रेम और रहस्यों की दास्तान है। 64 वर्षीय मिलर पहले भी 2001 में ‘ऑक्सीजन’ के लिए फाइनलिस्ट रह चुके हैं। उनके ठीक पीछे हैं देसाई, जिनकी किताब ‘द लोनलीनेस ऑफ सोनिया एंड सनी’ को 2-1 के ऑड्स मिले हैं। ये 700 पेज की उपन्यास दो युवा भारतीयों की अमेरिका में नई जिंदगी की कहानी है, जो मिलेनियम के मोड़ पर सेट है। 54 वर्षीय देसाई का ये तीसरा उपन्यास है और पिछले 20 सालों में पहला है।
2006 में ‘द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस’ से बुकर जीत चुकीं देसाई अगर दोबारा जीत गईं तो जे.एम. कोएत्जी, पीटर कैरी, मार्गरेट एटवुड और हिलरी मैन्टेल के साथ पांचवीं बार दोहरी विजेता बनेंगी। जजों ने देसाई की किताब को ‘पीढ़ीगत परिवार की दास्तान, तीखा हास्य, मार्मिक प्रेम कहानी और देश की हालत का आईना’ बताया।
दिल्ली में जन्मी देसाई, जो न्यूयॉर्क में रहती हैं उन्होंने मीडिया से कहा कि ‘एकाकीपन और प्रसिद्धि मेरी जिंदगी का हिस्सा रहे हैं लेकिन ये किताब यादों और प्रवास की गहराई दिखाती है।’
बाकी दावेदारों की कहानियां
बेटवे जैसे ऑनलाइन बुकमेकर्स ने भी मिलर को आगे रखा है उसके बाद देसाई को रखा गया है। हंगेरियन-ब्रिटिश लेखक डेविड स्जालाई की ‘फ्लेश’ भी दांव पर लग रही है। ये एक व्यक्ति की जिंदगी को दशकों में सरल लेकिन गहरी नजर से बयां करती है। बाकी चार किताबें हैं: सुजैन चोई की ‘फ्लैशलाइट’ (परिवार की उलझी कहानी जिसमें गायब होना और शोक की परतें हैं), केटी किटामुरा की ‘ऑडिशन’ (अभिनय और पहचान की जटिलताओं पर), बेन मार्कोविट्स की ‘द रेस्ट ऑफ अवर लाइव्स’ (मध्यम आयु के संकट पर रोड ट्रिप)। जजों ने इन्हें ‘आत्ममंथन वाली कहानियां’ कहा है, जो आज के दौर की बेचैनी को बखूबी दर्शाती हैं।
बुकर का सफर, अमेरिकी लेखकों की एंट्री से विविधता
1969 में शुरू हुआ बुकर प्राइज लेखकों की किस्मत बदलने के लिए मशहूर है। सलमान रुश्दी, इयान मैक्यूअन, अरुंधति रॉय और 2024 की विजेता सैमंथा हार्वे (‘ऑर्बिटल’) जैसे नाम इससे चमके। पहले ये सिर्फ ब्रिटेन, आयरलैंड और राष्ट्रमंडल के अंग्रेजी उपन्यासों के लिए था, लेकिन 2014 से अमेरिकी लेखकों को भी जगह मिली।

