भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव की छाया अब हॉकी पर भी प़ड़ गई है, जिसके चलते पाकिस्तान ने अगले महीने 28 नवंबर से भारत में होने वाले जूनियर विश्व कप हॉकी में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान ने सुरक्षा कारणों को वजह बताई है और इसी वजह से उसने इससे पहले एशिया कप हॉकी से भी खुद को अलग कर लिया था।
यह सचमुच दुखद है, क्योंकि कभी हॉकी न सिर्फ इस महाद्वीप की पहचान हुआ करती थी, बल्कि भारत और पाकिस्तान का विश्व हॉकी में लंबे समय तक दबदबा भी रहा है। वास्तव में भारत औऱ पाकिस्तान के आठ दशक पुराने उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों का असर खेलों पर भी पड़ता रहा है, लेकिन अभी मामला इतना सरल भी नहीं है, जैसा कि यह दिख रहा है।
आखिर महीने भर नहीं हुए जब भारत और पाकिस्तान ने दुबई में हुए एशिया कप क्रिकेट में हिस्सा लिया था और उनके बीच दो रोमांचक मैच भी हुए थे। 25 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर की वजह से दोनों देश युद्ध की कगार पर खड़े थे।
भारत ने सिंधु नदी समझौता तोड़कर पाकिस्तान को जाने वाला पानी रोक दिया था और यह कहा गया था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता! लेकिन इस हमले के कुछ महीने बाद ही क्रिकेट ने दोनों देशों की टीमों को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया था। तब खेल के अंतरराष्ट्रीय नियमों का हवाला देकर पाकिस्तान के साथ मैच खेलने को जायज ठहराया गया था। लेकिन क्या यह किसी से छिपा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला क्रिकेट मैच दुनिया के सबसे बड़े और सबसे अधिक कमाई करने वाले मुकाबलों में गिना जाता है।
दरअसल सवाल तो यही है कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट हो सकता है, तो हॉकी क्यों नहीं? इस मामले में पाकिस्तान से भी पूछा जा सकता है कि उसे जब भारत के साथ, चाहे तीसरे देश में ही सही, क्रिकेट खेलने से परहेज नहीं हुआ, तो हॉकी खेलने में क्या दिक्कत है?
इस घटनाक्रम का सबसे दिलचस्प पहलू तो यह भी है कि भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें अगले महीने सात नवंबर को हॉंगकॉंग में छह-छह खिलाड़ियों वाले ट्रर्नामेंट में आमने सामने होंगी! जाहिर है, सारा खेल क्रिकेट से होने वाली कमाई पर टिका हुआ है और इसके लिए खेल ही नहीं, राजनय के नियम बदलने से भी गुरेज नहीं किया जा रहा है।

