रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 के मसौदे को जारी करने की अनुमति दे दी है। इस अनुमति को अलग-अलग संगठन बुनियादी लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन बता रहे हैं। इसे राज्यों के संघीय अधिकारों पर हमला बताया जा रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 के मसौदे का कड़ा विरोध करता है। इस मसौदे को विद्युत मंत्रालय ने 9 अक्टूबर 2025 को जारी किया है और हितधारकों से टिप्पणियां मांगी गई हैं।
मोर्चा इसे प्रधानमंत्री के उठाए गए सबसे प्रतिगामी कदमों में से एक है, क्योंकि उनकी सरकार ने पहले यह लिखित आश्वासन दिया था कि किसानों की आशंकाओं पर एसकेएम से चर्चा किए बिना किसी भी प्रकार की विधायी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। यह आश्वासन 9 दिसंबर 2021 को उस समझौते का हिस्सा था जिसके आधार पर एसकेएम ने ऐतिहासिक किसान आंदोलन को निलंबित किया था।
किसान आंदोलन में 736 किसान शहीद हुए थे। बिना परामर्श के मसौदा जारी करना और अधिक छलपूर्ण योजनाओं के साथ लाना आधुनिक सभ्य समाज के बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है। किसान ऐसे निरंकुश रवैये को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
एसकेएम निजी क्षेत्र द्वारा लागू किए जा रहे प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग की प्रक्रिया का लगातार विरोध करता रहा है, क्योंकि प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग कॉर्पोरेट कब्जे को सुगम बनाने के लिए आवश्यक तकनीकी साधन है। किसान पूरे देश में प्रीपेड स्मार्ट मीटरों के बहिष्कार के संघर्ष में डटे हुए हैं।
एसकेएम ने आरोप लगाया है कि यह मसौदा विधेयक भारतीय बिजली व्यवस्था के व्यापक निजीकरण, व्यापारीकरण और केंद्रीकरण के लिए तैयार किया गया है। यदि इसे लागू किया गया, तो यह दशकों में निर्मित एकीकृत और सामाजिक दृष्टिकोण पर आधारित बिजली ढांचे को नष्ट कर देगा तथा बिजली वितरण और उत्पादन के सबसे लाभदायक हिस्सों को निजी कंपनियों के हवाले कर देगा, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र पर घाटे और सामाजिक जिम्मेदारियों का बोझ डाला जाएगा।
क्रॉस-सब्सिडी हटाने से गरीबों और ग्रामीण घरों के लिए बिजली दरें बढ़ेंगी, असमानता और बढ़ेगी, और किसान और अधिक संकट में धकेले जाएंगे। कॉर्पोरेट हितों द्वारा प्रेरित यह कदम जनविरोधी, किसान-विरोधी और मजदूर-विरोधी है।
यह मसौदा विधेयक भारत के संविधान के संघीय चरित्र पर सीधा हमला है, जिससे बिजली शासन को केंद्रीकृत और कॉर्पोरेट नियंत्रित नीति के उपकरण में बदल दिया जाएगा।
इसका सबसे बड़ा असर उन राज्यों पर पड़ेगा जो पहले से ही केंद्र सरकार की जीएसटी साझेदारी और अन्य अनुदान योजनाओं में पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। एसकेएम सभी राज्य सरकारों से अपील करता है कि वे इस मसौदा विधेयक की तत्काल वापसी की मांग करें।
यह विधेयक उपभोक्ताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों और पूरे देश के लाखों बिजली क्षेत्र के श्रमिकों की आजीविका पर सीधा हमला है। ओडिशा, दिल्ली और अन्य राज्यों के अनुभव दिखाते हैं कि निजीकरण के परिणामस्वरूप बिजली दरों में वृद्धि, उत्पादन कंपनियों के बकाया, रोजगार में कटौती और ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा होती है। नया विधेयक इस संकट को पूरे देश में दोहराएगा।
एसकेएम ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 को तुरंत वापस लिया जाए। सभी नागरिकों के लिए सस्ती बिजली की गारंटी सामाजिक अधिकार के रूप में दी जाए, न कि बाजार की वस्तु के रूप में; उत्पादन और वितरण के सभी स्तरों पर निजीकरण और फ्रेंचाइजिंग को रोका जाए; राज्य की सार्वजनिक इकाइयों और संघीय अधिकारों की रक्षा की जाए और क्रॉस-सब्सिडी और सार्वभौमिक सेवा दायित्व बनाए रखे जाए।
एसकेएम किसानों, बिजली कर्मचारियों, इंजीनियरों, उपभोक्ताओं और लोकतांत्रिक संगठनों सहित सभी वर्गों से एकजुट होकर प्रतिरोध में उतरने का आह्वान करता है। एसकेएम बिजली कर्मचारियों के संगठनों के साथ समन्वित बैठकों का आयोजन करेगा ताकि विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 की वापसी तक प्रत्यक्ष कार्रवाई का कार्यक्रम तय किया जा सके।
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