Chhattisgarh Women’s Commission Controversy: महिला आयोग की जिन सदस्यों ने अध्यक्ष डॉ किरणमयी नायक और दो अधिवक्ताओं पर आरोप लगाया था, अब अधिवक्ताओं की तरफ से उसका पलटवार आया है। दरअसल अधिवक्ता अखिलेश कुमार और शमीम रहमान ने आयोग की तीन सदस्यों लक्ष्मी वर्मा, सरला कोसरिया और दीपिका शोरी के खिलाफ लीगल नोटिस जारी किया है। यह कार्रवाई आयोग के सदस्यों द्वारा ली गयी 7 अक्टूबर के प्रेस कॉन्फ्रेंस के जवाब में की गई है जिसमें दोनों वकीलों को ‘दो वकील’ और ‘अनधिकृत व्यक्ति’ जैसे शब्दों से संबोधित किया गया था।
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के भीतर जारी विवाद ने अब कानूनी रंग ले लिया है जहां आयोग के ही विधिक सलाहकारों ने सदस्यों पर मानहानि का आरोप लगाते हुए माफी की मांग की है। दोनों अधिवक्ताओं का कहना है कि वे 2020 से आयोग में आधिकारिक तौर पर विधिक सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं फिर भी 7 अक्टूबर को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस और उसके बाद सोशल मीडिया व राष्ट्रीय महिला आयोग के व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर की गई सामग्री ने उनकी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने की कोशिश की।
अधिवक्ता शमीम रहमान ने नोटिस में कहा है कि ‘अनधिकृत’ शब्द खुद मानहानि का परिचायक है, क्योंकि कोई अधिवक्ता कभी अनधिकृत नहीं हो सकता। उन्होंने 7 दिनों के अंदर सार्वजनिक माफी मांगने और उसे मीडिया में प्रकाशित करने की मांग की है, वरना सक्षम अदालत में मुकदमा दायर किया जाएगा। वहीं अधिवक्ता अखिलेश कुमार ने सदस्यों और उनके निजी सहायक धर्मेंद्र ठाकुर पर साइबर कानून के तहत अपराध का आरोप लगाया है।
इसके अलावा अधिवक्ता शमीम रहमान का कहना है कि आयोग से उनका डेढ़ लाख रुपये का मानदेय बकाया है जिसका मामला हाईकोर्ट में लंबित है और पूर्व में उन्हें प्रतिदिन 1500 रुपये का भुगतान मिलता था। अधिवक्ता ने 15 दिनों के भीतर लिखित माफी की मांग की है अन्यथा मानहानि का केस दायर करने की चेतावनी दी है।
छत्तीसगढ़ महिला आयोग जिसका उद्देश्य महिलाओं की समस्याओं को सुलझाना और उनसे जुड़े मुद्दों की सुनवाई करना है इस वक्त आयोग खुद महिलाओं की सुनवाई करने वाले महिला सदस्यों की खींचतान से जूझ रहा है। दरअसल राज्य महिला आयोग की मौजूदा अध्यक्ष किरणमयी नायक के ऊपर महिला आयोग की सदस्य लक्ष्मी वर्मा दीपिका शोरी और सरला कोसरिया ने गंभीर आरोप लगाए थे, आयोग की इन सदस्यों का कहना है की महिला आयोग में अनियमितताएं हो रही है जिनमें शासकीय वाहन के व्यय की जानकारी न देना, अध्यक्ष द्वारा अकेले सुनवाई कर देना और शासकीय कार्यों में व्यवधान जैसे आरोप हैं।

